Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
2 कुछ लोग एक लकवा पीड़ित को बिछौने पर उनके पास लाए. उनका विश्वास देख येशु ने रोगी से कहा, “तुम्हारे लिए यह आनन्द का विषय है: तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं.”
3 कुछ शास्त्री आपस में कहने लगे, “परमेश्वर-निन्दा कर रहा है यह!”
4 उनके विचारों का अहसास होने पर येशु उन्हें सम्बोधित कर बोले, “क्यों अपने मनों में बुरा विचार कर रहे हो? 5 कौन सा कथन सरल हो सकता है, ‘तुम्हारे पाप क्षमा हो गए’ या ‘उठो, चलने लगो?’ 6 किन्तु इस का उद्देश्य यह है कि तुम्हें यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप-क्षमा का अधिकार सौंपा गया है.” तब रोगी से येशु ने कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और अपने घर जाओ.” 7 वह उठा और घर चला गया. 8 यह देख भीड़ हैरान रह गई और परमेश्वर का गुणगान करने लगी, जिन्होंने मनुष्यों को इस प्रकार का अधिकार दिया है.
मत्तियाह का बुलाया जाना
(मारक 2:13-17; लूकॉ 5:27-32)
9 वहाँ से जाने के बाद येशु ने चुँगी लेने वाले के आसन पर बैठे हुए एक व्यक्ति को देखा, जिसका नाम मत्तियाह था. येशु ने उसे आज्ञा दी, “मेरे पीछे हो ले.” मत्तियाह उठ कर येशु के साथ हो लिए.
10 जब येशु भोजन के लिए बैठे थे, अनेक चुँगी लेने वाले तथा अपराधी व्यक्ति भी उनके साथ शामिल थे. 11 यह देख फ़रीसियों ने आपत्ति उठाते हुए येशु के शिष्यों से कहा, “तुम्हारे गुरु चुँगी लेने वाले और अपराधी व्यक्तियों के साथ भोजन क्यों करते हैं?”
12 यह सुन येशु ने स्पष्ट किया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं परन्तु रोगी व्यक्ति को होती है. 13 अब जाओ और इस कहावत का अर्थ समझो: मुझे बलि नहीं परन्तु दया चाहिए. क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने के लिए इस पृथ्वी पर आया हूँ.”
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