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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 20

संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।

तेरी पुकार का यहोवा उत्तर दे, और जब तू विपति में हो
    तो याकूब का परमेश्वर तेरे नाम को बढ़ायें।
परमेश्वर अपने पवित्रस्थान से तेरी सहायता करे।
    वह तुझको सिय्योन से सहारा देवे।
परमेश्वर तेरी सब भेंटों को याद रखे,
    और तेरे सब बलिदानों को स्वीकार करें।
परमेश्वर तुझे उन सभी वस्तुओं को देवे जिन्हें तू सचमुच चाहे।
    वह तेरी सभी योजनाएँ पूरी करें।
परमेश्वर जब तेरी सहायता करे हम अति प्रसन्न हों
    और हम परमेश्वर की बढ़ाई के गीत गायें।
जो कुछ भी तुम माँगों यहोवा तुम्हें उसे दे।

मैं अब जानता हूँ कि यहोवा सहायता करता है अपने उस राजा की जिसको उसने चुना।
    परमेश्वर तो अपने पवित्र स्वर्ग में विराजा है और उसने अपने चुने हुए राजा को, उत्तर दिया
    उस राजा की रक्षा करने के लिये परमेश्वर अपनी महाशक्ति को प्रयोग में लाता है।
कुछ को भरोसा अपने रथों पर है, और कुछ को निज सैनिकों पर भरोसा है
    किन्तु हम तो अपने यहोवा परमेश्वर को स्मरण करते हैं।
किन्तु वे लोग तो पराजित और युद्ध में मारे गये
    किन्तु हम जीते और हम विजयी रहे।

ऐसा कैसा हुआ? क्योंकि यहोवा ने अपने चुने हुए राजा की रक्षा की
    उसने परमेश्वर को पुकारा था और परमेश्वर ने उसकी सुनी।

1 शमूएल 13:1-15

शाऊल अपनी पहली गलती करता है

13 अब तक, शाऊल एक वर्ष तक राज्य कर चुका था और फिर जब शाऊल इस्राएल पर दो वर्ष शासन कर चुका, उसने इस्राएल से तीन हजार व्यक्ति चुने। उनमें दो हजार वे व्यक्ति थे जो बेतेल के पहाड़ी प्रदेश के मिकमाश में उसके साथ ठहरे थे और एक हजार वे व्यक्ति थे जो बिन्यामीन के अंतर्गत गिबा में योनातान के साथ ठहरे थे। शाऊल ने सेना के अन्य सैनिकों को उनके अपने घर भेज दिया।

योनातान ने गिबा में जाकार पलिश्तियों को उनके डेरे में हराया। पलिश्तियों ने इसके बारे में सुना। उन्होंने कहा, “हिब्रुओं ने विद्रोह किया है।”

शाऊल ने कहा, “जो कुछ हुआ है उसे हिब्रू लोगों को सुनाओ।” अत: शाऊल ने लोगों से कहा कि वे पूरे इस्राएल देश में तुरही बजायें। सभी इस्राएलियों ने वह समाचार सुना। उन्होने कहा, “शाऊल ने पलिश्ती सेना प्रमुख को मार डाला है। अब पलिश्ती सचमुच इस्राएलियों से घृणा करते हैं!”

इस्राएली लोगों को शाऊल से जुड़ने के लिये गिलगाल में बुलाया गया। पलिश्ती इस्राएल से लड़ने के लिए इकट्ठे हुए। पलिश्तियों के पास छ: हजार रथ और तीन हजार[a] घुड़सवार थे। वहाँ इतने अधिक पलिश्तिी सैनिक थे जितने सागर तट पर बालू के कण। पलिश्तियों ने मिकमाश में डेरा डाला। (मिकमाश बेतावेन के पूर्व है।)

इस्राएलियों ने देखा कि वे मुसीबत में हैं। उन्होंने अपने को जाल में फँसा अनुभव किया। वे गुफाओं और चट्टानों, के अन्तरालों में छिपने के लिए भाग गये। वे चट्टानों, कुँओं और जमीन के अन्य गढ्ढों में छिप गये। कुछ हिब्रू यरदन नदी पार कर गाद और गिलाद प्रदेश में भी भाग गए। शाऊल तब तक गिलगाल में था। उसकी सेना के सभी सैनिक भय से काँप रहे थे।

शमूएल ने कहा कि वह शाऊल से गिलगाल में मिलेगा। शाऊल ने वहाँ सात दिन तक प्रतीक्षा की। किन्तु शमूएल तब भी गिलगाल नहीं पहुँचा था और सैनिक शाऊल को छोड़ने लगे। इसलिए शाऊल ने कहा, “मेरे लिए होमबलि और मेलबलि लाओ।” तब शाऊल ने होमबलि चढ़ायी। 10 ज्योंही शाऊल ने बलि भेंट चढ़ानी समाप्त की, शमूएल आ गया। शाऊल उससे मिलने गया।

11 शमूएल ने पूछा, “यह तुमने क्या कर दिया?” शाऊल ने उत्तर दिया, “मैंने सैनिकों को अपने को छोड़ते देखा और तुम तब तक यहाँ नहीं थे, और पलिश्ती मिकमाश में इकट्ठा हो रहे थे।” 12 मैंने अपने मन में सोचा, “पलिश्ती यहाँ गिलगाल में आकर मुझ पर आक्रमण करेंगे और मैंने अब तक यहोवा से हमारी सहायता करने के लिये याचना नहीं की है। अत: मैंने अपने को विवश किया और मैंने होमबलि चढ़ाई।”

