Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
13 हे यहोवा, तूने मेरी समूची देह को बनाया।
तू मेरे विषय में सबकुछ जानता था जब मैं अभी माता की कोख ही में था।
14 हे यहोवा, तुझको उन सभी अचरज भरे कामों के लिये मेरा धन्यवाद,
और मैं सचमुच जानता हूँ कि तू जो कुछ करता है वह आश्चर्यपूर्ण है।
15 मेरे विषय में तू सब कुछ जानता है।
जब मैं अपनी माता की कोख में छिपा था, जब मेरी देह रूप ले रही थी तभी तूने मेरी हड्डियों को देखा।
16 हे यहोवा, तूने मेरी देह को मेरी माता के गर्भ में विकसते देखा। ये सभी बातें तेरी पुस्तक में लिखीं हैं।
हर दिन तूने मुझ पर दृष्टी की। एक दिन भी तुझसे नहीं छूटा।
17 हे परमेश्वर, तेरे विचार मेरे लिये कितने महत्वपूर्ण हैं।
तेरा ज्ञान अपरंपार है।
18 तू जो कुछ जानता है, उन सब को यदि मैं गिन सकूँ तो वे सभी धरती के रेत के कणों से अधिक होंगे।
किन्तु यदि मैं उनको गिन पाऊँ तो भी मैं तेरे साथ में रहूँगा।
3 याकूब का भाई एसाव सेईर नामक प्रदेश में रहता था। यह एदोम का पहाड़ी प्रदेश था। याकूब ने एसाव के पास दूत भेजा। 4 याकूब ने दूत से कहा, “मेरे स्वामी एसाव को यह खबर दो: ‘तुम्हारा सेवक याकूब कहता है, मैं इन सारे वर्षों लाबान के साथ रहा हूँ। 5 मेरे पास मवेशी, गधे, रेवड़े और बहुत से नौकर हैं। मैं इन्हें तुम्हारे पास भेजता हूँ और चाहता हूँ कि तुम हमें स्वीकार करो।’”
6 दूत याकूब के पास लौटा और बोला, “हम तुम्हारे भाई एसाव के पास गए। वह तुमसे मिलने आ रहा है। उसके साथ चार सौ सशस्त्र वीर हैं।”
7 उस सन्देश ने याकूब को डरा दिया। उसने अपने सभी साथीयों को दो दलों में बाँट दिया। उसने अपनी सभी रेवड़ों, मवेशियों के झुण्ड और ऊँटों को दो भागों में बाँटा। 8 याकूब ने सोचा, “यदि एसाव आकर एक भाग को नष्ट करता है तो दूसरा भाग सकता है और बच सकता है।”
9 याकूब ने कहा, “हे मेरे पूर्वज इब्राहीम के परमेश्वर। हे मेरे पिता इसहाक के परमेश्वर। तूने मुझे अपने देश में लौटने और अपने परिवार में आने के लिए कहा। तूने कहा कि तू मेरी भलाई करेगा। 10 तू मुझ पर बहुत दयालु रहा है। तूने मेरे लिए बहुत अच्छी चीजें की हैं। पहली बार मैंने यरदन नदी के पास यात्रा की, मेरे पास टहलने की छड़ी[a] के अतिरिक्त कुछ भी न था। किन्तु मेरे पास अब इतनी चीजें हैं कि मैं उनको पूरे दो दलों में बाँट सकूँ। 11 तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके मुझे मेरे भाई एसाव से बचा। मैं उससे डरा हुआ हूँ। इसलिए कि वह आएगा और हम सभी को, यहाँ तक कि बच्चों सहित माताओं को भी जान से मार डालेगा। 12 हे यहोवा, तूने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हारी भलाई करूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को बढ़ाऊँगा और तुम्हारे वंशजों को समुद्र के बालू के कणों के समान बढ़ा दूँगा। वे इतने अधिक होंगे कि गिने नहीं जा सकेंगे।’”
