Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
3 तुम सबको हमारे पिता परमेश्वर तथा प्रभु मसीह येशु की ओर से अनुग्रह तथा शान्ति.
आभार व्यक्ति
4 मसीह येशु में तुम्हें दिए गए परमेश्वर के अनुग्रह के लिए मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर के प्रति निरन्तर धन्यवाद करता हूँ 5 क्योंकि तुम मसीह येशु में सब प्रकार से सम्पन्न किए गए हो, सारे ज्ञान और उसकी हर बात में; 6 ठीक जिस प्रकार तुममें मसीह येशु के सन्देश की पुष्टि भी हुई है. 7 परिणामस्वरूप इस समय, जब तुम हमारे प्रभु मसीह येशु के प्रकट होने की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हो, तुममें पवित्रात्मा के द्वारा किसी भी आत्मिक क्षमता का अभाव नहीं है. 8 वही मसीह येशु तुम्हें अन्त तक दृढ़ बनाए रखेंगे कि तुम हमारे प्रभु मसीह येशु के दिन निर्दोष पाए जाओ. 9 परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं, जिनके द्वारा तुम्हारा बुलावा उनके पुत्र, मसीह येशु हमारे प्रभु की संगति में किया गया है.
24 “उन दिनों में क्लेश के तुरन्त बाद,
“‘सूर्य अंधेरा हो जाएगा,
और चन्द्रमा प्रकाश न देगा;
25 तथा आकाश से तारे नीचे गिरने लगेंगे.
आकाशमण्डल की शक्तियाँ हिलायी जाएँगी.’
26 “तब आकाश में मनुष्य के पुत्र का चिह्न प्रकट होगा. पृथ्वी के सभी कुल दुःखी हो जाएँगे. और वे मनुष्य के पुत्र को आकाश में बादलों पर सामर्थ्य और प्रताप के साथ आता हुआ देखेंगे. 27 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, जो चारों दिशाओं से, पृथ्वी के एक छोर से आकाश के दूसरे छोर तक जा कर उनके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे.”
28 “अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो: जब उसमें कोंपलें फूटने लगती और पत्तियाँ निकलने लगती हैं तो तुम जान लेते हो कि गर्मी का समय पास है. 29 इसी प्रकार तुम जब भी इन सभी घटनाओं को देखो तो समझ लेना कि वह पास है—परन्तु द्वार पर ही है. 30 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: इन घटनाओं के पूरे हुए बिना इस युग का अंत नहीं होगा. 31 आकाश तथा पृथ्वी का मिट जाना सम्भव है किन्तु मेरे शब्द का नहीं.”
सतत सावधानी की आज्ञा
(मत्ति 24:36-51; लूकॉ 21:34-38)
32 “वास्तव में उस दिन तथा उस क्षण के विषय में किसी को मालूम नहीं है—स्वर्ग में न स्वर्गदूतों को और न ही पुत्र को—यह मात्र पिता को ही मालूम है.
33 “अब इसलिए कि तुम्हें उस विशेष क्षण के घटित होने के विषय में कुछ भी मालूम नहीं है, सावधान रहो, सतर्कता बनाए रखो. 34 यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी उस व्यक्ति की, जो अपनी सारी गृहस्थी अपने दासों को सौंप कर दूर यात्रा पर निकल पड़ा. उसने हर एक दास को भिन्न-भिन्न ज़िम्मेदारी सौंपी और द्वारपाल को भी सावधान रहने की आज्ञा दी.
35 “इसी प्रकार तुम भी सावधान रहो क्योंकि तुम यह नहीं जानते कि घर का स्वामी लौट कर कब आएगा—शाम को, आधी रात या भोर को मुर्गे की बाँग के समय. 36 ऐसा न हो कि उसका आना अचानक हो और तुम गहरी नींद में पाए जाओ. 37 जो मैं तुमसे कह रहा हूँ, वह सभी से सम्बन्धित है: सावधान रहो.”
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