Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
विजय की खुशी में येरूशालेम-प्रवेश
(मारक 11:1-11; लूकॉ 19:28-44; योहन 12:12-19)
21 जब वे येरूशालेम नगर के पास पहुँचे और ज़ैतून पर्वत पर बैथफ़गे नामक स्थान पर आए, येशु ने दो चेलों को इस आज्ञा के साथ आगे भेजा, 2 “सामने गाँव में जाओ. वहाँ पहुँचते ही तुम्हें एक गधी बन्धी हुई दिखाई देगी. उसके साथ उसका बच्चा भी होगा. उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ. 3 यदि कोई तुमसे इस विषय में प्रश्न करे तो तुम उसे यह उत्तर देना, ‘प्रभु को इनकी ज़रूरत है.’ वह व्यक्ति तुम्हें आज्ञा दे देगा.”
4 यह घटना भविष्यद्वक्ता द्वारा की गई इस भविष्यवाणी की पूर्ति थी:
5 सियोन की बेटी को यह सूचना दो:
तुम्हारे पास तुम्हारा राजा आ रहा है;
वह नम्र है और वह गधे पर बैठा हुआ है—
हाँ, गधे के बच्चे पर— बोझ ढ़ोने वाले के बच्चे पर.
6 शिष्यों ने येशु की आज्ञा का पूरी तरह पालन किया 7 और वे गधी और उसके बच्चे को ले आए, उन पर अपने बाहरी कपड़े बिछा दिए और येशु उन कपड़ो पर बैठ गए. 8 भीड़ में से अधिकांश ने मार्ग पर अपने बाहरी कपड़े बिछा दिए. कुछ अन्यों ने पेड़ों की टहनियां काट कर मार्ग पर बिछा दीं. 9 येशु के आगे-आगे जाता हुआ तथा पीछे-पीछे आती हुई भीड़ ये नारे लगा रही थी:[a]
“दाविद की सन्तान की होशान्ना!
“धन्य है, वह जो प्रभु के नाम में आ रहे हैं.
“सबसे ऊँचे स्थान में होशान्ना!”
10 जब येशु ने येरूशालेम नगर में प्रवेश किया, पूरे नगर में हलचल मच गई. उनके आश्चर्य का विषय था: “कौन है यह?”
11 भीड़ उन्हें उत्तर दे रही थी, “यही तो हैं वह भविष्यद्वक्ता—गलील के नाज़रेथ के येशु.”
5 तुम्हारा स्वभाव वैसा ही हो, जैसा मसीह येशु का था:
6 जिन्होंने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी,
परमेश्वर से अपनी तुलना पर अपना अधिकार बनाए रखना सही न समझा
7 परन्तु अपने आप को शून्य कर,
दास का स्वरूप धारण करते हुए और मनुष्य की समानता में हो गया
और मनुष्य के शरीर में प्रकट हो कर
8 अपने आप को दीन करके मृत्यु—क्रूस की मृत्यु—तक,
आज्ञाकारी रह कर स्वयं को शून्य बनाया.
9 इसलिए परमेश्वर ने उन्हें सबसे ऊँचे पद पर आसीन किया,
तथा उनके नाम को महिमा दी कि वह हर एक नाम से ऊँचा हो
10 कि हर एक घुटना येशु नाम की वन्दना में झुक जाए—स्वर्ग में, पृथ्वी में और पृथ्वी के नीचे—और,
11 हर एक जीभ पिता परमेश्वर के प्रताप के लिए स्वीकार करे कि मसीह येशु ही प्रभु हैं.
यहूदाह का धोखा
(मारक 14:10-11; लूकॉ 22:3-6)
14 तब कारयोतवासी यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान पुरोहितों के पास गया 15 और उनसे विचार-विमर्श करने लगा, “यदि मैं येशु को पकड़वा दूँ तो आप मुझे क्या देंगे?” उन्होंने उसे गिन कर चांदी के तीस सिक्के दे दिए. 16 उस समय से वह येशु को पकड़वाने के लिए सही अवसर की ताक में रहने लगा.
फ़सह भोज की तैयारी
(मारक 14:12-16; लूकॉ 22:7-13)
17 ख़मीर-रहित रोटी के उत्सव के पहिले दिन शिष्यों ने येशु के पास आ कर पूछा, “हम आपके लिए फ़सह भोज की तैयारी कहाँ करें? आप क्या चाहते हैं?”
