Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
परमेश्वर की अटल प्रतिज्ञा
13 परमेश्वर ने जब अब्राहाम से प्रतिज्ञा की तो शपथ लेने के लिए उनके सामने स्वयं से बड़ा और कोई न था, इसलिए उन्होंने अपने ही नाम से यह शपथ ली: 14 “निश्चयत: मैं तुम्हें आशीष दूँगा तथा तुम्हारे वंश को बढ़ाता जाऊँगा!” 15 इसलिए अब्राहाम धीरज रखकर प्रतीक्षा करते रहे तथा उन्हें वह प्राप्त हुआ, जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी.
16 मनुष्य तो स्वयं से बड़े व्यक्ति की शपथ लेता है; तब दोनों पक्षों के लिए पुष्टि के रूप में ली गई शपथ सभी झगड़ों का अन्त कर देती है. 17 इसी प्रकार परमेश्वर ने इस उद्धेश्य से शपथ ली कि वह प्रतिज्ञा के वारिसों को अपने न बदलने वाले उद्धेश्य के विषय में पूरी तरह संतुष्ट करें 18 कि दो न बदलने वाली वस्तुओं द्वारा, जिनके विषय में परमेश्वर झूठे साबित हो ही नहीं सकते; हमें, जिन्होंने उनकी शरण ली है, उस आशा को सुरक्षित रखने का दृढ़ता से ढांढ़स प्राप्त हो, जो हमारे सामने प्रस्तुत की गई है. 19 यही आशा हमारे प्राण का लंगर है—स्थिर तथा दृढ़—जो उस पर्दे के भीतर पहुंचता भी है, 20 जहाँ मसीह येशु ने अगुवा होकर हमारे लिए मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में होकर एक अनन्त काल का महापुरोहित बन कर प्रवेश किया.
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