Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
15 यह इसलिए कि यह मेरी समझ से हमेशा से परे है कि मैं क्या करता हूँ—मैं वह नहीं करता, जो मैं करना चाहता हूँ परन्तु मैं वही करता हूँ, जिससे मुझे घृणा है. 16 इसलिए यदि मैं वही सब करता हूँ, जो मुझे अप्रिय है तो सच यह है कि मैं व्यवस्था से सहमत हूँ और स्वीकार करता हूँ कि यह सही है. 17 इसलिए अब ये काम मैं नहीं, मुझमें बसा हुआ पाप करता है. 18 यह तो मुझे मालूम है कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में अंदर छिपा हुआ ऐसा कुछ भी नहीं, जो उत्तम हो. अभिलाषा तो मुझ में है किन्तु उसका करना मुझसे हो नहीं पाता. 19 वह हित, जिसकी मुझ में अभिलाषा है, मुझसे करते नहीं बनता परन्तु हो वह जाता है, जिसे मैं करना नहीं चाहता. 20 तब यदि मैं वह करता हूँ, जो मैं करना नहीं चाहता, तब वह मैं नहीं, परन्तु मुझमें बसा हुआ पाप ही है, जो यह सब करता है.
21 यहाँ मुझे इस सच का अहसास होता है कि जब भी मैं भलाई के लिए उतारू होता हूँ, वहाँ मुझसे बुराई हो जाती है. 22 मेरा भीतरी मनुष्यत्व तो परमेश्वर की व्यवस्था में प्रसन्न है 23 किन्तु मैं अपने शरीर के अंगों में एक दूसरी व्यवस्था देख रहा हूँ. यह मेरे मस्तिष्क में मौजूद व्यवस्था के विरुद्ध लड़ती है. इसने मुझे पाप की व्यवस्था का, जो मेरे शरीर के अंगों में मौजूद है, बन्दी बना रखा है. 24 कैसी दयनीय स्थिति है मेरी! कौन मुझे मेरी इस मृत्यु के शरीर से छुड़ाएगा? 25 धन्यवाद हो हमारे प्रभु मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का!
एक ओर तो मैं स्वयं अपने मस्तिष्क में परमेश्वर की व्यवस्था का दास हूँ किन्तु दूसरी ओर अपने शरीर में अपने पाप के स्वभाव का.
16 “इस पीढ़ी की तुलना मैं किस से करूँ? यह हाट में बैठे हुए उन बालकों के समान है, जो पुकारते हुए अन्यों से कह रहे हैं:
17 “‘जब हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजाई,
तुम न नाचे;
हमने शोकगीत भी गाए,
फिर भी तुम न रोए.
18 “बपतिस्मा देने वाले योहन न तो रोटी का सेवन करते थे, न दाखरस का इसलिए उन्होंने घोषित कर दिया, ‘उसमें प्रेत का वास है.’ 19 मानव-पुत्र का खान-पान सामान्य है और उन्होंने घोषित कर दिया, ‘अरे, वह तो पेटू और पियक्कड़ है; वह तो चुँगी लेनेवालों और अपराधी व्यक्तियों का मित्र है!’ बुद्धि अपनी सन्तान द्वारा साबित हुई है.”
सरल-हृदय लोगों पर ईश्वरीय सुसमाचार का प्रकाशन
25 यह वह अवसर था जब येशु ने इस प्रकार कहा.
“पिता, स्वर्ग तथा पृथ्वी के प्रभु, मैं आपकी वन्दना करता हूँ कि आपने ये सच समझदार और ज्ञानियों से तो गुप्त रखे किन्तु इन्हें मासूम शिशुओं पर प्रकट किया है. 26 सच है, पिता, क्योंकि इसी में आपका परम सन्तोष था.
27 “मेरे पिता द्वारा सब कुछ मुझे सौंप दिया गया है. पिता के अलावा कोई पुत्र को नहीं जानता और न ही कोई पिता को जानता है, सिवाय पुत्र के तथा उनके, जिन पर वह प्रकट करना चाहें.
28 “तुम सभी, जो थके हुए तथा भारी बोझ से दबे हो, मेरे पास आओ, तुम्हें विश्राम मैं दूँगा. 29 मेरा जुआ अपने ऊपर ले लो और मुझसे सीखो क्योंकि मैं दीन और हृदय से नम्र हूँ और तुम्हें मन में विश्राम प्राप्त होगा 30 क्योंकि सहज है मेरा जुआ और हल्का है मेरा बोझ.”
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