18 येशु ने उन्हें निर्देश दिया, “नगर में एक व्यक्ति विशेष के पास जाना और उससे कहना, ‘गुरुवर ने कहा है, मेरा समय पास है. मुझे अपने शिष्यों के साथ आपके घर में फ़सह उत्सव मनाना है.’” 19 शिष्यों ने वैसा ही किया, जैसा येशु ने निर्देश दिया था और उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया.
20 सन्ध्या समय येशु अपने बारह शिष्यों के साथ बैठे हुए थे. 21 जब वे भोजन कर रहे थे येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूँ: तुम्हीं में एक है, जो मेरे साथ धोखा करेगा.”
22 बहुत उदास मन से हर एक शिष्य येशु से पूछने लगा, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ?”
23 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ कटोरे में अपना कौर डुबोया था, वही है, जो मेरे साथ धोखा करेगा. 24 मानव-पुत्र को तो जैसा कि उसके विषय में पवित्रशास्त्र में लिखा है, जाना ही है; किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो मनुष्य के पुत्र के साथ धोखा करेगा. उस व्यक्ति के लिए अच्छा तो यही होता कि उसका जन्म ही न होता.”
25 यहूदाह ने, जो येशु के साथ धोखा कर रहा था, उनसे प्रश्न किया, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूँ न?”[a]
येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह तुमने स्वयं ही कह दिया है.”
26 जब वे भोजन के लिए बैठे, येशु ने रोटी ली, उसके लिए आशीष विनती की, उसे तोड़ा और शिष्यों को देते हुए कहा, “यह लो, खाओ; यह मेरा शरीर है.”
27 तब येशु ने प्याला लिया, उसके लिए धन्यवाद दिया तथा शिष्यों को देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो. 28 यह वाचा का[b] मेरा लहू है जो अनेकों की पाप-क्षमा के लिए उण्डेला जा रहा है. 29 मैं तुम पर यह सच प्रकट करना चाहता हूँ कि अब मैं दाखरस उस समय तक नहीं पिऊँगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पिऊँ.”
30 तब एक भक्ति गीत गाने के बाद वे सब ज़ैतून पर्वत पर चले गए.
शिष्यों की भावी निर्बलता की भविष्यवाणी
31 येशु ने शिष्यों से कहा, “आज रात तुम सभी मेरा साथ छोड़ कर चले जाओगे जैसा कि इस सम्बन्ध में पवित्रशास्त्र का लेख है:
“‘मैं चरवाहे का संहार करूँगा और,
झुण्ड की सभी भेड़ें
तितर-बितर हो जाएँगी.’
32 हाँ, पुनर्जीवित किए जाने के बाद मैं तुमसे पहले गलील प्रदेश पहुँच जाऊँगा.”
33 किन्तु पेतरॉस ने येशु से कहा, “सभी शिष्य आपका साथ छोड़ कर जाएँ तो जाएँ किन्तु मैं आपका साथ कभी न छोड़ूँगा.”
34 येशु ने उनसे कहा, “सच्चाई तो यह है कि आज ही रात में, इसके पहले कि मुर्ग बाँग दे, तुम मुझे तीन बार नकार चुके होंगे.”
35 पेतरॉस ने दोबारा उनसे कहा, “मुझे आपके साथ यदि मृत्यु को भी गले लगाना पड़े तो भी मैं आपको नहीं नकारूंगा.” अन्य सभी शिष्यों ने यही दोहराया.
गेतसेमनी बगीचे में येशु की अवर्णनीय वेदना
(मारक 14:32-42; लूकॉ 22:39-46)
36 तब येशु उनके साथ गेतसेमनी नामक स्थान पर पहुँचे. उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “तुम यहीं बैठो जब तक मैं वहाँ जा कर प्रार्थना करता हूँ.” 37 फिर वह पेतरॉस और ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्रों को अपने साथ ले आगे चले गए. वहाँ येशु अत्यन्त उदास और व्याकुल होने लगे. 38 उन्होंने शिष्यों से कहा, “मेरे प्राण इतने अधिक उदास हैं, मानो मेरी मृत्यु हो रही हो. मेरे साथ तुम भी जागते रहो.”
39 तब येशु उनसे थोड़ी ही दूर जा मुख के बल गिर कर प्रार्थना करने लगे. उन्होंने परमेश्वर से निवेदन किया, “मेरे पिता, यदि सम्भव हो तो यह प्याला मुझसे टल जाए; फिर भी मेरी नहीं परन्तु आपकी इच्छा के अनुरूप हो.”
