Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप
(मारक 3:20-30; लूकॉ 11:14-28)
22 तब येशु के सामने एक ऐसा व्यक्ति लाया गया, जो प्रेतात्मा से पीड़ित था. वह अंधा तथा गूँगा था. येशु ने उसे स्वस्थ कर दिया. परिणामस्वरूप वह व्यक्ति बातें करने और देखने लगा. 23 सभी भीड़ चकित रह गई. मौज़ूद लोग आपस में विचार कर रहे थे, “कहीं यही दाविद का वह वंशज तो नहीं?”
24 किन्तु यह सुन कर फ़रीसियों ने इसके विषय में अपना मत दिया, “यह व्यक्ति केवल प्रेतों के प्रधान शैतान की सहायता से प्रेतों को निकाला करता है.”
25 उनके विचारों के विषय में मालूम होने पर येशु ने उनसे कहा, “कोई भी ऐसा राज्य, जिसमें फूट पड़ी हो, मिट जाता है. कोई भी नगर या परिवार फूट की स्थिति में स्थिर नहीं रह पाता. 26 यदि शैतान ही शैतान को बाहर निकाला करे तो वह अपना ही विरोधी हो जाएगा, तब भला उसका शासन स्थिर कैसे रह सकेगा? 27 यदि मैं प्रेतों को शैतान के सहयोग से बाहर निकाला करता हूँ तो फिर तुम्हारी सन्तान उनको कैसे बाहर करती है? परिणामस्वरूप वे ही तुम पर आरोप लगाएँगे. 28 परन्तु यदि मैं प्रेतों को परमेश्वर के आत्मा के द्वारा बाहर कर रहा हूँ तो यह साबित हो गया है कि तुम्हारे बीच परमेश्वर का राज्य आ चुका है.
29 “भला यह कैसे सम्भव है कि कोई किसी बलवान व्यक्ति के घर में प्रवेश कर उसकी सम्पत्ति लूट ले? हाँ, यदि बलवान व्यक्ति को पहले बान्ध दिया जाए, तब उसकी सम्पत्ति को लूट लेना सम्भव है.
30 “वह, जो मेरे पक्ष में नहीं, मेरे विरुद्ध है और वह, जो मेरे साथ इकट्ठा नहीं करता, वह बिखेरता है.
31 “इसलिए तुमसे मेरा कहना यही है: लोगों द्वारा किया गया कोई भी पाप, कोई भी परमेश्वर-निन्दा क्षमा के योग्य है किन्तु पवित्रात्मा की निन्दा क्षमा नहीं की जाएगी. 32 यदि कोई मनुष्य के पुत्र के विरुद्ध कुछ कहे, उसे क्षमा कर दिया जाएगा किन्तु यदि कोई पवित्रात्मा की निन्दा में कुछ कहता है, तो उसे क्षमा नहीं किया जाएगा—न तो इस युग में और न ही आनेवाले युग में.
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