Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
सामान्य सिद्धान्त
8 अब मूर्तियों को चढ़ाई हुई वस्तुओं के सम्बन्ध में: हम जानते हैं कि हम सब ज्ञानी हैं. वास्तव में तो ज्ञान हमें घमण्ड़ी बनाता है जबकि प्रेम हमें उन्नत करता है. 2 यदि कोई यह समझता है कि वह ज्ञानवान है तो वास्तव में वह अब तक वैसा जान ही नहीं पाया, जैसा जानना उसके लिए ज़रूरी है. 3 वह, जो परमेश्वर से प्रेम करता है, परमेश्वर का परिचित हो जाता है.
4 जहाँ तक मूर्तियों को चढ़ाई हुई वस्तुओं को खाने का प्रश्न है, हम इस बात को भली-भांति जानते हैं कि सारे संसार में कहीं भी मूर्तियों में परमेश्वर नहीं है तथा एक के अतिरिक्त और कोई परमेश्वर नहीं है. 5 यद्यपि आकाश और पृथ्वी पर अनेक तथाकथित देवता हैं, जैसे कि अनेक देवता और अनेकों प्रभु भी हैं 6 किन्तु हमारे लिए तो परमेश्वर मात्र एक ही हैं—वह पिता—जिनमें हम सब सृष्ट हैं, और हम उसी के लिए हैं. प्रभु एक ही हैं—मसीह येशु—इन्हीं के द्वारा सब कुछ है, इन्हीं के द्वारा हम हैं.
प्रेम के दावे
7 किन्तु सभी को यह बात मालूम नहीं हैं. कुछ व्यक्ति ऐसे हैं, जो अब तक मूर्तियों से जुड़े हैं तथा वे इस भोजन को मूर्तियों को भेंट किया हुआ भोजन मानते हुए खाते हैं. उनका कमज़ोर विवेक अशुद्ध हो गया है. 8 हमें परमेश्वर के पास ले जाने में भोजन का कोई योगदान नहीं होता—भोजन से न तो कोई हानि सम्भव है और न ही कोई लाभ.
9 किन्तु सावधान रहना कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता निर्बलों के लिए ठोकर का कारण न बने. 10 यदि किसी का विवेक कमज़ोर है और वह तुम जैसे ज्ञानी व्यक्ति को मूर्ति के मन्दिर में भोजन करते देख ले तो क्या उसे भी मूर्ति को चढ़ाई हुई वस्तुएं खाने का साहस न मिलेगा? 11 इसमें तुम्हारा ज्ञानी होना उसके विनाश का कारण हो गया, जिसके लिए मसीह येशु ने प्राण दिया. 12 इस प्रकार विश्वासियों के विरुद्ध पाप करने तथा उनके विवेक को, जो कमज़ोर हैं, चोट पहुंचाने के द्वारा तुम मसीह येशु के विरुद्ध पाप करते हो. 13 इसलिए यदि भोजन किसी के लिए ठोकर का कारण बनता है तो मैं माँस का भोजन कभी न करूँगा कि मैं विश्वासियों के लिए ठोकर का कारण न बनूँ.
मसीह येशु की अधिकार भरी शिक्षा
(लूकॉ 4:31-37)
21 वे सब कफ़रनहूम नगर आए. शब्बाथ पर मसीह येशु स्थानीय यहूदी सभागृह में जाकर शिक्षा देने लगे. 22 लोग उनकी शिक्षा से आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु इस प्रकार शिक्षा दे रहे थे कि उन्हें इसका अधिकार है. 23 उसी समय सभागृह में एक व्यक्ति, जो दुष्टात्मा से पीड़ित था, चिल्ला उठा, 24 “नाज़रेथवासी येशु! क्या चाहते हैं आप? क्या आप हमें नाश करने आए हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं: परमेश्वर के पवित्र जन!”
25 “चुप!” उसे फटकारते हुए मसीह येशु ने कहा, “बाहर निकल जा इसमें से!” 26 उस व्यक्ति को मरोड़ते हुए वह प्रेत ऊँचे शब्द में चिल्लाता हुआ उसमें से बाहर निकल गया.
27 सभी हैरान रह गए. वे आपस में विचार करने लगे, “यह सब क्या हो रहा है? यह अधिकारपूर्वक शिक्षा देते हैं और अशुद्ध आत्मा तक को आज्ञा देते है और वे उनका पालन भी करती हैं!” 28 तेज़ी से उनकी ख्याति गलील प्रदेश के आस-पास सब जगह फैल गई.
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