Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
भाईचारे के प्रति
8 अन्ततः:, तुम सब हृदय में मैत्री भाव बनाए रखो; सहानुभूति रखो; आपस में प्रेम रखो, करुणामय और नम्र बनो; 9 बुराई का बदला बुराई से तथा निन्दा का उत्तर निन्दा से न दो; परन्तु इसके विपरीत, उन्हें आशीष ही दो क्योंकि इसी के लिए तुम बुलाए गए हो कि तुम्हें मीरास में आशीष प्राप्त हो, 10 क्योंकि लिखा है:
“वह, जो जीवन से प्रेम करना और भले दिन देखना चाहे,
अपनी जीभ को बुराई से,
अपने होठों को छल की बातों से बचाए रखे;
11 तथा बुराई से अलग होकर
भलाई करे; वह शान्ति को खोजे और उसका पालन करे.
12 क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि धर्मियों पर
तथा उनके कान उनकी विनती पर लगे रहते हैं
परन्तु वह बुराई करनेवालों से दूर रहते हैं.”
13 यदि तुम में भलाई की धुन है तो तुम्हें हानि कौन पहुंचाएगा? 14 परन्तु यदि तुम वास्तव में धार्मिकता के कारण कष्ट सहते हो, तो तुम आशीषित हो. उनकी धमकियों से न तो डरो और न घबराओ. 15 मसीह को अपने हृदय में प्रभु के रूप में बसा लो. तुम्हारे अन्दर बसी हुई आशा के प्रति जिज्ञासु हर एक व्यक्ति को उत्तर देने के लिए हमेशा तैयार रहो 16 किन्तु विनम्रता और सम्मान के साथ. अपना विवेक शुद्ध रखो कि जिन विषयों में वे, जो मसीह में तुम्हारे उत्तम स्वभाव की निन्दा करते हैं, लज्जित हों. 17 भलाई के कामों के लिए दुःख सहना अच्छा है—यदि यही परमेश्वर की इच्छा है—इसकी बजाय कि बुराई के लिए दुःख सहा जाए.
18 मसीह ने भी पापों के लिए एक ही बार प्राणों को दे दिया—एक धर्मी ने सभी अधर्मियों के लिए—कि वह तुम्हें परमेश्वर तक ले जाएँ. उनकी शारीरिक मृत्यु तो हुई किन्तु परमेश्वर की आत्मा के द्वारा वह जीवित किए गए.
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