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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
उत्पत्ति 37:1-4

स्वप्नदृष्टा यूसुफ

37 याकूब ठहर गया और कनान प्रदेश में रहने लगा। यह वही प्रदेश है जहाँ उसका पिता आकर बस गया था। याकूब के परिवार की यही कथा है।

यूसुफ एक सत्रह वर्ष का युवक था। उसका काम भेड़ बकरियों की देखभाल करना था। यूसुफ यह काम अपने भाईयों यानि कि बिल्हा और जिल्पा के पुत्रों के साथ करता था। (बिल्हा और जिल्पा उस के पिता की पत्नियाँ थीं) यूसुफ अपने पिता को अपने भाईयों की बुरी बातें बताया करता था। यूसुफ उस समय उत्पन्न हुआ जब उसका पिता इस्राएल (याकूब) बहुत बूढ़ा था। इसलिए इस्राएल यूसुफ को अपने अन्य पुत्रों से अधिक प्यार करता था। याकूब ने अपने पुत्र को एक विशेष अंगरखा दिया। यह अंगरखा लम्बा और बहुत सुन्दर था। यूसुफ के भाइयों ने देखा कि उनका पिता उनकी अपेक्षा यूसुफ को अधिक प्यार करता है। वे इसी कारण अपने भाई से घृणा करते थे। वे यूसुफ से अच्छी तरह बात नहीं करते थे।

उत्पत्ति 37:12-28

12 एक दिन यूसुफ के भाई अपने पिता की भेड़ों की देखभाल के लिए शकेम गए। 13 याकूब ने यूसुफ से कहा, “शकेम जाओ। तुम्हारे भाई मेरी भेड़ों के साथ वहाँ हैं।” यूसुफ ने उत्तर दिया, “मैं जाऊँगा।”

14 यूसुफ के पिता ने कहा, “जाओ और देखो कि तुम्हारे भाई सुरक्षित हैं। लौटकर आओ और बताओ कि क्या मेरी भेड़ें ठीक हैं?” इस प्रकार यूसुफ के पिता ने उसे हेब्रोन की घाटी से शकेम को भेजा।

15 शकेम में यूसुफ खो गया। एक व्यक्ति ने उसे खेतों में भटकते हुए पाया। उस व्यक्ति ने कहा, “तुम क्या खोज रहे हो?”

16 यूसुफ ने उत्तर दिया, “मैं अपने भाईयों को खोज रहा हूँ। क्या तुम बता सकते हो कि वे अपनी भेड़ों के साथ कहाँ हैं?”

17 व्यक्ति ने उत्तर दिया, “वे पहले ही चले गए है। मैंने उन्हें कहते हुए सुना कि वे दोतान को जा रहे हैं।” इसलिए यूसुफ अपने भाईयों के पीछे गया और उसने उन्हें दोतान में पाया।

यूसुफ दासता के लिए बेचा गया

18 यूसुफ के भाईयों ने बहुत दूर से उसे आते देखा। उन्होंने उसे मार डालने की योजना बनाने का निश्चय किया। 19 भाईयों ने एक दूसरे से कहा, “यह सपना देखने वाला यूसुफ आ रहा है। 20 मौका मिले हम लोग उसे मार डालें हम उसका शरीर सूखे कुओं में से किसी एक में फेंक सकते हैं। हम अपने पिता से कह सकते हैं कि एक जंगली जानवर ने उसे मार डाला। तब हम लोग उसे दिखाएंगे कि उसके सपने व्यर्थ हैं।”

21 किन्तु रूबेन यूसुफ को बचाना चाहता था। रूबेन ने कहा, “हम लोग उसे मारे नहीं। 22 हम लोग उसे चोट पहुँचाए बिना एक कुएँ में डाल सकते हैं।” रूबेन ने यूसुफ को बचाने और उसके पिता के साथ भेजने की योजना बनाई। 23 यूसुफ अपने भाईयों के पास आया। उन्होंने उस पर आक्रमण किया और उसके लम्बे सुन्दर अंगरखा को फाड़ डाला। 24 तब उन्होंने उसे खाली सूखे कुएँ में फेंक दिया।

