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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
नीतिवचन 31:10-31

आदर्श पत्नी

10 गुणवंती पत्नी कौन पा सकता है
    वह जो मणि—मणिकों से कही अधिक मूल्यवान।
11 जिसका पति उसका विश्वास कर सकता है।
    वह तो कभी भी गरीब नहीं होगा।
12 सद्पत्नी पति के संग उत्तम व्यवहार करती।
    अपने जीवन भर वह उसके लिये कभी विपत्ति नहीं उपजाती।
13 वह सदा ऊनी और सूती कपड़े बुनाने में व्यस्त रहती।
14 वह जलयान जो दूर देश से आता है
    वह हर कहीं से घर पर भोज्य वस्तु लाती।
15 तड़के उठाकर वह भोजन पकाती है।
    अपने परिवार का और दासियों का भाग उनको देती है।
16 वह देखकर एवं परख कर खेत मोल लेती है
    जोड़े धन से वह दाख की बारी लगाती है।
17 वह बड़ा श्रम करती है।
    वह अपने सभी काम करने को समर्थ है।
18 जब भी वह अपनी बनायी वस्तु बेचती है, तो लाभ ही कमाती है।
    वह देर रात तक काम करती है।
19 वह सूत कातती
    और निज वस्तु बुनती है।
20 वह सदा ही दीन—दुःखी को दान देती है,
    और अभाव ग्रस्त जन की सहायता करती है।
21 जब शीत पड़ती तो वह अपने परिवार हेतु चिंतित नहीं होती है।
    क्योंकि उसने सभी को उत्तम गर्म वस्त्र दे रख है।
22 वह चादर बनाती है और गद्दी पर फैलाती है।
    वह सन से बने कपड़े पहनती है।
23 लोग उसके पति का आदर करते हैं
    वह स्थान पाता है नगर प्रमुखों के बीच।
24 वह अति उत्तम व्यापारी बनती है।
    वह वस्त्रों और कमरबंदों को बनाकर के उन्हें व्यापारी लोगों को बेचती है।
25 वह शक्तिशाली है,
    और लोग उसको मान देते हैं।
26 जब वह बोलती है, वह विवेकपूर्ण रहती है।
    उसकी जीभ पर उत्तम शिक्षायें सदा रहती है।
27 वह कभी भी आलस नहीं करती है
    और अपने घर बार का ध्यान रखती है।
28 उसके बच्चे खड़े होते और उसे आदर देते हैं।
    उसका पति उसकी प्रशंसा करता है।
29 उसका पति कहता है, “बहुत सी स्त्रियाँ होती हैं।
    किन्तु उन सब में तू ही सर्वोत्तम अच्छी पत्नी है।”
30 मिथ्या आकर्षण और सुन्दरता दो पल की है,
    किन्तु वह स्त्री जिसे यहोवा का भय है, प्रशंसा पायेगी।
31 उसे वह प्रतिफल मिलना चाहिये जिसके वह योग्य है, और जो काम उसने किये हैं,
    उसके लिये चाहिये कि सारे लोग के बीच में उसकी प्रशंसा करें।

भजन संहिता 1

पहिला भाग

(भजनसंहिता 1–41)

सचमुच वह जन धन्य होगा
    यदि वह दुष्टों की सलाह को न मानें,
और यदि वह किसी पापी के जैसा जीवन न जीए
    और यदि वह उन लोगों की संगति न करे जो परमेश्वर की राह पर नहीं चलते।
वह नेक मनुष्य है जो यहोवा के उपदेशों से प्रीति रखता है।
    वह तो रात दिन उन उपदेशों का मनन करता है।
इससे वह मनुष्य उस वृक्ष जैसा सुदृढ़ बनता है
    जिसको जलधार के किनारे रोपा गया है।
वह उस वृक्ष समान है, जो उचित समय में फलता
    और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं।
वह जो भी करता है सफल ही होता है।

किन्तु दुष्ट जन ऐसे नहीं होते।
    दुष्ट जन उस भूसे के समान होते हैं जिन्हें पवन का झोका उड़ा ले जाता है।
इसलिए दुष्ट जन न्याय का सामना नहीं कर पायेंगे।
    सज्जनों की सभा में वे दोषी ठहरेंगे और उन पापियों को छोड़ा नहीं जायेगा।
ऐसा भला क्यों होगा? क्योंकि यहोवा सज्जनों की रक्षा करता है
    और वह दुर्जनों का विनाश करता है।

