Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
नुन्
105 हे यहोवा, तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक
और मार्ग के लिये उजियाला है।
106 तेरे नियम उत्तम हैं।
मैं उन पर चलने का वचन देता हूँ, और मैं अपने वचन का पालन करूँगा।
107 हे यहोवा, बहुत समय तक मैंने दु:ख झेले हैं,
कृपया मुझे अपना आदेश दे और तू मुझे फिर से जीवित रहने दे!
108 हे यहोवा, मेरी विनती को तू स्वीकार कर,
और मुझ को अपनी विधान कि शिक्षा दे।
109 मेरा जीवन सदा जोखिम से भरा हुआ है।
किन्तु यहोवा मैं तेरे उपदेश भूला नहीं हूँ।
110 दुष्ट जन मुझको फँसाने का यत्न करते हैं
किन्तु तेरे आदेशों को मैंने कभी नहीं नकारा है।
111 हे यहोवा, मैं सदा तेरी वाचा का पालन करूँगा।
यह मुझे अति प्रसन्न किया करता है।
112 मैं सदा तेरे विधान पर चलने का
अति कठोर यत्न करूँगा।
2 आमोस के पुत्र यशायाह ने यहूदा और यरूशलेम के बारे में यह सन्देश देखा।
2 यहोवा का मन्दिर पर्वत पर है।
भविष्य में, उस पर्वत को अन्य सभी पर्वतों में सबसे ऊँचा बनाया जायेगा।
उस पर्वत को सभी पहाड़ियों से ऊँचा बनाया जायेगा।
सभी देशों के लोग वहाँ जाया करेंगे।
3 बहुत से लोग वहाँ जाया करेंगे।
वे कहा करेंगे, “हमे यहोवा के पर्वत पर जाना चाहिये।
हमें याकूब के परमेश्वर के मन्दिर में जाना चाहिये।
तभी परमेश्वर हमें अपनी जीवन विधि की शिक्षा देगा
और हम उसका अनुसरण करेंगे।”
सिय्योन पर्वत पर यरूशलेम में, परमेश्वर यहोवा के उपदेशों का सन्देश का आरम्भ होगा
और वहाँ से वह समूचे संसार में फैलेगा।
4 तब परमेश्वर सभी देशों का न्यायी होगा।
परमेश्वर बहुत से लोगों के लिये विवादों का निपटारा कर देगा
और वे लोग लड़ाई के लिए अपने हथियारों का प्रयोग करना बन्द कर देंगे।
अपनी तलवारों से वे हल के फाले बनायेंगे
तथा वे अपने भालों को पौधों को काटने की दँराती के रुप में काम में लायेंगे।
लोग दूसरे लोगों के विरुद्ध लड़ना बन्द कर देंगे।
लोग युद्ध के लिये फिर कभी प्रशिक्षित नहीं होंगे।
यीशु के उपदेशों पर ही मनुष्य का न्याय होगा
44 यीशु ने पुकार कर कहा, “वह जो मुझ में विश्वास करता है, वह मुझ में नहीं, बल्कि उसमें विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है। 45 और जो मुझे देखता है, वह उसे देखता है जिसने मुझे भेजा है। 46 मैं जगत में प्रकाश के रूप में आया ताकि हर वह व्यक्ति जो मुझ में विश्वास रखता है, अंधकार में न रहे।
47 “यदि कोई मेरे शब्दों को सुनकर भी उनका पालन नहीं करता तो भी उसे मैं दोषी नहीं ठहराता क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने नहीं बल्कि उसका उद्धार करने आया हूँ। 48 जो मुझे नकारता है और मेरे वचनों को स्वीकार नहीं करता, उसके लिये एक है जो उसका न्याय करेगा। वह है मेरा वचन जिसका उपदेश मैंने दिया है। अन्तिम दिन वही उसका न्याय करेगा। 49 क्योंकि मैंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा है बल्कि परम पिता ने, जिसने मुझे भेजा है, आदेश दिया है कि मैं क्या कहूँ और क्या उपदेश दूँ। 50 और मैं जानता हूँ कि उसके आदेश का अर्थ है अनन्त जीवन। इसलिये मैं जो बोलता हूँ, वह ठीक वही है जो परम पिता ने मुझ से कहा है।”
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