Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
अगुवा अऊ जवान मनखे मन
5 तुमन म जऊन मन अगुवा अंय, ओमन ला मेंह एक संगी अगुवा के रूप म, अऊ मसीह के दुःख उठाय के एक गवाह के रूप म अऊ परगट होवइया महिमा म सामिल होवइया के रूप म बिनती करत हंव: 2 परमेसर के ओ झुंड के, जऊन ह तुम्हर अधीन हवय, पास्टर के रूप म सेवा करत ओ झुंड के चरवाहा बनव। एह दबाव ले नइं, पर जइसने परमेसर तुमन ले चाहथे, अपन ईछा ले करव; पईसा के लालच म नइं, पर सेवा-भाव ले करव। 3 जऊन मनखेमन तुमन ला सऊंपे गे हवंय, ओमन ऊपर हुकूम झन चलावव, पर झुंड खातिर एक नमूना बनव। 4 अऊ जब मुखिया चरवाहा परगट होही, त तुमन महिमा के ओ मुकुट पाहू, जऊन ह अपन चमक कभू नइं खोवय।
5 हे जवानमन, तुमन घलो ओही किसम ले सियानमन के अधीन रहव। एक-दूसर के संग नमरता ले बरताव करव, काबरकि,
“परमेसर ह घमंडी मनखे के बिरोध करथे,
पर नम्र मनखे ला अनुग्रह देथे।”[a]
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