25 यूसुफ कुएँ में था, उसके भाई भोजन करने बैठे। तब उन्होंने नज़र उठाई और व्यापारियों का एक दल को देखा जो गिलाद से मिस्र की यात्रा पर थे। उनके ऊँट कई प्रकार के मसाले और धन ले जा रहे थे। 26 इसलिए यहूदा ने अपने भाईयों से कहा, अगर हम लोग अपने भाई को मार देंगे और उसकी मृत्यु को छिपाएंगे तो उससे हमें क्या लाभ होगा? 27 हम लोगों को अधिक लाभ तब होगा जब हम उसे इन व्यापारियों के हाथ बेच देंगे। अन्य भाई मान गए। 28 जब मिद्यानी व्यापारी पास आए, भाईयों ने यूसुफ को कुएँ से बाहर निकाला। उन्होंने बीस चाँदी के टुकड़ों में उसे व्यापारियों को बेच दिया। व्यापारी उसे मिस्र ले गए।

भजन संहिता 105:1-6

यहोवा का धन्यवाद करो! तुम उसके नाम की उपासना करो।
    लोगों से उनका बखान करो जिन अद्भुत कामों को वह किया करता है।
यहोवा के लिये तुम गाओ। तुम उसके प्रशंसा गीत गाओ।
    उन सभी आश्चर्यपूर्ण बातों का वर्णन करो जिनको वह करता है।
यहोवा के पवित्र नाम पर गर्व करो।
    ओ सभी लोगों जो यहोवा के उपासक हो, तुम प्रसन्न हो जाओ।
सामर्थ्य पाने को तुम यहोवा के पास जाओ।
    सहारा पाने को सदा उसके पास जाओ।
उन अद्भुत बातों को स्मरण करो जिनको यहोवा करता है।
    उसके आश्चर्य कर्म और उसके विवेकपूर्ण निर्णयों को याद रखो।
तुम परमेश्वर के सेवक इब्राहीम के वंशज हो।
    तुम याकूब के संतान हो, वह व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने चुना था।

भजन संहिता 105:16-22

16 परमेश्वर ने उस देश में अकाल भेजा।
    और लोगों के पास खाने को पर्याप्त खाना नहीं रहा।
17 किन्तु परमेश्वर ने एक व्यक्ति को उनके आगे जाने को भेजा जिसका नाम यूसुफ था।
    यूसुफ को एक दास के समान बेचा गया था।
18 उन्होंने यूसुफ के पाँव में रस्सी बाँधी।
    उन्होंने उसकी गर्दन में एक लोहे का कड़ा डाल दिया।
19 यूसुफ को तब तक बंदी बनाये रखा जब तक वे बातें जो उसने कहीं थी सचमुच घट न गयी।
    यहोवा ने सुसन्देश से प्रमाणित कर दिया कि यूसुफ उचित था।
20 मिस्र के राजा ने इस तरह आज्ञा दी कि यूसुफ के बंधनों से मुक्त कर दिया जाये।
    उस राष्ट्र के नेता ने कारागार से उसको मुक्त कर दिया।
21 यूसुफ को अपने घर बार का अधिकारी बना दिया।
    यूसुफ राज्य में हर वस्तु का ध्यान रखने लगा।
22 यूसुफ अन्य प्रमुखों को निर्देश दिया करता था।
    यूसुफ ने वृद्ध लोगों को शिक्षा दी।

भजन संहिता 105:45

45 परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया ताकि लोग उसकी व्यवस्था माने।
    परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया ताकि वे उसकी शिक्षाओं पर चलें।

यहोवा के गुण गाओ!

