Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
पौलॉस का आदर्श
2 प्रियजन, तुम्हें यह अहसास तो है ही कि तुमसे भेंट करने के लिए हमारा आना व्यर्थ नहीं था, 2 जैसा कि तुम्हें मालूम ही है कि फ़िलिप्पॉय नगर में दुःख उठाने और उपद्रव सहने के बाद घोर विरोध की स्थिति में भी तुम्हें परमेश्वर का ईश्वरीय सुसमाचार सुनाने के लिए हमें परमेश्वर के द्वारा साहस प्राप्त हुआ. 3 हमारा उपदेश न तो भरमा देने वाली शिक्षा थी, न अशुद्ध उद्धेश्य से प्रेरित और न ही छलावा, 4 परन्तु ठीक जिस प्रकार परमेश्वर के समर्थन में हमें ईश्वरीय सुसमाचार सौंपा गया. हम मनुष्यों की प्रसन्नता के लिए नहीं परन्तु परमेश्वर की संतुष्टि के लिए, जिनकी दृष्टि हृदय पर लगी रहती है, ईश्वरीय सुसमाचार का संबोधन करते हैं. 5 यह तो तुम्हें मालूम ही है कि न तो हमारी बातों में चापलूसी थी और न ही हमने लोभ से प्रेरित हो कुछ किया—परमेश्वर गवाह हैं; 6 हमने मनुष्यों से सम्मान पाने की भी कोशिश नहीं की; न तुमसे और न किसी और से.
मसीह के प्रेरित होने के कारण तुमसे सहायता पाना हमारा अधिकार था. 7 तुम्हारे प्रति हमारा व्यवहार वैसा ही कोमल था जैसा एक शिशु का पोषण करती माता का, जो स्वयं बड़ी कोमलतापूर्वक अपने बालकों का पोषण करती है. 8 इस प्रकार तुम्हारे प्रति एक मधुर लगाव होने के कारण हम न केवल तुम्हें ईश्वरीय सुसमाचार देने के लिए परन्तु तुम्हारे साथ स्वयं अपना जीवन सहर्ष मिल-बांट कर संगति करने के लिए भी लालायित थे—क्योंकि तुम हमारे लिए अत्यन्त प्रिय बन चुके थे.
सबसे बड़ी आज्ञा
(मारक 12:28-34)
34 जब फ़रीसियों को यह मालूम हुआ कि येशु ने सदूकियों का मुँह बंद कर दिया है, वे स्वयं एकजुट हो गए. 35 उनमें से एक व्यवस्थापक ने येशु को परखने की मनसा से उनके सामने यह प्रश्न रखा: 36 “गुरुवर, व्यवस्था के अनुसार सबसे बड़ी आज्ञा कौन सी है?” 37 येशु ने उसे उत्तर दिया, “तुम प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे हृदय, अपने सारे प्राण तथा अपनी सारी समझ से प्रेम करो. 38 यही प्रमुख तथा सबसे बड़ी आज्ञा है. 39 ऐसी ही दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा है अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे तुम स्वयं से करते हो. 40 इन्हीं दो आदेशों पर सारी व्यवस्था और भविष्यवाणियां आधारित हैं.”
फ़रीसियों के लिए असम्भव प्रश्न
(मारक 12:35-37; लूकॉ 20:41-44)
41 वहाँ इकट्ठा फ़रीसियों के सामने येशु ने यह प्रश्न रखा, 42 “मसीह के विषय में क्या मत है आपका—किसकी सन्तान है वह?”
“दाविद की,” उन्होंने उत्तर दिया.
43 तब येशु ने उनसे आगे पूछा, “तब फिर पवित्रात्मा से भरकर दाविद उसे ‘प्रभु’ कह कर सम्बोधित क्यों करते हैं? दाविद ने कहा है
44 “‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा,
“मेरी दायीं ओर बैठे रहो,
जब तक मैं तुम्हारे शत्रुओं को
तुम्हारे अधीन न कर दूँ.” ’[a]
45 यदि दाविद मसीह को प्रभु कह कर सम्बोधित करते हैं तो वह उनकी सन्तान कैसे हुए?” 46 इसके उत्तर में न तो फ़रीसी कुछ कह सके और न ही इसके बाद किसी को भी उनसे कोई प्रश्न करने का साहस हुआ.
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