40 जब वह अपने शिष्यों के पास लौटे तो उन्हें सोया हुआ देख उन्होंने पेतरॉस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ एक घण्टा भी सजग न रह सके! 41 सजग रहो, प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम परीक्षा में पड़ जाओ. हाँ, निःसन्देह आत्मा तो तैयार है किन्तु शरीर दुर्बल.”
42 तब येशु ने दूसरी बार जा कर प्रार्थना की, “मेरे पिता, यदि यह प्याला मेरे पिए बिना मुझ से टल नहीं सकता तो आप ही की इच्छा पूरा हो.”
43 वह दोबारा लौट कर आए तो देखा कि शिष्य सोए हुए हैं—क्योंकि उनकी पलकें बोझिल थीं. 44 एक बार फिर वह उन्हें छोड़ आगे चले गए और तीसरी बार प्रार्थना की और उन्होंने प्रार्थना में वही सब दोहराया.
45 तब वह शिष्यों के पास लौटे और उनसे कहा, “सोते रहो और विश्राम करो! बहुत हो गया! देखो! आ गया है वह क्षण! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथों पकड़वाया जा रहा है. 46 उठो! यहाँ से चलें. देखो, जो मुझे पकड़वाने पर है, वह आ गया!”
येशु का बन्दी बनाया जाना
(मारक 14:43-52; लूकॉ 22:47-53; योहन 18:1-11)
47 येशु अपना कथन समाप्त भी न कर पाए थे कि यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, वहाँ आ पहुँचा. उसके साथ एक बड़ी भीड़ थी, जो तलवारें और लाठियाँ लिए हुए थी. ये सब प्रधान पुरोहितों और पुरनियों की ओर से प्रेषित किए गए थे. 48 येशु के विश्वासघाती ने उन्हें यह संकेत दिया था: “मैं जिसे चूमूँ, वही होगा वह. उसे ही पकड़ लेना.” 49 तुरन्त यहूदाह येशु के पास आया और कहा, “प्रणाम, रब्बी!” और उन्हें चूम लिया.
50 येशु ने यहूदाह से कहा.
“मेरे मित्र, जिस काम के लिए आए हो, उसे पूरा कर लो.” उन्होंने आ कर येशु को पकड़ लिया. 51 येशु के शिष्यों में से एक ने तलवार खींची और महायाजक के दास पर चला दी जिससे उसका कान कट गया.
52 येशु ने उस शिष्य से कहा, “अपनी तलवार को म्यान में रखो! जो तलवार उठाते हैं, वे तलवार से ही नाश किए जाएँगे. 53 तुम यह तो नहीं सोच रहे कि मैं अपने पिता से विनती नहीं कर सकता और वह मेरे लिए स्वर्गदूतों के बारह से अधिक बड़ी सेना नहीं भेज सकते? 54 फिर भला पवित्रशास्त्र के लेख कैसे पूरे होंगे, जिनमें लिखा है कि यह सब इसी प्रकार होना अवश्य है?”
55 तब येशु ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा, “क्या तुम्हें मुझे पकड़ने के लिए तलवारें और लाठियाँ ले कर आने की ज़रूरत थी, जैसे किसी डाकू को पकड़ने के लिए होती है? मैं तो प्रतिदिन मन्दिर में बैठ कर शिक्षा दिया करता था! तब तुमने मुझे नहीं पकड़ा! 56 यह सब इसलिए हुआ है कि भविष्यद्वक्ताओं के लेख पूरे हों.” इस समय सभी शिष्य उन्हें छोड़ कर भाग चुके थे.
येशु महासभा के सामने
(मारक 14:53-65)
57 जिन्होंने येशु को पकड़ा था वे उन्हें महायाजक कायाफ़स के यहाँ ले गए, जहाँ शास्त्री तथा पुरनिये इकट्ठा थे. 58 पेतरॉस कुछ दूरी पर येशु के पीछे-पीछे चलते हुए महायाजक के प्रांगण में आ पहुँचे और वहाँ वह प्रहरियों के साथ बैठ गए कि देखें आगे क्या-क्या होता है.