रोमियों 10:5-15

धार्मिकता के बारे में जो व्यवस्था से प्राप्त होती है, मूसा ने लिखा है, “जो व्यवस्था के नियमों पर चलेगा, वह उनके कारण जीवित रहेगा।”(A) किन्तु विश्वास से मिलने वाली धार्मिकता के विषय में शास्त्र यह कहता है: “तू अपने से यह मत पूछ, ‘स्वर्ग में ऊपर कौन जायेगा?’” (यानी, “मसीह को नीचे धरती पर लाने।”) “या, ‘नीचे पाताल में कौन जायेगा?’” (यानी, “मसीह को धरती के नीचे से ऊपर लाने। यानी मसीह को मरे हुओं में से वापस लाने।”)

शास्त्र यह कहता है: “वचन तेरे पास है, तेरे होठों पर है और तेरे मन में है।”(B) यानी विश्वास का वह वचन जिसका हम प्रचार करते है। कि यदि तू अपने मुँह से कहे, “यीशु मसीह प्रभु है,” और तू अपने मन में यह विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जीवित किया तो तेरा उद्धार हो जायेगा। 10 क्योंकि अपने हृदय के विश्वास से व्यक्ति धार्मिक ठहराया जाता है और अपने मुँह से उसके विश्वास को स्वीकार करने से उसका उद्धार होता है।

11 शास्त्र कहता है: “जो कोई उसमें विश्वास रखता है उसे निराश नहीं होना पड़ेगा।”(C) 12 यह इसलिए है कि यहूदियों और ग़ैर यहूदियों में कोई भेद नहीं क्योंकि सब का प्रभु तो एक ही है। और उसकी दया उन सब के लिए, जो उसका नाम लेते है, अपरम्पार है। 13 “हर कोई जो प्रभु का नाम लेता है, उद्धार पायेगा।”(D)

14 किन्तु वे जो उसमें विश्वास नहीं करते, उसका नाम कैसे पुकारेंगे? और वे जिन्होंने उसके बारे में सुना ही नहीं, उसमें विश्वास कैसे कर पायेंगे? और फिर भला जब तक कोई उन्हें उपदेश देने वाला न हो, वे कैसे सुन सकेंगे? 15 और उपदेशक तब तक उपदेश कैसे दे पायेंगे जब तक उन्हें भेजा न गया हो? जैसा कि शास्त्रों में कहा है: “सुसमाचार लाने वालों के चरण कितने सुन्दर हैं।”(E)

मत्ती 14:22-33

यीशु का झील पर चलना

(मरकुस 6:45-52; यूहन्ना 6:16-21)

22 इसके तुरंत बाद यीशु ने अपने शिष्यों को नाव पर चढ़ाया और जब तक वह भीड़ को विदा करे, उनसे गलील की झील के पार अपने से पहले ही जाने को कहा। 23 भीड़ को विदा करके वह अकेले में प्रार्थना करने को पहाड़ पर चला गया। साँझ होने पर वह वहाँ अकेला था। 24 तब तक नाव किनारे से मीलों दूर जा चुकी थी और लहरों में थपेड़े खाती डगमगा रही थी। सामने की हवा चल रही थी।

25 सुबह कोई तीन और छः बजे के बीच यीशु झील पर चलता हुआ उनके पास आया। 26 उसके शिष्यों ने जब उसे झील पर चलते हुए देखा तो वह घबराये हुए आपस में कहने लगे “यह तो कोई भूत है!” वे डर के मारे चीख उठे।

27 यीशु ने तत्काल उनसे बात करते हुए कहा, “हिम्मत रखो! यह मैं हूँ! अब और मत डरो।”

28 पतरस ने उत्तर देते हुए उससे कहा, “प्रभु, यदि यह तू है, तो मुझे पानी पर चलकर अपने पास आने को कह।”

29 यीशु ने कहा, “चला आ।”

पतरस नाव से निकल कर पानी पर यीशु की तरफ चल पड़ा। 30 उसने जब तेज हवा देखी तो वह घबराया। वह डूबने लगा और चिल्लाया, “प्रभु, मेरी रक्षा कर।”

31 यीशु ने तत्काल उसके पास पहुँच कर उसे सँभाल लिया और उससे बोला, “ओ अल्पविश्वासी, तूने संदेह क्यों किया?”

32 और वे नाव पर चढ़ आये। हवा थम गयी। 33 नाव पर के लोगों ने यीशु की उपासना की और कहा, “तू सचमुच परमेश्वर का पुत्र है।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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