Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
प्रभु का वह दिन
5 प्रियजन, इसकी कोई ज़रूरत नहीं कि तुम्हें समयों और कालों के विषय में लिखा जाए. 2 तुम्हें यह भली प्रकार मालूम है कि प्रभु के दिन का आगमन ठीक वैसा ही अचानक होगा जैसा रात में एक चोर का. 3 लोग कह रहे होंगे, “सब कुशल है, कोई संकट है ही नहीं!” उसी समय बिना किसी पहले से जानकारी के उन पर विनाश टूट पड़ेगा—गर्भवती की प्रसव-पीड़ा के समान. उनका भाग निकलना असम्भव होगा.
4 किन्तु तुम, प्रियजन, इस विषय में अन्धकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर एकाएक एक चोर के समान अचानक से आ पड़े. 5 तुम सभी ज्योति की सन्तान हो—दिन के वंशज. हम न तो रात के हैं और न अन्धकार के, 6 इसलिए हम बाकियों के समान सोए हुए नहीं परन्तु सावधान और व्यवस्थित रहें 7 क्योंकि वे, जो सोते हैं, रात में सोते हैं और वे, जो मतवाले होते हैं, रात में ही मतवाले होते हैं. 8 अब इसलिए कि हम दिन के बने हुए हैं, हम विश्वास और प्रेम का कवच तथा उद्धार की आशा का टोप धारण कर व्यवस्थित हो जाएँ. 9 परमेश्वर द्वारा हम क्रोध के लिए नहीं परन्तु हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा उद्धार पाने के लिए ठहराए गए हैं, 10 जिन्होंने हमारे लिए प्राण त्याग दिया कि चाहे हम जागते हों या सोते हों, उनके साथ निवास करें. 11 इसलिए तुम, जैसा इस समय कर ही रहे हो, एक-दूसरे को आपस में प्रोत्साहित तथा उन्नत करने में लगे रहो.
सोने के सिक्कों का दृष्टान्त
14 “स्वर्ग-राज्य उस व्यक्ति के समान भी है, जो एक यात्रा के लिए तैयार था, जिसने हर एक सेवक को उसकी योग्यता के अनुरूप सम्पत्ति सौंप दी. 15 एक को पाँच सोने के सिक्के,[a] एक को दो तथा एक को एक. इसके बाद वह अपनी यात्रा पर चला गया. 16 जिस सेवक को सोने के सिक्के दिए गए थे, उसने तुरन्त उस धन का व्यापार में लेन देन किया, जिससे उसने पाँच सोने के सिक्के और कमाए. 17 इसी प्रकार उस सेवक ने भी, जिसे दो सोने के सिक्के दिए गए थे, दो और कमाए. 18 किन्तु जिसे एक सोने का सिक्का दिया गया था, उसने जा कर भूमि में गड्ढा खोदा और अपने स्वामी की दी हुई वह सम्पत्ति वहाँ छिपा दी.
19 “बड़े दिनों के बाद उनके स्वामी ने लौट कर उनसे हिसाब लिया. 20 जिसे पाँच सोने के सिक्के दिए गए थे, उसने अपने साथ पाँच सोने के सिक्के और ला कर स्वामी से कहा, ‘महोदय, आपने मुझे पाँच सोने के सिक्के दिए थे. यह देखिए, मैंने इनसे पाँच और कमाए हैं.’
21 “स्वामी ने उससे कहा, ‘बड़े अच्छे, मेरे योग्य तथा विश्वसनीय सेवक! तुम थोड़े धन में विश्वसनीय पाए गए इसलिए मैं तुम्हें अनेक ज़िम्मेदारियाँ सौंपूँगा. अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो जाओ.’
22 “वह सेवक भी आया, जिसे दो सोने के सिक्के दिए गए थे. उसने स्वामी से कहा, ‘महोदय, आपने मुझे दो सोने के सिक्के दिए थे. यह देखिए, मैंने दो और कमाए हैं!’
23 “उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘बड़े अच्छे, मेरे योग्य तथा विश्वसनीय सेवक! तुम थोड़े धन में विश्वसनीय पाए गए इसलिए मैं तुम्हें भी अनेक ज़िम्मेदारियाँ सौंपूँगा. अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो जाओ.’
24 “तब वह सेवक भी उपस्थित हुआ, जिसे एक सोने का सिक्का दिया गया था. उसने स्वामी से कहा, ‘महोदय, मैं जानता था कि आप एक कठोर व्यक्ति हैं. आप वहाँ से फसल काटते हैं, जहाँ आपने बोया ही नहीं तथा वहाँ से फसल इकट्ठा करते हैं, जहाँ आपने बीज डाला ही नहीं. 25 इसलिए भय के कारण मैंने आपकी दी हुई निधि भूमि में छिपा दी. देख लीजिए, जो आपका था, वह मैं आपको लौटा रहा हूँ.’
26 “स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट, और आलसी सेवक! जब तू यह जानता ही था कि मैं वहाँ से फसल काटता हूँ, जहाँ मैंने बोया ही न था तथा वहाँ से फसल इकट्ठा करता हूँ, जहाँ मैंने बीज बोया ही नहीं? 27 तब तो तुझे मेरी सम्पत्ति महाजनों के पास रख देनी थी कि मेरे लौटने पर मुझे मेरी सम्पत्ति ब्याज सहित प्राप्त हो जाती.’
28 “‘इसलिए इससे यह सोने का सिक्का ले कर उसे दे दो, जिसके पास अब दस सोने के सिक्के हैं.’ 29 यह इसलिए कि हर एक को, जिसके पास है, और दिया जाएगा और वह धनी हो जाएगा; किन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 30 ‘इस निकम्मे सेवक को बाहर अन्धकार में फेंक दो जहाँ हमेशा रोना और दाँत पीसना होता रहेगा.’”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.