Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
5 अगले दिन यहूदियों के राजा, पुरनिये और शास्त्री येरूशालेम में इकट्ठा थे. 6 वहाँ महायाजक हन्ना, कायाफ़स, योहन, अलेक्सान्दरॉस तथा महायाजकीय वंश के सभी सदस्य इकट्ठा थे. 7 उन्होंने प्रेरितों को सब के बीच खड़ा कर प्रश्न करना प्रारम्भ कर दिया: “तुमने किस अधिकार से या किस नाम में यह किया है?”
8 तब पवित्रात्मा से भरकर पेतरॉस ने उत्तर दिया: “सम्मान्य राजागण और समाज के पुरनियों! 9 यदि आज हमारा परीक्षण इसलिए किया जा रहा है कि एक अपंग का कल्याण हुआ है और इसलिए कि यह व्यक्ति किस प्रक्रिया द्वारा स्वस्थ हुआ है, 10 तो आप सभी को तथा, सभी इस्राएल राष्ट्र को यह मालूम हो कि यह सब नाज़रेथवासी, मसीह येशु के द्वारा किया गया है, जिन्हें आपने क्रूस का मृत्युदण्ड दिया, किन्तु जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से दोबारा जीवित किया. आज उन्हीं के नाम के द्वारा स्वस्थ किया गया यह व्यक्ति आपके सामने खड़ा है. 11 मसीह येशु ही वह चट्टान हैं
“‘जिन्हें आप भवन निर्माताओं ने ठुकरा कर अस्वीकृत कर दिया,
जो कोने का प्रधान पत्थर बन गए.’
12 उद्धार किसी अन्य में नहीं है क्योंकि आकाश के नीचे मनुष्यों के लिए दूसरा कोई नाम दिया ही नहीं गया जिसके द्वारा हमारा उद्धार हो.”
16 प्रेम क्या है यह हमने इस प्रकार जाना: मसीह येशु ने हमारे लिए प्राणों का त्याग कर दिया. इसलिए हमारा भी एक-दूसरे के लिए अपने प्राणों का त्याग करना सही है. 17 जो कोई संसार की संपत्ति के होते हुए भी साथी विश्वासी की ज़रूरत की अनदेखी करता है, तो कैसे कहा जा सकता है कि उसमें परमेश्वर का प्रेम मौजूद है?
प्रेम करने की विधि
18 प्रियजन, हमारे प्रेम की अभिव्यक्ति वचन व मौखिक नहीं परन्तु कामों और सच्चाई में हो. 19 इसी के द्वारा हमें ढ़ांढ़स मिलता है कि हम उसी सत्य के हैं. इसी के द्वारा हम परमेश्वर के सामने उन सभी विषयों में आश्वस्त हो सकेंगे. 20 जब कभी हमारा अन्तर्मन हम पर आरोप लगाता रहता है; क्योंकि परमेश्वर हमारे हृदय से बड़े हैं, वह सर्वज्ञानी हैं.
21 इसलिए प्रियजन, यदि हमारा मन हम पर आरोप न लगाए तो हम परमेश्वर के सामने निड़र बने रहते हैं 22 तथा हम उनसे जो भी विनती करते हैं, उनसे प्राप्त करते हैं क्योंकि हम उनके आदेशों का पालन करते हैं तथा उनकी इच्छा के अनुसार स्वभाव करते हैं. 23 यह परमेश्वर की आज्ञा है कि हम उनके पुत्र मसीह येशु में विश्वास करें तथा हम में आपस में प्रेम हो जैसा उन्होंने हमें आज्ञा दी है. 24 वह, जो उनके आदेशों का पालन करता है, उनमें स्थिर है और उसके भीतर उनका वास है. इसका अहसास हमें उन्हीं पवित्रात्मा द्वारा होता है, जिन्हें परमेश्वर ने हमें दिया है.
11 “मैं ही आदर्श चरवाहा हूँ. आदर्श चरवाहा अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है. 12 मज़दूर, जो न तो चरवाहा है और न भेड़ों का स्वामी, भेड़िये को आते देख भेड़ों को छोड़ कर भाग जाता है. भेड़िया उन्हें पकड़ता है और वे तितर-बितर हो जाती हैं. 13 इसलिए कि वह मज़दूर है, उसे भेड़ों की कोई चिन्ता नहीं है.
14 “मैं ही आदर्श चरवाहा हूँ. मैं अपनों को जानता हूँ और मेरे अपने मुझे; 15 ठीक जिस प्रकार पिता परमेश्वर मुझे जानते हैं, और मैं उन्हें. भेड़ों के लिए मैं अपने प्राण भेंट कर देता हूँ. 16 मेरी और भी भेड़ें हैं, जो अब तक इस भेड़शाला में नहीं हैं. मुझे उन्हें भी लाना है. वे मेरी आवाज़ सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड़ और एक ही चरवाहा होगा. 17 परमेश्वर मुझसे प्रेम इसीलिए करते हैं कि मैं अपने प्राण भेंट कर देता हूँ—कि उन्हें दोबारा प्राप्त करूँ. 18 कोई भी मुझसे मेरे प्राण छीन नहीं रहा—मैं अपने प्राण अपनी इच्छा से भेंट कर रहा हूँ. मुझे अपने प्राण भेंट करने और उसे दोबारा प्राप्त करने का अधिकार है, जो मुझे अपने पिता की ओर से प्राप्त हुआ है.”
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