Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
मसीही स्वभाव
12 प्रियजन, तुमसे हमारी विनती है कि तुम उनकी सराहना करो, जो तुम्हारे बीच लगन से परिश्रम कर रहे हैं, जो प्रभु में तुम्हारे लिए ज़िम्मेदार हैं तथा तुम्हें शिक्षा देते हैं. 13 उनके परिश्रम को ध्यान में रखते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक ऊँचा सम्मान दो. आपस में मेल-मिलाप बनाए रखो. 14 प्रियजन, हम तुमसे विनती करते हैं कि जो बिगड़े हुए हैं, उन्हें फटकार लगाओ; जो डरे हुए हैं, उन्हें ढ़ांढ़स दो, दुर्बलों की सहायता करो तथा सभी के साथ धीरजवान बने रहो. 15 यह ध्यान रखो कि कोई भी बुराई का बदला बुराई से न लेने पाए किन्तु हमेशा वही करने का प्रयास करो, जिसमें पारस्परिक और सभी का भला हो.
16 हमेशा आनन्दित रहो, 17 प्रार्थना लगातार की जाए. 18 हर एक परिस्थिति में धन्यवाद प्रकट किया जाए क्योंकि मसीह येशु में तुमसे परमेश्वर की यही आशा है.
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