याकूब 3:13-4:3

सच्चा विवेक

13 भला तुम में, ज्ञानी और समझदार कौन है? जो है, उसे अपने व्यवहार से यह दिखाना चाहिए कि उसके कर्म उस सज्जनता के साथ किए गए हैं जो ज्ञान से जुड़ी है। 14 किन्तु यदि तुम लोगों के हृदयों में भयंकर ईर्ष्या और स्वार्थ भरा हुआ है, तो अपने ज्ञान का ढोल मत पीटो। ऐसा करके तो तुम सत्य पर पर्दा डालते हुए असत्य बोल रहे हो। 15 ऐसा “ज्ञान” तो ऊपर अर्थात् स्वर्ग से, प्राप्त नहीं होता, बल्कि वह तो भौतिक है। आत्मिक नहीं है। तथा शैतान का है। 16 क्योंकि जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थपूर्ण महत्त्वकाँक्षाएँ रहती हैं, वहाँ अव्यवस्था और हर प्रकार की बुरी बातें रहती है। 17 किन्तु स्वर्ग से आने वाला ज्ञान सबसे पहले तो पवित्र होता है, फिर शांतिपूर्ण, सहनशील, सहज-प्रसन्न, करुणापूर्ण होता है। और उससे उत्तम कर्मों की फ़सल उपजती है। वह पक्षपात-रहित और सच्चा भी होता है। 18 शांति के लिए काम करने वाले लोगों को ही धार्मिक जीवन का फल प्राप्त होगा यदि उसे शांतिपूर्ण वातावरण में बोया गया है।

परमेश्वर को समर्पित हो जाओ

तुम्हारे बीच लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं? क्या उनका कारण तुम्हारे अपने ही भीतर नहीं है? तुम्हारी वे भोग-विलासपूर्ण इच्छाएँ ही जो तुम्हारे भीतर निरन्तर द्वन्द्व करती रहती हैं, क्या उन्हीं से ये पैदा नहीं होते? तुम लोग चाहते तो हो किन्तु तुम्हें मिल नहीं पाता। तुम में ईर्ष्या है और तुम दूसरों की हत्या करते हो, फिर भी जो चाहते हो, प्राप्त नहीं कर पाते। और इसलिए लड़ते झगड़ते हो। अपनी इच्छित वस्तुओं को तुम प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि तुम उन्हें परमेश्वर से नहीं माँगते। और जब माँगते भी हो तो तुम्हारा उद्देश्य अच्छा नहीं होता। क्योंकि तुम उन्हें अपने भोग-विलास में ही उड़ाने को माँगते हो।

याकूब 4:7-8

इसलिए अपने आपको परमेश्वर के अधीन कर दो। शैतान का विरोध करो, वह तुम्हारे सामने से भाग खड़ा होगा। परमेश्वर के पास आओ, वह भी तुम्हारे पास आएगा। अरे पापियों! अपने हाथ शुद्ध करो और अरे सन्देह करने वालों, अपने हृदयों को पवित्र करो।

मरकुस 9:30-37

अपनी मृत्यु के सम्बन्ध में यीशु का कथन

(मत्ती 17:22-23; लूका 9:43-45)

30 फिर उन्होंने वह स्थान छोड़ दिया। और जब वे गलील होते हुए जा रहे थे तो वह नहीं चाहता था कि वे कहाँ हैं, इसका किसी को भी पता चले। 31 क्योंकि वह अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा था। उसने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र मनुष्य के ही हाथों धोखे से पकड़वाया जायेगा और वे उसे मार डालेंगे। मारे जाने के तीन दिन बाद वह जी उठेगा।” 32 पर वे इस बात को समझ नहीं सके और यीशु से इसे पूछने में डरते थे।

सबसे बड़ा कौन है

(मत्ती 18:1-5; लूका 9:46-48)

33 फिर वे कफ़रनहूम आये। यीशु जब घर में था, उसने उनसे पूछा, “रास्ते में तूम किस बात पर सोच विचार कर रहे थे?” 34 पर वे चुप रहे। क्योंकि वे राह चलते आपस में विचार कर रहे थे कि सबसे बड़ा कौन है।

35 सो वह बैठ गया। उसने बारहों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा, “यदि कोई सबसे बड़ा बनना चाहता है तो उसे निश्चय ही सबसे छोटा हो कर सब का सेवक बनना होगा।”

36 और फिर एक छोटे बच्चे को लेकर उसने उनके सामने खड़ा किया। बच्चे को अपनी गोद में लेकर वह उनसे बोला, 37 “मेरे नाम में जो कोई इनमें से किसी भी एक बच्चे को अपनाता है, वह मुझे अपना रहा हैं; और जो कोई मुझे अपनाता है, न केवल मुझे अपना रहा है, बल्कि उसे भी अपना रहा है, जिसने मुझे भेजा है।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

© 1995, 2010 Bible League International