59 प्रधान पुरोहितों तथा सभी परिषद का प्रयास मात्र यह था कि वे येशु के विरुद्ध झूठे गवाह खड़े कर लें और येशु को मृत्युदण्ड दिला सकें. 60 परन्तु अनेक झूठे गवाह सामने आए किन्तु मृत्युदण्ड के लिए आवश्यक दो सहमत गवाह उन्हें फिर भी न मिले. अन्त में ऐसे दो गवाह आए.
जिन्होंने कहा, 61 “यह व्यक्ति कहता था कि यह परमेश्वर के मन्दिर को नाश करके उसे तीन दिन में दोबारा खड़ा करने में समर्थ है.”
62 यह सुनते ही महायाजक उठ खड़ा हुआ और येशु से कहने लगा, “जो आरोप ये लोग तुम पर लगा रहे हैं क्या उसके बचाव में तुम्हारे पास कोई उत्तर नहीं?” 63 येशु मौन ही रहे.
तब महायाजक ने येशु से कहा, “मैं तुम्हें जीवित परमेश्वर की शपथ देता हूँ कि तुम हमें बताओ क्या तुम्हीं मसीह—परमेश्वर-पुत्र हो?”
64 येशु ने उसे उत्तर दिया, “आपने यह स्वयं कह दिया है, फिर भी, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि इसके बाद आप मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दायीं ओर बैठे तथा आकाश के बादलों पर आता हुआ देखेंगे.”
65 यह सुनना था कि महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और कहा, “परमेश्वर-निन्दा की है इसने! क्या अब भी गवाहों की ज़रूरत है?
“आप सभी ने स्वयं यह परमेश्वर-निन्दा सुनी है. 66 अब क्या विचार है आपका?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्युदण्ड के योग्य है.”
67 तब उन्होंने येशु के मुख पर थूका, उन पर घूंसों से प्रहार किया, कुछ ने उन्हें थप्पड़ भी मारे और फिर उनसे प्रश्न किया, 68 “मसीह महोदय! यदि आप भविष्यद्वक्ता हैं, तो अपनी भविष्यवाणी से बताइए कि आपको किसने मारा है?”
पेतरॉस का नकारना
(मारक 14:66-72; लूकॉ 22:54-65; योहन 18:25-27)
69 पेतरॉस आँगन में बैठे हुए थे. एक दासी वहाँ से निकली और पेतरॉस से पूछने लगी, “तुम भी तो उस गलीलवासी येशु के साथ थे न?”
70 किन्तु पेतरॉस ने सबके सामने यह कहते हुए इस सच को नकार दिया: “क्या कह रही हो? मैं समझा नहीं!”
71 जब पेतरॉस द्वार से बाहर निकले, एक दूसरी दासी ने पेतरॉस को देख वहाँ उपस्थित लोगों से कहा, “यह व्यक्ति नाज़रेथ के येशु के साथ था.”
72 एक बार फिर पेतरॉस ने शपथ खा कर नकारते हुए कहा, “मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता.”
73 कुछ समय बाद एक व्यक्ति ने पेतरॉस के पास आ कर कहा, “इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम भी उनमें से एक हो. तुम्हारी भाषा-शैली से यह स्पष्ट हो रहा है.”
74 पेतरॉस अपशब्द कहते हुए शपथ खा कर कहने लगे, “मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता!” उनका यह कहना था कि मुर्ग ने बाँग दी. 75 पेतरॉस को येशु की वह कही हुई बात याद आई, “इसके पूर्व कि मुर्ग बाँग दे तुम मुझे तीन बार नकार चुके होगे.” पेतरॉस बाहर गए और फूट-फूट कर रोने लगे.
पिलातॉस के न्यायालय में येशु
(मारक 15:1; लूकॉ 22:66-71)
27 प्रातःकाल सभी प्रधान पुरोहितों तथा पुरनियों ने आपस में येशु को मृत्युदण्ड देने की सहमति की. 2 येशु को बेड़ियों से बान्ध कर वे उन्हें राज्यपाल पिलातॉस के यहाँ ले गए.
3 इसी समय, जब येशु पर दण्ड की आज्ञा सुनाई गई, यहूदाह, जिसने येशु के साथ धोखा किया था, दुःख और पश्चाताप से भर उठा. उसने प्रधान पुरोहितों और पुरनियों के पास जा कर चांदी के वे तीस सिक्के यह कहते हुए लौटा दिए, 4 “एक निर्दोष के साथ धोखा करके मैंने पाप किया है.”
“हमें इससे क्या?” वे बोले, “यह तुम्हारी समस्या है!”
