Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; आदर्श के प्रति आसक्त रहो; 10 आपसी प्रेम में समर्पित रहो; अन्यों को ऊँचा सम्मान दो; 11 तुम्हारा उत्साह कभी कम न हो; आत्मिक उत्साह बना रहे; प्रभु की सेवा करते रहो; 12 आशा में आनन्द, क्लेशों में धीरज तथा प्रार्थना में नियमितता बनाए रखो; 13 पवित्र संतों की सहायता के लिए तत्पर रहो, आतिथ्य सत्कार करते रहो.
14 अपने सतानेवालों के लिए तुम्हारे मुख से आशीष ही निकले—आशीष—न कि शाप; 15 जो आनन्दित हैं, उनके साथ आनन्द मनाओ तथा जो शोकित हैं, उनके साथ शोक; 16 तुममें आपस में मेल भाव हो; तुम्हारी सोच में अहंकार न हो परन्तु उनसे मिलने-जुलने के लिए तत्पर रहो, जो समाज की दृष्टि में छोटे हैं; स्वयं को ज्ञानवान न समझो.
17 किसी के प्रति भी दुष्टता का बदला दुष्टता न हो; तुम्हारा स्वभाव सबकी दृष्टि में सुहावना हो; 18 यदि सम्भव हो तो यथाशक्ति सभी के साथ मेल बनाए रखो. 19 प्रियजन, तुम स्वयं बदला न लो—इसे परमेश्वर के क्रोध के लिए छोड़ दो, क्योंकि शास्त्र का लेख है: बदला लेना मेरा काम है, प्रतिफल मैं दूँगा. प्रभु का कथन यह भी है:
20 यदि तुम्हारा शत्रु भूखा है, उसे भोजन कराओ,
यदि वह प्यासा है, उसे पानी दो;
ऐसा करके तुम उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगा दोगे.
21 बुराई से न हारकर बुराई को भलाई के द्वारा हरा दो.
दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी
(मत्ति 16:21-28; मारक 8:31; 9:1; लूकॉ 9:21-27)
21 इस समय से येशु ने शिष्यों पर यह स्पष्ट करना प्रारम्भ कर दिया कि उनका येरूशालेम नगर जाना, पुरनियों, प्रधान याजक और शास्त्रियों द्वारा उन्हें यातना दिया जाना, मार डाला जाना तथा तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित किया जाना अवश्य है.
22 यह सुन पेतरॉस येशु को अलग ले गए और उन्हें झिड़की देते हुए कहने लगे, “परमेश्वर ऐसा न करें, प्रभु! आपके साथ ऐसा कभी न होगा.”
23 किन्तु येशु पेतरॉस से उन्मुख हो बोले, “दूर हो जा मेरी दृष्टि से, शैतान! तू मेरे लिए बाधा है! तेरा मन परमेश्वर सम्बन्धित विषयों में नहीं परन्तु मनुष्य सम्बन्धी विषयों में है.”
24 इसके बाद येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपना त्याग कर अपना क्रूस उठाए और मेरे पीछे हो ले. 25 जो कोई अपने जीवन को बचाना चाहता है, वह उसे गँवा देगा तथा जो कोई मेरे लिए अपने प्राणों की हानि उठाता है, उसे सुरक्षित पाएगा. 26 भला इसका क्या लाभ कि कोई व्यक्ति पूरा संसार तो प्राप्त करे किन्तु अपना प्राण खो दे? किस वस्तु से मनुष्य अपने प्राण का बदला कर सकता है? 27 मानव-पुत्र अपने पिता की महिमा में अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा, तब वह हर एक मनुष्य को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा.
28 “सच तो यह है कि यहाँ कुछ हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक नहीं चखेंगे, जब तक वे मनुष्य के पुत्र का उसके राज्य में प्रवेश न देख लें.”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.