13 याकूब रात को उस जगह ठहरा। याकूब ने कुछ चीजें एसाव को भेंट देने के लिए तैयार कीं। 14 याकूब ने दो सौ बकरियाँ, बीस बकरे, दो सौ भेड़ें तथा बीस नर भेड़े लिए। 15 याकूब ने तीस ऊँट और उनके बच्चे, चालीस गायें और दस बैल, बीस गदहियाँ और दस गदहे लिए। 16 याकूब ने जानवरों का हर एक झुण्ड नौकरों को दिया। तब याकूब ने नौकरों से कहा, “सब जानवरों के हर झुण्ड को अलग कर लो। मेरे आगे—आगे चलो और हर झुण्ड के बीच कुछ दूरी रखो।” 17 याकूब ने उन्हें आदेश दिया। जानवरों के पहले झुण्ड वाले नौकर से याकूब ने कहा, “मेरा भाई एसाव जब तुम्हारे पास आए और तुमसे पूछे, ‘यह किसके जानवर हैं? तुम कहाँ जा रहे हो? तुम किसके नौकर हो?’ 18 तब तुम उत्तर देना, ‘ये जानवर आपके सेवक याकूब के हैं। याकूब ने इन्हें अपने स्वामी एसाव को भेंट के रूप में भेजे हैं, और याकूब भी हम लोगों के पीछे आ रहा है।’”
19 याकूब ने दूसरे नौकर, तीसरे नौकर, और सभी अन्य नौकरों को यही बात करने का आदेश दिया। उसने कहा, “जब तुम लोग एसाव से मिलो तो यही एक बात कहोगे। 20 तुम लोग कहोगे, ‘यह आपकी भेंट है, और आपका सेवक याकूब भी लोगों के पीछे आ रहा है।’”
याकूब ने सोचा, “यदि मैं भेंट के साथ इन पुरुषों को आगे भेजता हूँ तो यह हो सकता है कि एसाव मुझे क्षमा कर दे और मुझको स्वीकार कर ले।” 21 इसलिए याकूब ने एसाव को भेंट भेजी। किन्तु याकूब उस रात अपने पड़ाव में ही ठहरा।
12 इसी स्थान पर परमेश्वर के उन संत जनों की धैर्यपूर्ण सहनशीलता की अपेक्षा है जो परमेश्वर की आज्ञाओं और यीशु में अपने विश्वास का पालन करती है।
13 फिर एक आकाशवाणी को मैंने यह कहते सुना, “इसे लिख अब से आगे वे ही लोग धन्य होगें जो प्रभु में स्थित हो कर मरे हैं।”
आत्मा कहती है, “हाँ, यही ठीक है। उन्हें अपने परिश्रम से अब विश्राम मिलेगा क्योंकि उनके कर्म, उनके साथ हैं।”
धरती की फसल की कटनी
14 फिर मैंने देखा कि मेरे सामने वहाँ एक सफेद बादल था। और उस बादल पर एक व्यक्ति बैठा था जो मनुष्य के पुत्र[a] जैसा दिख रहा था। उसने सिर पर एक स्वर्णमुकुट धारण किया हुआ था और उसके हाथ में एक तेज हँसिया था। 15 तभी मन्दिर में से एक और स्वर्गदूत बाहर निकला। उसने जो बादल पर बैठा था, उससे ऊँचे स्वर में कहा, “हँसिया चला और फसल इकट्ठी कर क्योंकि फसल काटने का समय आ पहुँचा है। धरती की फसल पक चुकी है।” 16 सो जो बादल पर बैठा था, उसने धरती पर अपना हँसिया चलाया तथा धरती की फसल काट ली गयी।
17 फिर आकाश में स्थित मन्दिर में से एक और स्वर्गदूत बाहर निकला। उसके पास भी एक तेज हँसिया था। 18 तभी वेदी से एक और स्वर्गदूत आया। अग्नि पर उसका अधिकार था। उस स्वर्गदूत से ऊँचे स्वर में कहा, “अपने तेज हँसिये का प्रयोग कर और धरती की बेल से अंगूर के गुच्छे उतार ले क्योंकि इसके अंगूर पक चुके हैं।” 19 सो उस स्वर्गदूत ने धरती पर अपना हँसिया चलाया और धरती के अंगूर उतार लिए और उन्हें परमेश्वर के भयंकर कोप की कुण्ड में डाल दिया। 20 अंगूर नगर के बाहर की धानी में रौंद कर निचोड़ लिए गए। धानी में से लहू बह निकला। लहू घोड़े की लगाम जितना ऊपर चढ़ आया और कोई तीन सौ किलो मीटर की दूरी तक फैल गया।
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