Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
मसीह की बलि की क्षमता
11 हर एक याजक एक ही प्रकार की बलि दिन-प्रतिदिन भेंट किया करता है, जो पाप को हर ही नहीं सकती 12 किन्तु जब मसीह येशु पापों के लिए एक ही बार सदा-सर्वदा के लिए मात्र एक बलि भेंट कर चुके, वह परमेश्वर के दायें पक्ष में बैठ गए. 13 तब वहाँ वह उस समय की प्रतीक्षा करने लगे कि कब उनके शत्रु उनके अधीन बना दिए जाएँगे 14 क्योंकि एक ही बलि के द्वारा उन्होंने उन्हें सर्वदा के लिए सिद्ध बना दिया, जो उनके लिए अलग किए गए हैं.
15 पवित्रात्मा भी, जब वह यह कह चुके, यह गवाही देते हैं:
16 मैं उनके साथ यह वाचा बांधूंगा—यह प्रभु का कथन है—उन दिनों के बाद
मैं अपना नियम उनके हृदय में लिखूँगा
और उनके मस्तिष्क पर अंकित कर दूँगा.
17 वह आगे कहते हैं:
उनके पाप और उनके अधर्म के कामों को
मैं इसके बाद याद न रखूंगा.
18 जहाँ इन विषयों के लिए पाप की क्षमा है, वहाँ पाप के लिए किसी भी बलि की ज़रूरत नहीं रह जाती.
निरन्तर प्रयास की बुलाहट
19-21 इसलिए, प्रियजन, कि परमेश्वर के परिवार में हमारे लिए एक सबसे उत्तम याजक निर्धारित हैं तथा इसलिए कि मसीह येशु के लहू के द्वारा एक नए तथा जीवित मार्ग से, जिसे उन्होंने उस पर्दे—अपने शरीर—में से हमारे लिए अभिषेक किया है, हमें अति पवित्र स्थान में जाने के लिए साहस प्राप्त हुआ है, 22 हम अपने अशुद्ध विवेक से शुद्ध होने के लिए अपने हृदय को सींच कर, निर्मल जल से अपने शरीर को शुद्ध कर, विश्वास के पूरे आश्वासन के साथ, निष्कपट हृदय से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करें. 23 अब हम बिना किसी शक के अपनी उस आशा में अटल रहें, जिसे हमने स्वीकार किया है क्योंकि जिन्होंने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य हैं. 24 हम यह भी विशेष ध्यान रखें कि हम आपस में प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को किस प्रकार प्रेरित करें 25 तथा हम आराधना सभाओं में लगातार इकट्ठा होने में सुस्त न हो जाएँ, जैसे कि कुछ हो ही चुके हैं. एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो और इस विषय में और भी अधिक नियमित हो जाओ, जैसा कि तुम देख ही रहे हो कि वह दिन पास आता जा रहा है.
अन्तकाल की घटनाओं का प्रकाशन
(मत्ति 24:1-25; लूकॉ 21:5-24)
13 जब मसीह येशु मन्दिर से बाहर निकल रहे थे, उनके एक शिष्य ने उनका ध्यान मन्दिर परिसर की ओर खींचते हुए कहा, “देखिए, गुरुवर, कितने विशाल हैं ये पत्थर और कितने बड़े हैं ये भवन!”
2 मसीह येशु ने उससे कहा, “तुम्हें ये भवन बड़े लग रहे हैं! सच तो यह है कि एक दिन इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर रखा न दिखेगा—हर एक पत्थर भूमि पर होगा.”
3 मसीह येशु ज़ैतून पर्वत पर मन्दिर की ओर मुख किए हुए बैठे थे. एकान्त पा कर पेतरॉस, याक़ोब, योहन तथा आन्द्रेयास ने मसीह येशु से यह प्रश्न किया, 4 “हमको यह बताइए कि यह कब घटित होगा तथा इन सबके निष्पादन (पूरा किया जाना) के समय का लक्षण क्या होगा?”
5 तब मसीह येशु ने यह वर्णन करना प्रारम्भ किया: “इस विषय में अत्यन्त सावधान रहना कि कोई तुम्हें भटका न दे. 6 अनेक मेरे नाम से आएंगे, और यह दावा करेंगे, ‘मैं ही वह हूँ,’ तथा अनेकों को भटका देंगे. 7 तुम युद्ध तथा युद्धों के समाचार सुनोगे, याद रहे कि तुम इससे विचलित न हो जाओ क्योंकि इनका घटित होना ज़रूरी है—किन्तु इसे ही अन्त न समझ लेना. 8 राष्ट्र राष्ट्र के तथा, राज्य राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. हर जगह अकाल पड़ेंगे तथा भूकम्प आएंगे, किन्तु ये सब घटनाएँ. प्रसव-वेदना का प्रारम्भ मात्र होंगी.
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