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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
उत्पत्ति 29:15-28

लाबान याकूब के साथ धोखा करता है

15 एक दिन लाबान ने याकूब से कहा, “यह ठीक नहीं है कि तुम हमारे यहाँ बिना बेतन में काम करते रहो। तुम रिश्तेदार हो, दास नहीं। मैं तुम्हें क्या वेतन दूँ?”

16 लाबान की दो पुत्रियाँ थीं। बड़ी लिआ थी और छोटी राहेल।

17 राहेल सुन्दर थी और लिआ की धुंधली आँखें थीं।[a] 18 याकूब राहेल से प्रेम करता था। याकूब ने लाबान से कहा, “यदि तुम मुझे अपनी पुत्री राहेल के साथ विवाह करने दो तो मैं तुम्हारे यहाँ सात साल तक काम कर सकता हूँ।”

19 लाबान ने कहा, “यह उसके लिए अच्छा होगा कि किसी दूसरे के बजाय वह तुझसे विवाह करे। इसलिए मेरे साथ ठहरो।”

20 इसलिए याकूब ठहरा और सात साल तक लाबान के लिए काम करता रहा। लेकिन यह समय उसे बहुत कम लगा क्योंकि वह राहेल से बहुत प्रेम करता था।

21 सात साल के बाद उसने लाबान से कहा, “मुझे राहेल को दो जिससे मैं उससे विवाह करूँ। तुम्हारे यहाँ मेरे काम करने का समय पूरा हो गया।”

22 इसलिए लाबान ने उस जगह के सभी लोगों को एक दावत दी। 23 उस रात लाबान अपनी पुत्री लिआ को याकूब के पास लाया। याकूब और लिआ ने परस्पर शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया। 24 (लाबान ने अपनी पुत्री को, सेविका के रूप में अपनी नौकरानी जिल्पा को दिया।) 25 सबेरे याकूब ने जाना कि वह लिआ के साथ सोया था। याकूब ने लाबान से कहा, “तुमने मुझे धोखा दिया है। मैंने तुम्हारे लिए कठिन परिश्रम इसलिए किया कि मैं राहेल से विवाह कर सकूँ। तुमने मुझे धोखा क्यों दिया?”

26 लाबान ने कहा, “हम लोग अपने देश में छोटी पुत्री का बड़ी पुत्री से पहले विवाह नहीं करने देंगे। 27 किन्तु विवाह के उत्सव को पूरे सप्ताह मनाते रहो और मैं राहेल को भी तुम्हें विवाह के लिए दूँगा। परन्तु तुम्हें और सात वर्ष तक मेरी सेवा करनी पड़ेगी।”

28 इसलिए याकूब ने यही किया और सप्ताह को बिताया। तब लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को भी उसे उसकी पत्नी के रूप में दिया।

भजन संहिता 105:1-11

यहोवा का धन्यवाद करो! तुम उसके नाम की उपासना करो।
    लोगों से उनका बखान करो जिन अद्भुत कामों को वह किया करता है।
यहोवा के लिये तुम गाओ। तुम उसके प्रशंसा गीत गाओ।
    उन सभी आश्चर्यपूर्ण बातों का वर्णन करो जिनको वह करता है।
यहोवा के पवित्र नाम पर गर्व करो।
    ओ सभी लोगों जो यहोवा के उपासक हो, तुम प्रसन्न हो जाओ।
सामर्थ्य पाने को तुम यहोवा के पास जाओ।
    सहारा पाने को सदा उसके पास जाओ।
उन अद्भुत बातों को स्मरण करो जिनको यहोवा करता है।
    उसके आश्चर्य कर्म और उसके विवेकपूर्ण निर्णयों को याद रखो।
तुम परमेश्वर के सेवक इब्राहीम के वंशज हो।
    तुम याकूब के संतान हो, वह व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने चुना था।
यहोवा ही हमारा परमेश्वर है।
    सारे संसार पर यहोवा का शासन है।
परमेश्वर की वाचा सदा याद रखो।
    हजार पीढ़ियों तक उसके आदेश याद रखो।
इब्राहीम के साथ परमेश्वर ने वाचा बाँधा था!
    परमेश्वर ने इसहाक को वचन दिया था।
10 परमेश्वर ने याकूब (इस्राएल) को व्यवस्था विधान दिया।
    परमेश्वर ने इस्राएल के साथ वाचा किया। यह सदा सर्वदा बना रहेगा।
11 परमेश्वर ने कहा था, “कनान की भूमि मैं तुमको दूँगा।
    वह धरती तुम्हारी हो जायेगी।”

