Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
50 प्रियजन, शारीरिक लहू और माँस का मनुष्य परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता और न ही नाशमान अविनाशी में. 51 सुनो! मैं तुम पर एक भेद प्रकट करता हूँ: हम सभी सो नहीं जाएँगे परन्तु हम सभी का रूप बदल 52 जाएगा—क्षण भर में, पलक झपकते ही, आखिरी तुरही के स्वर पर. ज्यों ही आखिरी तुरही का स्वर होगा, मरे हुए अविनाशी दशा में जीवित किए जाएँगे और हमारा रूप बदल जाएगा. 53 यह ज़रूरी है कि नाशमान अविनाशी को धारण करे तथा मरणहार अमरता को.
विजयघोष गान. समापन
54 किन्तु जब यह नाशमान अविनाशी को तथा मरणहार अमरता को धारण कर लेगा तब पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो जाएगा:
मृत्यु विजय का निवाला बन गई.
55 मृत्यु! कहाँ है तेरी विजय?
मृत्यु! कहाँ है तेरा ड़ंक?
56 मृत्यु का ड़ंक है पाप और पाप का बल है व्यवस्था. 57 किन्तु हम धन्यवाद करते हैं परमेश्वर का, जो हमें हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा विजय प्रदान करते हैं.
58 इसलिए मेरे प्रियजन, इस सच्चाई के प्रकाश में कि प्रभु में तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं है, तुम प्रभु के काम में उन्नत होते हुए हमेशा दृढ़ तथा स्थिर रहो.
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