13 शमूएल ने कहा, “तुमने मूर्खता का काम किया! तुमने अपने परमेश्वर यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया। यदि तुमने परमेश्वर के आदेश का पालन किया होता तो परमेश्वर ने तुम्हारे परिवार को सदा के लिये इस्राएल पर शासन करने दिया होता। 14 किन्तु अब तुम्हारा राज्य आगे नहीं चलेगा। यहोवा ऐसे व्यक्ति की खोज में था जो उसकी आज्ञा का पालन करना चाहता हो। यहोवा ने उस व्यक्ति को पा लिया है और यहोवा उसे अपने लोगों का नया प्रमुख होने के लिये चुनेगा। तुमने यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया इसलिए यहोवा नया प्रमुख चुनेगा।” 15 तब शमूएल उठा और उसने गिलगाल को छोड़ दिया।

मिकमाश का युद्ध

शाऊल और उसकी बची सेना ने गिलगाल को छोड़ दिया। वे बिन्यामीन में गिबा को गये। शाऊल ने उन व्यक्तियों को गिना जो आब तक उसके साथ थे। वहाँ लगभग छः सौ पुरुष थे।

मरकुस 4:1-20

बीज बोने का दृष्टान्त

(मत्ती 13:1-9; लूका 8:4-8)

उसने झील के किनारे उपदेश देना फिर शुरू कर दिया। वहाँ उसके चारों ओर बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। इसलिये वह झील में खड़ी एक नाव पर जा बैठा। और सभी लोग झील के किनारे धरती पर खड़े थे। उसने दृष्टान्त देकर उन्हें बहुत सी बातें सिखाईं। अपने उपदेश में उसने कहा,

“सुनो! एक बार एक किसान बीज वो ने के लिए निकला। तब ऐसा हुआ कि जब उसने बीज बोये तो कुछ मार्ग के किनारे गिरे। पक्षी आये और उन्हें चुग गये। दूसरे कुछ बीज पथरीली धरती पर गिरे जहाँ बहुत मिट्टी नहीं थी। वे गहरी मिट्टी न होने के कारण जल्दी ही उग आये। और जब सूरज उगा तो वे झुलस गये और जड़ न पकड़ पाने के कारण मुरझा गये। कुछ और बीज काँटों में जा गिरे। काँटे बड़े हुए और उन्होंने उन्हें दबा लिया जिससे उनमें दाने नहीं पड़े। कुछ बीज अच्छी धरती पर गिरे। वे उगे, उनकी बढ़वार हुई और उन्होंने अनाज पैदा किया। तीस गुणी, साठ गुणी और यहाँ तक कि सौ गुणी अधिक फसल उतरी।”

फिर उसने कहा, “जिसके पास सुनने को कान है, वह सुने!”

यीशु का कथन: वह दृष्टान्तों का प्रयोग क्यों करता है

(मत्ती 13:10-17; लूका 8:9-10)

10 फिर जब वह अकेला था तो उसके बारह शिष्यों समेत जो लोग उसके आसपास थे, उन्होंने उससे दृष्टान्तों के बारे में पूछा।

11 यीशु ने उन्हें बताया, “तुम्हें तो परमेश्वर के राज्य का भेद दे दिया गया है किन्तु उनके लिये जो बाहर के हैं, सब बातें दृष्टान्तों में होती हैं:

12 ‘ताकि वे देखें और देखते ही रहें, पर उन्हें कुछ सूझे नहीं,
    सुनें और सुनते ही रहें पर कुछ समझें नहीं।
ऐसा न हो जाए कि वे फिरें और क्षमा किए जाएँ।’”(A)

बीज बोने के दृष्टान्त की व्याख्या

(मत्ती 13:18-23; लूका 8:11-15)

13 उसने उनसे कहा, “यदि तुम इस दृष्टान्त को नहीं समझते तो किसी भी और दृष्टान्त को कैसे समझोगे? 14 किसान जो बोता है, वह वचन है। 15 कुछ लोग किनारे का वह मार्ग हैं जहाँ वचन बोया जाता है। जब वे वचन को सुनते हैं तो तत्काल शैतान आता है और जो वचन रूपी बीज उनमें बोया गया है, उसे उठा ले जाता है।

16 “और कुछ लोग ऐसे हैं जैसे पथरीली धरती में बोया बीज। जब वे वचन को सुनते हैं तो उसे तुरन्त आनन्द के साथ अपना लेते हैं। 17 किन्तु उसके भीतर कोई जड़ नहीं होती, इसलिए वे कुछ ही समय ठहर पाते हैं और बाद में जब वचन के कारण उन पर विपत्ति आती है और उन्हें यातनाएँ दी जाती हैं, तो वे तत्काल अपना विश्वास खो बैठते हैं।

18 “और दूसरे लोग ऐसे हैं जैसे काँटों में बोये गये बीज। ये वे हैं जो वचन को सुनते हैं। 19 किन्तु इस जीवन की चिंताएँ, धन दौलत का लालच और दूसरी वस्तुओं को पाने की इच्छा उनमें आती है और वचन को दबा लेती है। जिससे उस पर फल नहीं लग पाता।

20 “और कुछ लोग उस बीज के समान हैं जो अच्छी धरती पर बोया गया है। ये वे हैं जो वचन को सुनते हैं और ग्रहण करते हैं। इन पर फल लगता है कहीं तीस गुणा, कहीं साठ गुणा तो कहीं सौ गुणे से भी अधिक।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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