भजन संहिता 105:45

45 परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया ताकि लोग उसकी व्यवस्था माने।
    परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया ताकि वे उसकी शिक्षाओं पर चलें।

यहोवा के गुण गाओ!

भजन संहिता 128

आरोहण गीत।

यहोवा के सभी भक्त आनन्दित रहते हैं।
    वे लोग परमेश्वर जैसा चाहता, वैसा गाते हैं।

तूने जिनके लिये काम किया है, उन वस्तुओं का तू आनन्द लेगा।
    उन ऐसी वस्तुओं को कोई भी व्यक्ति तुझसे नहीं छिनेगा। तू प्रसन्न रहेगा और तेरे साथ भली बातें घटेंगी।
घर पर तेरी घरवाली अंगूर की बेल सी फलवती होगी।
    मेज के चारों तरफ तेरी संतानें ऐसी होंगी, जैसे जैतून के वे पेड़ जिन्हें तूने रोपा है।
इस प्रकार यहोवा अपने अनुयायिओं को
    सचमुच आशीष देगा।
यहोवा सिय्योन से तुझ को आशीर्वाद दे यह मेरी कामना है।
    जीवन भर यरूशलेम में तुझको वरदानों का आनन्द मिले।
तू अपने नाती पोतों को देखने के लिये जीता रहे यह मेरी कामना है।

इस्राएल में शांति रहे।

रोमियों 8:26-39

26 ऐसे ही जैसे हम कराहते हैं, आत्मा हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करने आती है क्योंकि हम नहीं जानते कि हम किसके लिये प्रार्थना करें। किन्तु आत्मा स्वयं ऐसी आहें भर कर जिनकी शब्दों में अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती, हमारे लिए विनती करती है। 27 किन्तु वह अन्तर्यामी जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है। क्योंकि परमेश्वर की इच्छा से ही वह परमेश्वर के पवित्र जनों के लिए मध्यस्थता करती है।

28 और हम जानते हैं कि हर परिस्थिति में वह आत्मा परमेश्वर के भक्तों के साथ मिल कर वह काम करता है जो भलाई ही लाते हैं उन सब के लिए जिन्हें उसके प्रयोजन के अनुसार ही बुलाया गया है। 29 जिन्हें उसने पहले ही चुना उन्हें पहले ही अपने पुत्र के रूप में ठहराया ताकि बहुत से भाइयों में वह सबसे बड़ा भाई बन सके। 30 जिन्हें उसने पहले से निश्चित किया, उन्हें भी उसने बुलाया और जिन्हें उसने बुलाया, उन्हें उसने धर्मी ठहराया और जिन्हें उसने धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी प्रदान की।

परमेश्वर का प्रेम

31 तो इसे देखते हुए हम क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारे पक्ष में है तो हमारे विरोध में कौन हो सकता है? 32 उसने जिसने अपने पुत्र तक को बचा कर नहीं रखा बल्कि उसे हम सब के लिए मरने को सौंप दिया। वह भला हमें उसके साथ और सब कुछ क्यों नहीं देगा? 33 परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर ऐसा कौन है जो, दोष लगायेगा? वह परमेश्वर ही है जो उन्हें निर्दोष ठहराता है। 34 ऐसा कौन है जो उन्हें दोषी ठहराएगा? मसीह यीशु वह है जो मर गया (और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि) उसे फिर जिलाया गया। जो परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है और हमारी ओर से विनती भी करता है 35 कौन है जो हमें मसीह के प्यार से अलग करेगा? यातना या कठिनाई या अत्याचार या अकाल या नंगापन या जोख़िम या तलवार? 36 जैसा कि शास्त्र कहता है:

