Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
26 इसी प्रकार पवित्रात्मा भी हमारी दुर्बलता की स्थिति में हमारी सहायता के लिए हमसे जुड़ जाते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस प्रकार करना सही है किन्तु पवित्रात्मा स्वयं हमारे लिए मध्यस्थ होकर ऐसी आहों के साथ जो बयान से बाहर है प्रार्थना करते रहते हैं 27 तथा मनों को जाँचनेवाले परमेश्वर यह जानते हैं कि पवित्रात्मा का उद्धेश्य क्या है क्योंकि पवित्रात्मा परमेश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं.
उनकी ही महिमा में शामिल होने के लिए परमेश्वर की बुलाहट
28 हमें यह अहसास है कि जिन्हें परमेश्वर से प्रेम है तथा जिनकी बुलाहट परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हुई है, उनके लिये सब बाते मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती. 29 यह इसलिए कि जिनके विषय में परमेश्वर को पहले से ज्ञान था, उन्हें परमेश्वर ने अपने पुत्र मसीह येशु के स्वरूप में हो जाने के लिए पहले से ठहरा दिया था कि मसीह येशु अनेक भाइयों में पहलौठे हो जाएँ. 30 जिन्हें परमेश्वर ने पहले से ठहराया, उनको बुलाया भी है; जिनको उन्होंने बुलाया, उन्हें धर्मी घोषित भी किया; जिन्हें उन्होंने धर्मी घोषित किया, उन्हें परमेश्वर ने महिमित भी किया.
परमेश्वर के प्रेम का गीत
31 तो इस विषय में क्या कहा जा सकता है? यदि परमेश्वर हमारे पक्ष में हैं तो कौन हो सकता है हमारा विरोधी? 32 परमेश्वर वह हैं, जिन्होंने अपने निज पुत्र को हम सबके लिए बलिदान कर देने तक में संकोच न किया. भला वह कैसे हमें उस पुत्र के साथ सभी कुछ उदारतापूर्वक न देंगे! 33 परमेश्वर के चुने हुओं पर आरोप भला कौन लगाएगा? परमेश्वर ही हैं, जो उन्हें निर्दोष घोषित करते हैं. 34 वह कौन है, जो उन्हें अपराधी घोषित करता है? मसीह येशु वह हैं, जिन्होंने अपने प्राणों का त्याग कर दिया, इसके बाद वह मरे हुओं में से जीवित किए गए, अब परमेश्वर के दायें पक्ष में आसीन हैं तथा वही हैं, जो हमारे लिए प्रार्थना करते हैं. 35 कौन हमें मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्लेश, संकट, सताहट, अकाल, कंगाली, जोखिम या तलवार से मृत्यु? 36 ठीक जैसा पवित्रशास्त्र में लिखा है:
“आपके लिए दिन भर हमारी हत्या होती है;
हम वध के लिए निर्धारित भेड़ों के समान समझे जाते हैं.”
37 मगर इन सब विषयों में हम उनके माध्यम से, जिन्होंने हमसे प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं. 38 क्योंकि मैं यह जानता हूँ, कि न तो मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य 39 न उँचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि हमें हमारे प्रभु मसीह येशु में परमेश्वर के प्रेम से अलग कर सकती है.
राई के बीज का दृष्टान्त
(मारक 4:30-34)
31 येशु ने उनके सामने एक अन्य दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “स्वर्ग-राज्य एक राई के बीज के समान है, जिसे एक व्यक्ति ने अपने खेत में रोप दिया. 32 यह अन्य सभी बीजों की तुलना में छोटा होता है किन्तु जब यह पूरा विकसित हुआ तब खेत के सभी पौधों से अधिक बड़ा हो गया और फिर वह बढ़कर एक पेड़ में बदल गया कि पक्षी आ कर उसकी डालिओं में बसेरा करने लगे.”
33 येशु ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “स्वर्ग-राज्य ख़मीर के समान है, जिसे एक स्त्री ने ले कर तीन माप आटे में मिला दिया और होते-होते सारा आटा ख़मीर बन गया, यद्यपि आटा बड़ी मात्रा में था.”
छुपे हुए खज़ाने का दृष्टान्त
44 “स्वर्ग-राज्य खेत में छिपाए गए उस खज़ाने के समान है, जिसे एक व्यक्ति ने पाया और दोबारा छिपा दिया. आनन्द में उसने अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर उस खेत को मोल ले लिया.
45 “स्वर्ग-राज्य उस व्यापारी के समान है, जो अच्छे मोतियों की खोज में था. 46 एक कीमती मोती मिल जाने पर उसने अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर उस मोती को मोल ले लिया.
मछली के विशाल जाल का दृष्टान्त
47 “स्वर्ग-राज्य समुद्र में डाले गए उस जाल के समान है, जिसमें सभी प्रजातियों की मछलियां आ जाती हैं. 48 जब वह जाल भर गया और खींच कर तट पर लाया गया, उन्होंने बैठ कर अच्छी मछलियों को टोकरी में इकट्ठा कर लिया तथा निकम्मी को फेंक दिया. 49 युग के अन्त में ऐसा ही होगा. स्वर्गदूत आएंगे और दुष्टों को धर्मियों के मध्य से निकाल कर अलग करेंगे 50 तथा उन्हें आग के कुण्ड में झोंक देंगे, जहाँ रोना तथा दाँतों का पीसना होता रहेगा.
51 “क्या तुम्हें अब यह सब समझ आया?” उन्होंने उत्तर दिया.
“जी हाँ, प्रभु.”
52 येशु ने उनसे कहा, “यही कारण है कि व्यवस्था का हर एक शिक्षक, जो स्वर्ग-राज्य के विषय में प्रशिक्षित किया जा चुका है, परिवार के प्रधान के समान है, जो अपने भण्डार से नई और पुरानी हर एक वस्तु को निकाल लाता है.”
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