5 वे सिक्के मन्दिर में फेंक यहूदाह चला गया और जा कर फाँसी लगा ली.
6 उन सिक्कों को इकट्ठा करते हुए उन्होंने विचार किया, “इस राशि को मन्दिर के कोष में डालना उचित नहीं है क्योंकि यह लहू का दाम है.” 7 तब उन्होंने इस विषय में विचार-विमर्श कर उस राशि से परदेशियों के अंतिम संस्कार के लिए कुम्हार का एक खेत मोल लिया. 8 यही कारण है कि आज तक उस खेत को लहू-खेत नाम से जाना जाता है. 9 इससे भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह द्वारा की गई यह भविष्यवाणी पूरी हो गई: उन्होंने चांदी के तीस सिक्के लिए—यह उसका दाम है, जिसका दाम इस्राएल वंश के द्वारा निर्धारित किया गया था 10 और उन्होंने वे सिक्के कुम्हार के खेत के लिए दे दिए, जैसा निर्देश प्रभु ने मुझे दिया था.
येशु दोबारा पिलातॉस के सामने
(मारक 15:2-5; लूकॉ 23:1-5; योहन 18:28-38)
11 येशु राज्यपाल के सामने लाए गए और राज्यपाल ने उनसे प्रश्न करने प्रारम्भ किए, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह आप स्वयं ही कह रहे हैं.”
12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यन्त आश्चर्यजनक था.
15 फ़सह उत्सव पर परम्परा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बन्दी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बन्दीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बन्दी था. 17 इसलिए जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूँ, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.
19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह सन्देश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”
20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्युदण्ड की माँग करें.
21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूँ?” भीड़ का उत्तर था.
“बार-अब्बास को.”
22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?”
उन सभी ने एक साथ कहा.
“उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”
23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”
किन्तु वे और अधिक चिल्लाने लगे, “क्रूस पर चढ़ाया जाए उसे!”
24 जब पिलातॉस ने देखा कि वह कुछ भी नहीं कर पा रहा परन्तु हुल्लड़ की सम्भावना है तो उसने भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए यह घोषणा कर दी, “मैं इस व्यक्ति के लहू का दोषी नहीं हूँ. तुम ही इसके लिए उत्तरदायी हो.”
25 लोगों ने उत्तर दिया, “इसकी हत्या का दोष हम पर तथा हमारी सन्तान पर हो!”
26 तब पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को मुक्त कर दिया किन्तु येशु को कोड़े लगवा कर क्रूसित करने के लिए भीड़ के हाथों में सौंप दिया.
येशु के सिर पर काँटों का मुकुट
(मारक 15:16-20)
27 तब पिलातॉस के सैनिक येशु को प्राइतोरियम (किले में) ले गए और सारे सैनिकों ने उन्हें घेर लिया. 28 जो वस्त्र येशु पहने हुए थे, उतार कर उन्होंने उन्हें एक चमकीला लाल वस्त्र पहना दिया. 29 उन्होंने एक कँटीली लता को गूँथ कर उसका मुकुट बना उनके सिर पर रख दिया और उनके दायें हाथ में एक नरकुल की एक छड़ी थमा दी. तब वे उनके सामने घुटने टेक कर यह कहते हुए उनका मज़ाक करने लगे, “यहूदियों के राजा की जय!” 30 उन्होंने येशु पर थूका भी और फिर उनके हाथ से उस नरकुल छड़ी को ले कर उसी से उनके सिर पर प्रहार करने लगे. 31 इस प्रकार जब वे येशु का उपहास कर चुके, उन्होंने वह लाल वस्त्र उतार कर उन्हीं के वस्त्र उन्हें पहना दिए और उन्हें उस स्थल पर ले जाने लगे जहाँ उन्हें क्रूस पर चढ़ाया जाना था.
क्रूस-मार्ग पर येशु
(मारक 15:21-24; लूकॉ 23:26-31; योहन 19:17)
32 जब वे बाहर निकले, उन्हें शिमोन नामक एक व्यक्ति, जो कुरैनवासी था, दिखाई दिया. उन्होंने उसे येशु का क्रूस उठा कर चलने के लिए मजबूर किया. 33 जब वे सब गोलगोथा नामक स्थल पर पहुँचे, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान, 34 उन्होंने येशु को पीने के लिए दाखरस तथा कड़वे रस का मिश्रण दिया किन्तु उन्होंने मात्र चख कर उसे पीना अस्वीकार कर दिया.