“तेरे लिये (मसीह) सारे दिन हमें मौत को सौंपा जाता है।
    हम काटी जाने वाली भेड़ जैसे समझे जाते हैं।”(A)

37 तब भी उसके द्वारा जो हमें प्रेम करता है, इन सब बातों में हम एक शानदार विजय पा रहे हैं। 38 क्योंकि मैं मान चुका हूँ कि न मृत्यु और न जीवन, न स्वर्गदूत और न शासन करने वाली आत्माएँ, न वर्तमान की कोई वस्तु और न भविष्य की कोई वस्तु, न आत्मिक शक्तियाँ, 39 न कोई हमारे ऊपर का और न हमसे नीचे का, न सृष्टि की कोई और वस्तु हमें प्रभु के उस प्रेम से, जो हमारे भीतर प्रभु यीशु मसीह के प्रति है, हमें अलग कर सकेगी।

मत्ती 13:31-33

कई अन्य दृष्टान्त-कथाएँ

(मरकुस 4:30-34; लूका 13:18-21)

31 यीशु ने उनके सामने और दृष्टान्त-कथाएँ रखीं: “स्वर्ग का राज्य राई के छोटे से बीज के समान होता है, जिसे किसी ने लेकर खेत में बो दिया हो। 32 यह बीज छोटे से छोटा होता है किन्तु बड़ा होने पर यह बाग के सभी पौधों से बड़ा हो जाता है। यह पेड़ बनता है और आकाश के पक्षी आकर इसकी शाखाओं पर शरण लेते हैं।”

33 उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा और कही: “स्वर्ग का राज्य खमीर के समान है, जिसे किसी स्त्री ने तीन बार आटे में मिलाया और तब तक उसे रख छोड़ा जब तक वह सब का सब खमीर नहीं हो गया।”

मत्ती 13:44-52

धन का भण्डार और मोती का दृष्टान्त

44 “स्वर्ग का राज्य खेत में गड़े धन जैसा है। जिसे किसी मनुष्य ने पाया और फिर उसे वहीं गाड़ दिया। वह इतना प्रसन्न हुआ कि उसने जो कुछ उसके पास था, जाकर बेच दिया और वह खेत मोल ले लिया।

45 “स्वर्ग का राज्य ऐसे व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में हो। 46 जब उसे एक अनमोल मोती मिला तो जाकर जो कुछ उसके पास था, उसने बेच डाला, और मोती मोल ले लिया।

मछली पकड़ने का जाल

47 “स्वर्ग का राज्य मछली पकड़ने के लिए झील में फेंके गए एक जाल के समान भी है। जिसमें तरह तरह की मछलियाँ पकड़ी गयीं। 48 जब वह जाल पूरा भर गया तो उसे किनारे पर खींच लिया गया। और वहाँ बैठ कर अच्छी मछलियाँ छाँट कर टोकरियों में भर ली गयीं किन्तु बेकार मछलियाँ फेंक दी गयीं। 49 सृष्टि के अन्त में ऐसा ही होगा। स्वर्गदूत आयेंगे और धर्मियों में से पापियों को छाँट कर 50 धधकते भाड़ में झोंक देंगे जहाँ बस रोना और दाँत पीसना होगा।”

51 यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा, “तुम ये सब बातें समझते हो?”

उन्होंने उत्तर दिया, “हाँ!”

52 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “देखो, इसीलिये हर धर्मशास्त्री जो परमेश्वर के राज्य को जानता है, एक ऐसे गृहस्वामी के समान है, जो अपने कठोर से नई-पुरानी वस्तुओं को बाहर निकालता है।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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