Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
स्त्री ने फिर कहा
8 मैं अपने प्रियतम की आवाज़ सुनती हूँ।
यह पहाड़ों से उछलती हुई
और पहाड़ियों से कूदती हुई आती है।
9 मेरा प्रियतम सुन्दर कुरंग
अथवा हरिण जैसा है।
देखो वह हमारी दीवार के उस पार खड़ा है,
वह झंझरी से देखते हुए
खिड़कियों को ताक रहा है।
10 मेरा प्रियतम बोला और उसने मुझसे कहा,
“उठो, मेरी प्रिये, हे मेरी सुन्दरी,
आओ कहीं दूर चलें!
11 देखो, शीत ऋतु बीत गई है,
वर्षा समाप्त हो गई और चली गई है।
12 धरती पर फूल खिलें हुए हैं।
चिड़ियों के गाने का समय आ गया है!
धरती पर कपोत की ध्वनि गुंजित है।
13 अंजीर के पेड़ों पर अंजीर पकने लगे हैं।
अंगूर की बेलें फूल रही हैं, और उनकी भीनी गन्ध फैल रही है।
मेरे प्रिय उठ, हे मेरे सुन्दर,
आओ कहीं दूर चलें!”
याकूब राहेल से मिलता है
29 तब याकूब ने अपनी यात्रा जारी रखी। वह पूर्व के प्रदेश में गया। 2 याकूब ने दृष्टि डाली, उसने मैदान में एक कुआँ देखा। वहाँ कुएँ के पास भेड़ों के तीन रेवड़े पड़े हुई थे। यही वह कुआँ था जहाँ ये भेड़ें पानी पीती थीं। वहाँ एक बड़े शिला से कुएँ का मुँह ढका था। 3 जब सभी भेड़ें वहाँ इकट्ठी हो जातीं तो गड़ेंरिये चट्टान को कुएँ के मुँह पर से हटाते थे। तब सभी भेड़े उसका जल पी सकती थीं। जब भेड़ें पी चुकती थीं तब गड़ेरिये शिला को फिर अपनी जगह पर रख देते थे।
4 याकूब ने वहाँ गड़ेंरियों से कहा, “भाईयो, आप लोग कहाँ के हैं?”
उन्होंने उत्तर दिया, “हम हारान के है।”
5 तब याकूब ने कहा, “क्या आप लोग नाहोर के पुत्र लाबान को जानते हैं?”
गड़ेंरियों ने जवाव दिया, “हम लोग उसे जानते हैं।”
6 तब याकूब ने पूछा, “वह कुशल से तो है?”
उन्होंने कहा, “वे ठीक हैं। सब कुछ बहुत अच्छा है। देखो, वह उसकी पुत्री राहेल अपनी भेड़ों के साथ आ रही है।”
7 याकूब ने कहा, “देखो, अभी दिन है और सूरज डूबने में अभी काफी देर है। रात के लिए जानवरों को इकट्ठे करने का अभी समय नहीं है। इसलिए उन्हें पानी दो और उन्हें मैदान में लौट जाने दो।”
8 लेकिन उस गड़ेरिये ने कहा, “हम लोग यह तब तक नहीं कर सकते जब तक सभी रेबड़े इकट्ठे नहीं हो जाते। तब हम लोग शिला को कुएँ से हटाएंगे और सभी भेड़ें पानी पीएँगी।”
9 याकूब जब तक गड़ेंरियों से बातें कर रहा था तब राहेल अपने पिता की भेड़ों के साथ आई। (राहेल का काम भेड़ों की देखभाल करना था।) 10 राहेल लाबान की पुत्री थी। लाबान, रिबका का भाई था, जो याकूब की माँ थी। जब याकूब ने राहेल को देखा तो जाकर शिला को हटाया और भेड़ों को पानी पिलाया। 11 तब याकूब ने राहेल को चूमा और जोर से रोया। 12 याकूब ने बताया कि मैं तुम्हारे पिता के खानदान से हूँ। उसने राहेल को बताया कि मैं रिबका का पुत्र हूँ। इसलिए राहेल घर को दौड़ गई और अपने पिता से यह सब कहा।
13 लाबान ने अपनी बहन के पुत्र, याकूब के बारे में खबर सुनी। इसलिए लाबन उससे मिलने के लिए दौड़ा। लाबान उससे गले मिला, उसे चूमा और उसे अपने घर लाया। याकूब ने जो कुछ हुआ था, उसे लाबान को बताया।
14 तब लाबान ने कहा, “आश्चर्य है, तुम हमारे खानदान से हो।” अतः याकूब लाबान के साथ एक महीने तक रूका।
3 सो यहूदी होने का क्या लाभ या ख़तने का क्या मूल्य? 2 हर प्रकार से बहुत कुछ। क्योंकि सबसे पहले परमेश्वर का उपदेश तो उन्हें ही सौंपा गया। 3 यदि उनमें से कुछ विश्वासघाती हो भी गये तो क्या है? क्या उनका विश्वासघातीपन परमेश्वर की विश्वासपूर्णता को बेकार कर देगा? 4 निश्चय ही नहीं, यदि हर कोई झूठा भी है तो भी परमेश्वर सच्चा ठहरेगा। जैसा कि शास्त्र में लिखा है:
“ताकि जब तू कहे तू उचित सिद्ध हो
और जब तेरा न्याय हो, तू विजय पाये।”(A)
5 सो यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता सिद्ध करे तो हम क्या कहें? क्या यह कि वह अपना कोप हम पर प्रकट करके अन्याय नहीं करता? (मैं एक मनुष्य के रूप में अपनी बात कह रहा हूँ।) 6 निश्चय ही नहीं, नहीं तो वह जगत का न्याय कैसे करेगा।
7 किन्तु तुम कह सकते हो: “जब मेरी मिथ्यापूर्णता से परमेश्वर की सत्यपूर्णता और अधिक उजागर होती है तो इससे उसकी महिमा ही होती है, फिर भी मैं दोषी करार क्यों दिया जाता हूँ?” 8 और फिर क्यों न कहे: “आओ! बुरे काम करें ताकि भलाई प्रकट हो।” जैसा कि हमारे बारे में निन्दा करते हुए कुछ लोग हम पर आरोप लगाते हैं कि हम ऐसा कहते हैं। ऐसे लोग दोषी करार दिये जाने योग्य है। वे सभी दोषी हैं।
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