); Proverbs 8:22-31 (Wisdom’s part in creation); 1 John 5:1-12 (Whoever loves God loves God’s child) (Hindi Bible: Easy-to-Read Version)
Revised Common Lectionary (Complementary)
1 यहोवा के गुण गाओ!
स्वर्ग के स्वर्गदूतों,
यहोवा की प्रशंसा स्वर्ग से करो!
2 हे सभी स्वर्गदूतों, यहोवा का यश गाओ!
ग्रहों और नक्षत्रों, उसका गुण गान करो!
3 सूर्य और चाँद, तुम यहोवा के गुण गाओ!
अम्बर के तारों और ज्योतियों, उसकी प्रशंसा करो!
4 यहोवा के गुण सर्वोच्च अम्बर में गाओ।
हे जल आकाश के ऊपर, उसका यशगान कर!
5 यहोवा के नाम का बखान करो।
क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने आदेश दिया, और हम सब उसके रचे थे।
6 परमेश्वर ने इन सबको बनाया कि सदा—सदा बने रहें।
परमेश्वर ने विधान के विधि को बनाया, जिसका अंत नहीं होगा।
7 ओ हर वस्तु धरती की यहोवा का गुण गान करो!
ओ विशालकाय जल जन्तुओं, सागर के यहोवा के गुण गाओ।
8 परमेश्वर ने अग्नि और ओले को बनाया,
बर्फ और धुआँ तथा सभी तूफानी पवन उसने रचे।
9 परमेश्वर ने पर्वतों और पहाड़ों को बनाया,
फलदार पेड़ और देवदार के वृक्ष उसी ने रचे हैं।
10 परमेश्वर ने सारे बनैले पशु और सब मवेशी रचे हैं।
रेंगने वाले जीव और पक्षियों को उसने बनाया।
11 परमेश्वर ने राजा और राष्ट्रों की रचना धरती पर की।
परमेश्वर ने प्रमुखों और न्यायधीशों को बनाया।
12 परमेश्वर ने युवक और युवतियों को बनाया।
परमेश्वर ने बूढ़ों और बच्चों को रचा है।
13 यहोवा के नाम का गुण गाओ!
सदा उसके नाम का आदर करो!
हर वस्तु ओर धरती और व्योम,
उसका गुणगान करो!
14 परमेश्वर अपने भक्तों को दृढ़ करेगा।
लोग परमेश्वर के भक्तों की प्रशंसा करेंगे।
लोग इस्राएल के गुण गायेंगे, वे लोग है जिनके लिये परमेश्वर युद्ध करता है,
यहोवा की प्रशंसा करो।
22 “यहोवा ने मुझे अपनी रचना के प्रथम
अपने पुरातन कर्मो से पहले ही रचा है।
23 मेरी रचना सनातन काल से हुई।
आदि से, जगत की रचना के पहले से हुई।
24 जब सागर नहीं थे, जब जल से लबालब सोते नहीं थे,
मुझे जन्म दिया गया।
25 मुझे पर्वतों—पहाड़ियों की स्थापना से पहले ही जन्म दिया गया।
26 धरती की रचना, या उसके खेत
अथवा जब धरती के धूल कण रचे गये।
27 मेरा अस्तित्व उससे भी पहले वहाँ था।
जब उसने आकाश का वितान ताना था
और उसने सागर के दूसरे छोर पर क्षितिज को रेखांकित किया था।
28 उसने जब आकाश में सघन मेघ टिकाये थे,
और गहन सागर के स्रोत निर्धारित किये,
29 उसने समुद्र की सीमा बांधी थी
जिससे जल उसकी आज्ञा कभी न लाँघे,
धरती की नीवों का सूत्रपात उसने किया,
तब मैं उसके साथ कुशल शिल्पी सी थी।
30 मैं दिन—प्रतिदिन आनन्द से परिपूर्ण होती चली गयी।
उसके सामने सदा आनन्द मनाती।
31 उसकी पूरी दुनिया से मैं आनन्दित थी।
मेरी खुशी समूची मानवता थी।
परमेश्वर की सन्तान संसार पर विजयी होती है
5 जो कोई यह विश्वास करता है कि यीशु मसीह है, वह परमेश्वर की सन्तान बन जाता है और जो कोई परम पिता से प्रेम करता है वह उसकी सन्तान से भी प्रेम करेगा। 2 इस प्रकार जब हम परमेश्वर को प्रेम करते हैं और उसके आदेशों का पालन करते हैं तो हम जान लेते हैं कि हम परमेश्वर की सन्तानों से प्रेम करते हैं। 3 उसके आदेशों का पालन करते हुए हम यह दर्शाते हैं कि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं। उसके आदेश अत्यधिक कठोर नहीं हैं। 4 क्योंकि जो कोई परमेश्वर की सन्तान बन जाता है, वह जगत पर विजय पा लेता है और संसार के ऊपर हमें जिससे विजय मिली है, वह है हमारा विश्वास। 5 जो यह विश्वास करता है कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है, वही संसार पर विजयी होता है।
परमेश्वर का कथन: अपने पुत्र के विषय में
6 वह यीशु मसीह ही है जो हमारे पास जल और लहू के साथ आया। केवल जल के साथ नहीं, बल्कि जल और लहू के साथ। और वह आत्मा है जो उसकी साक्षी देता है क्योंकि आत्मा ही सत्य है। 7 साक्षी देने वाले तीन हैं। 8 आत्मा, जल और लहू और ये तीनों साक्षियाँ एक ही साक्षी देकर परस्पर सहमत हैं।
9 जब हम मनुष्य द्वारा दी गयी साक्षी को मानते हैं तो परमेश्वर द्वारा दी गयी साक्षी तो और अधिक मूल्यवान है। परमेश्वर की साक्षी का महत्व इसमें है कि अपने पुत्र के विषय में साक्षी उसने दी है। 10 वह जो परमेश्वर के पुत्र में विश्वास रखता है, वह अपने भीतर उस साक्षी को रखता है। परमेश्वर ने जो कहा है, उस पर जो विश्वास नहीं रखता, वह परमेश्वर को झूठा ठहराता है। क्योंकि उसने उस साक्षी का विश्वास नहीं किया है, जो परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है। 11 और वह साक्षी यह है: परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है और वह जीवन उसके पुत्र में प्राप्त होता है। 12 वह जो उसके पुत्र को धारण करता है, उस जीवन को धारण करता है। किन्तु जिसके पास परमेश्वर का पुत्र नहीं है, उसके पास वह जीवन भी नहीं है।
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