Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
1 हे यहोवा, तेरी महिमा राजा को प्रसन्न करती है, जब तू उसे बचाता है।
वह अति आनन्दित होता है।
2 तूने राजा को वे सब वस्तुएँ दी जो उसने चाहा,
राजा ने जो भी पाने की विनती की हे यहोवा, तूने मन वांछित उसे दे दिया।
3 हे यहोवा, सचमुच तूने बहुत आशीष राजा को दी।
उसके सिर पर तूने स्वर्ण मुकुट रख दिया।
4 उसने तुझ से जीवन की याचना की और तूने उसे यह दे दिया।
परमेश्वर, तूने सदा सर्वदा के लिये राजा को अमर जीवन दिया।
5 तूने रक्षा की तो राजा को महा वैभव मिला।
तूने उसे आदर और प्रशंसा दी।
6 हे परमेश्वर, सचमुच तूने राजा को सदा सर्वदा के लिये, आशिर्वाद दिये।
जब राजा को तेरा दर्शन मिलता है, तो वह अति प्रसन्न होता है।
7 राजा को सचमुच यहोवा पर भरोसा है,
सो परम परमेश्वर उसे निराश नहीं करेगा।
8 हे परमेश्वर! तू दिखा देगा अपने सभी शत्रुओं को कि तू सुदृढ़ शक्तिवान है।
जो तुझ से घृणा करते हैं तेरी शक्ति उन्हें पराजित करेगी।
9 हे यहोवा, जब तू राजा के साथ होता है
तो वह उस भभकते भाड़ सा बन जाता है,
जो सब कुछ भस्म करता है।
उसकी क्रोधाग्नि अपने सभी बैरियों को भस्म कर देती है।
10 परमेश्वर के बैरियों के वंश नष्ट हो जायेंगे,
धरती के ऊपर से वह सब मिटेंगे।
11 ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि यहोवा, तेरे विरुद्ध उन लोगों ने षड़यन्त्र रचा था?
उन्होंने बुरा करने को योजनाएँ रची थी, किन्तु वे उसमें सफल नहीं हुए।
12 किन्तु यहोवा तूने ऐसे लोगों को अपने अधीन किया, तूने उन्हें एक साथ रस्से से बाँध दिया, और रस्सियों का फँदा उनके गलों में डाला।
तूने उन्हें उनके मुँह के बल दासों सा गिराया।
13 यहोवा के और उसकी शक्ति के गुण गाओ
आओ हम गायें और उसके गीतों को बजायें जो उसकी गरिमा से जुड़े हुए हैं।
इस्राएली दाऊद को राजा बनाते हैं
5 तब इस्राएल के सारे परिवार समूहों के लोग दाऊद के पास हेब्रोन में आए। उन्होंने दाऊद से कहा, “देखो हम सब एक परिवार[a] के हैं! 2 बीते समय में जब शाऊल हमारा राजा था तो वे आप ही थे जो इस्राएल के लिये युद्ध में हमारा नेतृत्व करते थे और आप इस्राएल को युद्धों से वापस लाये। यहोवा ने आपसे कहा, ‘तुम मेरे लोग अर्थात् इस्राएलियों के गड़ेंरिया होगे। तुम इस्राएल के शासक होगे।’”
3 इस्राएल के सभी प्रमुख, राजा दाऊद के पास, हेब्रोन में आए। राजा दाऊद ने यहोवा के सामने, हेब्रोन में, इन प्रमुखों के साथ एक सन्धि की। तब प्रमुखों ने इस्राएल के राजा के रूप में दाऊद का अभिषेक किया।
4 दाऊद उस समय तीस वर्ष का था जब उसने शासन करना आरम्भ किया। उसने चालीस वर्ष शासन किया। 5 उसने हेब्रोन में यहूदा पर सात वर्ष छ: महीने तक शासन किया और उसने, सारे इस्राएल और यहूदा पर यरूशलेम में तैंतीस वर्ष तक शासन किया।
दाऊद यरूशलेम नगर को जीतता है
6 राजा और उसके लोग यरूशलेम में यबूसियों के विरुद्ध गए। यबूसी वे लोग थे जो उस प्रदेश में रहते थे। यबूसियों ने दाऊद से कहा, “तुम हमारे नगर में नहीं आ सकते।[b] यहाँ तक कि अन्धे और लंगड़े भी तुमको रोक सकते हैं।” (वे ऐसा इसलिये कह रहे थे क्योंकि वे सोचते थे कि दाऊद उनके नगर में प्रवेश करने की क्षमता नहीं रखता। 7 किन्तु दाऊद ने सिय्योन का किला ले लिया। यह किला दाऊद—नगर बना।)
8 उस दिन दाऊद ने अपने लोगों से कहा, “यदि तुम लोग यबूसियों को हराना चाहते हो तो जलसुरंग[c] से जाओ, और उन ‘अन्धे तथा अपाहिज’ शत्रुओं पर हमला करो।” यही कारण है कि लोग कहते हैं “अन्धे और विकलांग उपासना गृह में नहीं आ सकते।”
