Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
10 परमेश्वर के अनुग्रह के अनुसार मैंने एक कुशल मिस्त्री के समान नींव डाली और अब कोई और उस पर भवन निर्माण कर रहा है किन्तु हर एक व्यक्ति सावधान रहे कि वह इस नींव पर उस भवन का निर्माण कैसे करता है. 11 जो नींव डाली जा चुकी है, उसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति अन्य नींव नहीं डाल सकता—स्वयं मसीह येशु ही वह नींव हैं.
16 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो तथा तुममें परमेश्वर का आत्मा वास करता है? 17 यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करे तो वह भी परमेश्वर द्वारा नाश कर दिया जाएगा क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है और स्वयं तुम वह मन्दिर हो.
निष्कर्ष
18 धोखे में न रहो. यदि तुममें से कोई यह सोच बैठा है कि वह सांसारिक बातों के अनुसार बुद्धिमान है, तो सही यह होगा कि वह स्वयं को मूर्ख बना ले कि वह बुद्धिमान बन जाए 19 क्योंकि सच यह है कि सांसारिक ज्ञान परमेश्वर की दृष्टि में मूर्खता है; जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: वही हैं, जो बुद्धिमानों को उनकी चतुराई में फँसा देते हैं. 20 और यह भी: परमेश्वर जानते हैं कि बुद्धिमानों के विचार व्यर्थ हैं. 21 इसलिए कोई भी मनुष्य की उपलब्धियों का गर्व न करे. सब कुछ तुम्हारा ही है: 22 चाहे पौलॉस हो या अपोल्लॉस या कैफ़स, चाहे वह संसार हो या जीवन-मृत्यु, चाहे वह वर्तमान हो या भविष्य—सब कुछ तुम्हारा ही है 23 और तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर के.
बदला लेने के विषय में शिक्षा
38 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: आँख के लिए आँख तथा दाँत के लिए दाँत 39 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि बुरे व्यक्ति का सामना ही न करो. इसके विपरीत, जो कोई तुम्हारे दायें गाल पर थप्पड़ मारे, दूसरा गाल भी उसकी ओर कर दो. 40 यदि कोई तुम्हें न्यायालय में घसीट कर तुम्हारा कुर्ता लेना चाहे तो उसे अपनी चादर भी दे दो. 41 जो कोई तुम्हें एक किलोमीटर चलने के लिए मजबूर करे उसके साथ दो किलोमीटर चले जाओ. 42 उसे, जो तुमसे कुछ माँगे, दे दो और जो तुमसे उधार लेना चाहे, उससे अपना मुख न छिपाओ.
शत्रुओं से प्रेम करने की शिक्षा
(लूकॉ 6:27-36)
43 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने शत्रु से घृणा 44 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो[a] और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना 45 कि तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान हो जाओ क्योंकि वह बुरे और भले, दोनों ही पर सूर्योदय करते हैं. इसी प्रकार वह धर्मी तथा अधर्मी, दोनों ही पर वर्षा होने देते हैं. 46 यदि तुम प्रेम मात्र उन्हीं से करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो तुम किस प्रतिफल के अधिकारी हो? क्या चुंगी लेने वाले भी यही नहीं करते? 47 यदि तुम मात्र अपने बन्धुओं का ही नमस्कार करते हो तो तुम अन्यों की आशा कौन सा सराहनीय काम कर रहे हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा ही नहीं करते? 48 इसलिए ज़रूरी है कि तुम सिद्ध बनो, जैसे तुम्हारे स्वर्गीय पिता सिद्ध हैं.
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