35 येशु को क्रूसित करने के बाद उन्होंने उनके वस्त्रों को आपस में बांट लेने के लिए पासा फेंका 36 और वहीं बैठ कर उनकी चौकसी करने लगे. 37 उन्होंने उनके सिर के ऊपर दोषपत्र लगा दिया था, जिस पर लिखा था: “यह येशु है—यहूदियों का राजा.”
38 उसी समय दो अपराधियों को भी उनके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक को उनकी दायीं ओर, दूसरे को उनकी बायीं ओर.
39 जो भी उस रास्ते से निकलता था, निन्दा करता हुआ निकलता था. वे सिर हिला-हिला कर कहते जाते थे, 40 “अरे तू! तू तो कहता था कि मन्दिर को ढाह दो और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा, अब स्वयं को तो बचा कर दिखा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो उतर आ क्रूस से!” 41 इसी प्रकार प्रधान याजक भी शास्त्रियों और पुरनियों के साथ मिल कर उनका उपहास करते हुए कह रहे थे, 42 “दूसरों को तो बचाता फिरा है, स्वयं को नहीं बचा सकता! इस्राएल का राजा है! क्रूस से नीचे आकर दिखाए तो हम इसका विश्वास कर लेंगे. 43 यह परमेश्वर में विश्वास करता है क्योंकि इसने दावा किया था, ‘मैं ही परमेश्वर-पुत्र हूँ,’ तब परमेश्वर इसे अभी छुड़ा दें—यदि वह इससे प्रेम करते हैं.” 44 उनके साथ क्रूस पर चढ़ाये गए राजद्रोही भी इसी प्रकार उनकी उल्लाहना कर रहे थे.
येशु की मृत्यु
(मारक 15:33-41; लूकॉ 23:44-49; योहन 19:28-37)
45 छठे घण्टे से ले कर नवें घण्टे तक उस सारे प्रदेश पर अन्धकार छाया रहा. 46 नवें घण्टे के लगभग येशु ने ऊँची आवाज़ में पुकार कर कहा, “एली, एली, लमा सबख़थानी?” जिसका अर्थ है, “मेरे परमेश्वर! मेरे परमेश्वर! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया?”
47 उनमें से कुछ ने, जो वहाँ खड़े थे, यह सुन कर कहा, “अरे! सुनो-सुनो! एलियाह को पुकार रहा है!”
48 उनमें से एक ने तुरन्त दौड़ कर एक स्पंज सिरके में भिगोया और एक नरकुल की एक छड़ी पर रख कर येशु के ओंठों तक बढ़ा दिया. 49 किन्तु औरों ने कहा, “ठहरो, ठहरो, देखें एलियाह उसे बचाने आते भी हैं या नहीं.”
50 येशु ने एक बार फिर ऊँची आवाज़ में पुकारा और अपने प्राण त्याग दिए.
51-53 उसी क्षण मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक दो भागों में विभाजित कर दिया गया, पृथ्वी कांप उठी, चट्टानें फट गईं और क़ब्रें खुल गईं. येशु के पुनरुत्थान के बाद उन अनेक पवित्र लोगों के शरीर जीवित कर दिए गये, जो बड़ी नींद में सो चुके थे. क़ब्रों से बाहर आ कर उन्होंने पवित्र नगर में प्रवेश किया तथा अनेकों को दिखाई दिए.
54 सेनापति और वे, जो उसके साथ येशु की चौकसी कर रहे थे, उस भूकम्प तथा अन्य घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गए और कहने लगे, “सचमुच यह परमेश्वर के पुत्र थे!”
55 अनेक स्त्रियाँ दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं. वे गलील प्रदेश से येशु की सेवा करती हुई उनके पीछे-पीछे आ गई थीं. 56 उनमें थीं मगदालावासी मिरियम, याक़ोब और योसेफ़ की माता मिरियम तथा ज़ेबेदियॉस की पत्नी.
येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मारक 15:42-47; लूकॉ 23:50-56; योहन 19:38-42)
57 जब सन्ध्या हुई तब अरिमथिया नामक नगर के एक सम्पन्न व्यक्ति, जिनका नाम योसेफ़ था, वहाँ आए. वह स्वयं येशु के चेले बन गए थे. 58 उन्होंने पिलातॉस के पास जा कर येशु के शव को ले जाने की आज्ञा माँगी. पिलातॉस ने उन्हें शव ले जाने की आज्ञा दे दी. 59 योसेफ़ ने शव को एक स्वच्छ चादर में लपेटा 60 और उसे नई कन्दरा-क़ब्र में रख दिया, जो योसेफ़ ने स्वयं अपने लिए चट्टान में खुदवाई थी. उन्होंने क़ब्र के द्वार पर एक विशाल पत्थर लुढ़का दिया और तब वह अपने घर चले गए. 61 मगदालावासी मरियम तथा अन्य मरियम, दोनों ही कन्दरा-क़ब्र के सामने बैठी रहीं.
येशु की क़ब्र पर प्रहरियों की नियुक्ति
62 दूसरे दिन, जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजक तथा फ़रीसी पिलातॉस के यहाँ इकट्ठा हुए और पिलातॉस को सूचित किया, 63 “महोदय, हमको यह याद है कि जब यह छली जीवित था, उसने कहा था, ‘तीन दिन बाद मैं जीवित हो जाऊँगा’; 64 इसलिए तीसरे दिन तक के लिए कन्दरा-क़ब्र पर कड़ी सुरक्षा की आज्ञा दे दीजिए, अन्यथा सम्भव है उसके शिष्य आ कर शव चुरा ले जाएँ और लोगों में यह प्रचार कर दें, ‘वह मरे हुओं में से जीवित हो गया है’; तब तो यह छल पहले से कहीं अधिक हानिकर सिद्ध होगा.”
65 पिलातॉस ने उनसे कहा, “प्रहरी तो आपके पास हैं न! आप जैसा उचित समझें करें.” 66 अतः उन्होंने जा कर प्रहरी नियुक्त कर तथा पत्थर पर मोहर लगा कर क़ब्र को पूरी तरह सुरक्षित बना दिया.
येशु दोबारा पिलातॉस के सामने
(मारक 15:2-5; लूकॉ 23:1-5; योहन 18:28-38)
11 येशु राज्यपाल के सामने लाए गए और राज्यपाल ने उनसे प्रश्न करने प्रारम्भ किए, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह आप स्वयं ही कह रहे हैं.”
12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यन्त आश्चर्यजनक था.
15 फ़सह उत्सव पर परम्परा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बन्दी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बन्दीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बन्दी था. 17 इसलिए जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूँ, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.
19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह सन्देश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”
20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्युदण्ड की माँग करें.
21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूँ?” भीड़ का उत्तर था.
“बार-अब्बास को.”
22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?”
उन सभी ने एक साथ कहा.
“उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”
23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”
किन्तु वे और अधिक चिल्लाने लगे, “क्रूस पर चढ़ाया जाए उसे!”
24 जब पिलातॉस ने देखा कि वह कुछ भी नहीं कर पा रहा परन्तु हुल्लड़ की सम्भावना है तो उसने भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए यह घोषणा कर दी, “मैं इस व्यक्ति के लहू का दोषी नहीं हूँ. तुम ही इसके लिए उत्तरदायी हो.”
25 लोगों ने उत्तर दिया, “इसकी हत्या का दोष हम पर तथा हमारी सन्तान पर हो!”
26 तब पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को मुक्त कर दिया किन्तु येशु को कोड़े लगवा कर क्रूसित करने के लिए भीड़ के हाथों में सौंप दिया.
येशु के सिर पर काँटों का मुकुट
(मारक 15:16-20)
27 तब पिलातॉस के सैनिक येशु को प्राइतोरियम (किले में) ले गए और सारे सैनिकों ने उन्हें घेर लिया. 28 जो वस्त्र येशु पहने हुए थे, उतार कर उन्होंने उन्हें एक चमकीला लाल वस्त्र पहना दिया. 29 उन्होंने एक कँटीली लता को गूँथ कर उसका मुकुट बना उनके सिर पर रख दिया और उनके दायें हाथ में एक नरकुल की एक छड़ी थमा दी. तब वे उनके सामने घुटने टेक कर यह कहते हुए उनका मज़ाक करने लगे, “यहूदियों के राजा की जय!” 30 उन्होंने येशु पर थूका भी और फिर उनके हाथ से उस नरकुल छड़ी को ले कर उसी से उनके सिर पर प्रहार करने लगे. 31 इस प्रकार जब वे येशु का उपहास कर चुके, उन्होंने वह लाल वस्त्र उतार कर उन्हीं के वस्त्र उन्हें पहना दिए और उन्हें उस स्थल पर ले जाने लगे जहाँ उन्हें क्रूस पर चढ़ाया जाना था.