9 दाऊद किले में रहता था और इसे “दाऊद का नगर” कहता था। दाऊद ने उस क्षेत्र को बनाया और मिल्लो नाम दिया। उसने नगर के भीतर अन्य भवन भी बनाये। 10 दाऊद अधिकाधिक शक्तिशाली होता गया क्योंकि सर्वशक्तिमान यहोवा उसके साथ था।
पौलुस की यातनाएँ
16 मैं फिर दोहराता हूँ कि मुझे कोई मूर्ख न समझे। किन्तु यदि फिर भी तुम ऐसे समझते हो तो मुझे मूर्ख बनाकर ही स्वीकार करो। ताकि मैं भी कुछ गर्व कर सकूँ। 17 अब यह जो मैं कह रहा हूँ, वह प्रभु के अनुसार नहीं कर रहा हूँ बल्कि एक मूर्ख के रूप में गर्वपूर्ण विश्वास के साथ कह रहा हूँ। 18 क्योंकि बहुत से लोग अपने सांसारिक जीवन पर ही गर्व करते हैं। 19 फिर तो मैं भी गर्व करूँगा। और फिर तुम तो इतने समझदार हो कि मूर्खों की बातें प्रसन्नता के साथ सह लेते हो। 20 क्योंकि यदि कोई तुम्हें दास बनाये, तुम्हारा शोषण करे, तुम्हें किसी जाल में फँसाये, अपने को तुमसे बड़ा बनाये अथवा तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ मारे तो तुम उसे सह लेते हो। 21 मैं लज्जा के साथ कह रहा हूँ, हम बहुत दुर्बल रहे हैं।
यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर गर्व करने का साहस करता है तो वैसा ही साहस मैं भी करूँगा। (मैं मूर्खतापूर्वक कह रहा हूँ) 22 इब्रानी वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। इस्राएली वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। इब्राहीम की संतान वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। 23 क्या वे ही मसीह के सेवक हैं? (एक सनकी की तरह मैं यह कहता हूँ) कि मैं तो उससे भी बड़ा मसीह का दास हूँ। मैंने बहुत कठोर परिश्रम किया है। मैं बार बार जेल गया हूँ। मुझे बार बार पीटा गया है। अनेक अवसरों पर मेरा मौत से सामना हुआ है।
24 पाँच बार मैंने यहूदियों से एक कम चालीस चालीस कोड़े खाये हैं। 25 मैं तीन-तीन बार लाठियों से पीटा गया हूँ। एक बार तो मुझ पर पथराव भी किया गया। तीन बार मेरा जहाज़ डूबा। एक दिन और एक रात मैंने समुद्र के गहरे जल में बिताई। 26 मैंने भयानक नदियों, खूँखार डाकुओं स्वयं अपने लोगों, विधर्मियों, नगरों, ग्रामों, समुद्रों और दिखावटी बन्धुओं के संकटों के बीच अनेक यात्राएँ की हैं।
27 मैंने कड़ा परिश्रम करके थकावट से चूर हो कर जीवन जिया है। अनेक अवसरों पर मैं सो तक नहीं पाया हूँ। भूखा और प्यासा रहा हूँ। प्रायः मुझे खाने तक को नहीं मिल पाया है। बिना कपड़ों के ठण्ड में ठिठुरता रहा हूँ। 28 और अब और अधिक क्या कहूँ? मुझ पर सभी कलीसियाओं की चिंता का भार भी प्रतिदिन बना रहा है। 29 किसकी दुर्बलता मुझे शक्तिहीन नहीं कर देती है और किसके पाप में फँसने से मैं बेचैन नहीं होता हूँ?
30 यदि मुझे बढ़ चढ़कर बातें करनी ही हैं तो मैं उन बातों को करूँगा जो मेरी दुर्बलता की हैं। 31 परमेश्वर और प्रभु यीशु का परमपिता जो सदा ही धन्य है, जानता है कि मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा हूँ। 32 जब मैं दमिश्क में था तो महाराजा अरितास के राज्यपाल ने दमिश्क पर घेरा डाल कर मुझे बंदी कर लेने का जतन किया था। 33 किन्तु मुझे नगर की चार दीवारी की खिड़की से टोकरी में बैठा कर नीचे उतार दिया गया और मैं उसके हाथों से बच निकला।
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