क्रूस-मार्ग पर येशु
(मारक 15:21-24; लूकॉ 23:26-31; योहन 19:17)
32 जब वे बाहर निकले, उन्हें शिमोन नामक एक व्यक्ति, जो कुरैनवासी था, दिखाई दिया. उन्होंने उसे येशु का क्रूस उठा कर चलने के लिए मजबूर किया. 33 जब वे सब गोलगोथा नामक स्थल पर पहुँचे, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान, 34 उन्होंने येशु को पीने के लिए दाखरस तथा कड़वे रस का मिश्रण दिया किन्तु उन्होंने मात्र चख कर उसे पीना अस्वीकार कर दिया.
35 येशु को क्रूसित करने के बाद उन्होंने उनके वस्त्रों को आपस में बांट लेने के लिए पासा फेंका 36 और वहीं बैठ कर उनकी चौकसी करने लगे. 37 उन्होंने उनके सिर के ऊपर दोषपत्र लगा दिया था, जिस पर लिखा था: “यह येशु है—यहूदियों का राजा.”
38 उसी समय दो अपराधियों को भी उनके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक को उनकी दायीं ओर, दूसरे को उनकी बायीं ओर.
39 जो भी उस रास्ते से निकलता था, निन्दा करता हुआ निकलता था. वे सिर हिला-हिला कर कहते जाते थे, 40 “अरे तू! तू तो कहता था कि मन्दिर को ढाह दो और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा, अब स्वयं को तो बचा कर दिखा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो उतर आ क्रूस से!” 41 इसी प्रकार प्रधान याजक भी शास्त्रियों और पुरनियों के साथ मिल कर उनका उपहास करते हुए कह रहे थे, 42 “दूसरों को तो बचाता फिरा है, स्वयं को नहीं बचा सकता! इस्राएल का राजा है! क्रूस से नीचे आकर दिखाए तो हम इसका विश्वास कर लेंगे. 43 यह परमेश्वर में विश्वास करता है क्योंकि इसने दावा किया था, ‘मैं ही परमेश्वर-पुत्र हूँ,’ तब परमेश्वर इसे अभी छुड़ा दें—यदि वह इससे प्रेम करते हैं.” 44 उनके साथ क्रूस पर चढ़ाये गए राजद्रोही भी इसी प्रकार उनकी उल्लाहना कर रहे थे.
येशु की मृत्यु
(मारक 15:33-41; लूकॉ 23:44-49; योहन 19:28-37)
45 छठे घण्टे से ले कर नवें घण्टे तक उस सारे प्रदेश पर अन्धकार छाया रहा. 46 नवें घण्टे के लगभग येशु ने ऊँची आवाज़ में पुकार कर कहा, “एली, एली, लमा सबख़थानी?” जिसका अर्थ है, “मेरे परमेश्वर! मेरे परमेश्वर! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया?”
47 उनमें से कुछ ने, जो वहाँ खड़े थे, यह सुन कर कहा, “अरे! सुनो-सुनो! एलियाह को पुकार रहा है!”
48 उनमें से एक ने तुरन्त दौड़ कर एक स्पंज सिरके में भिगोया और एक नरकुल की एक छड़ी पर रख कर येशु के ओंठों तक बढ़ा दिया. 49 किन्तु औरों ने कहा, “ठहरो, ठहरो, देखें एलियाह उसे बचाने आते भी हैं या नहीं.”
50 येशु ने एक बार फिर ऊँची आवाज़ में पुकारा और अपने प्राण त्याग दिए.
51-53 उसी क्षण मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक दो भागों में विभाजित कर दिया गया, पृथ्वी कांप उठी, चट्टानें फट गईं और क़ब्रें खुल गईं. येशु के पुनरुत्थान के बाद उन अनेक पवित्र लोगों के शरीर जीवित कर दिए गये, जो बड़ी नींद में सो चुके थे. क़ब्रों से बाहर आ कर उन्होंने पवित्र नगर में प्रवेश किया तथा अनेकों को दिखाई दिए.
54 सेनापति और वे, जो उसके साथ येशु की चौकसी कर रहे थे, उस भूकम्प तथा अन्य घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गए और कहने लगे, “सचमुच यह परमेश्वर के पुत्र थे!”
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