Revised Common Lectionary (Complementary)
मन्दिर का आरोहण गीत।
1 मैं ऊपर पर्वतों को देखता हूँ।
किन्तु सचमुच मेरी सहायता कहाँ से आएगी
2 मुझको तो सहारा यहोवा से मिलेगा जो स्वर्ग
और धरती का बनाने वाला है।
3 परमेश्वर तुझको गिरने नहीं देगा।
तेरा बचानेवाला कभी भी नहीं सोएगा।
4 इस्राएल का रक्षक कभी भी ऊँघता नहीं है।
यहोवा कभी सोता नहीं है।
5 यहोवा तेरा रक्षक है।
यहोवा अपनी महाशक्ति से तुझको बचाता है।
6 दिन के समय सूरज तुझे हानि नहीं पहुँचा सकता।
रात में चाँद तेरी हानि नहीं कर सकता।
7 यहोवा तुझे हर संकट से बचाएगा।
यहोवा तेरी आत्मा की रक्षा करेगा।
8 आते और जाते हुए यहोवा तेरी रक्षा करेगा।
यहोवा तेरी सदा सर्वदा रक्षा करेगा!
याकूब और लाबान की सन्धि
43 लाबान ने याकूब से कहा, “ये लड़कियाँ मेरी पुत्रियाँ हैं। उनके बच्चे मेरे हैं। ये जानवर मेरे हैं। जो कुछ भी तुम यहाँ देखते हो, मेरा है। लेकिन मैं अपनी पुत्रियों और उनके बच्चों को रखने के लिए कुछ नहीं कर सकता। 44 इसलिए मैं तुमसे एक सन्धि करना चाहता हूँ। हम लोग पत्थरों का एक ढेर लगाएँगे जो यह बताएगा कि हम लोग सन्धि कर चुके हैं।”
45 इसलिए याकूब ने एक बड़ी चट्टान ढूँढी और उसे यह पता देने के लिए वहाँ रखा कि उसने सन्धि की है। 46 इसने अपने पुरुषों की और अधिक चट्टानें ढूँढने और चट्टानों का एक ढेर लगाने को कहा। तब उन्होंने चट्टानों के समीप भोजन किया। 47 लाबान ने उस जगह का नाम रखा यज्र सहादूधा रखा। लेकिन याकूब ने उस जगह का नाम गिलियाद रखा।
48 लाबान ने याकूब से कहा, “यह चट्टानों का ढेर हम दोनों को हमारी सन्धि की याद दिलाने में सहायता करेगा।” यह कारण है कि याकूब ने उस जगह को गिलियाद कहा।
49 तब लाबान ने कहा, “यहोवा, हम लोगों के एक दूसरे से अलग होने का साक्षी रहे।” इसलिए उस जगह का नाम मिजपा भी होगा।
50 तब लाबान ने कहा, “यदि तुम मेरी पुत्रियों को चोट पहुँचा ओगे तो याद रखो, परमेश्वर तुमको दण्ड देगा। यदि तुम दूसरी स्त्री से विवाह करोगे तो याद रखो, परमेश्वर तुमको देख रहा है। 51 यहाँ ये चट्टानें हैं, जो हमारे बीच में रखी हैं और यह विशेष चट्टान है जो बताएगी कि हमने सन्धि की है। 52 चट्टानों का ढेर तथा यह विशेष चट्टान हमें अपनी सन्धि को याद कराने में सहायता करेगी। तुमसे लड़ने के लिए मैं इन चट्टानों के पार कभी नहीं जाऊँगा और तुम मुझसे लड़ने के लिए इन चट्टानों से आगे मेरी ओर कभी नहीं आओगे। 53 यदि हम लोग इस सन्धि को तोड़ें तो इब्राहीम का परमेश्वर, नाहोर का परमेश्वर और उनके पूर्वजों का परमेश्वर हम लोगों का न्याय करेगा।”
याकूब के पिता इसहाक ने परमेश्वर को “भय” नाम से पुकारा। इसलिए याकूब ने सन्धि के लिए उस नाम का प्रयोग किया। 54 तब याकूब ने एक पशु को मारा और पहाड़ पर बलि के रूप में भेंट किया और उसने अपने पुरुषों को भोजन में सम्मिलित होने के लिए बुलाया। भोजन करने के बाद उन्होंने पहाड़ पर रात बिताई। 55 दूसरे दिन सबेरे लाबान ने अपने नातियों को चूमा और पुत्रियों को बिदा दी। उसने उन्हें आशीर्वाद दिया और घर लौट गया।
एसाव के साथ फिर मेल
32 याकूब ने भी वह जगह छोड़ी। जब वह यात्रा कर रहा था उसने परमेश्वर के स्वर्गदूत को देखा। 2 जब याकूब ने उन्हें देखा तो कहा, “यह परमेश्वर का पड़ाव है।” इसलिए याकूब ने उस जगह का नाम महनैम रखा।
स्वीकृत कार्यकर्ता
14 लोगों को इन बातों का ध्यान दिलाते रहो और परमेश्वर को साक्षी करके उन्हें सावधान करते रहो कि वे शब्दों को लेकर लड़ाई झगड़ा न करें। ऐसे लड़ाई झगड़ों से कोई लाभ नहीं होता, बल्कि इन्हें जो सुनते हैं, वे भी नष्ट हो जाते हैं। 15 अपने आप को परमेश्वर द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाकर एक ऐसे सेवक के रूप में प्रस्तुत करने का यत्न करते रहो जिससे किसी बात के लिए लज्जित होने की आवश्यकता न हो। और जो परमेश्वर के सत्य वचन का सही ढंग से उपयोग करता हो,
16 और सांसारिक वाद विवादों तथा व्यर्थ की बातों से बचा रहता है। क्योंकि ये बातें लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाती हैं। 17 ऐसे लोगों की शिक्षाएँ नासूर की तरह फैलेंगी। हुमिनयुस और फिलेतुस ऐसे ही हैं। 18 जो सच्चाई के बिन्दु से भटक गये हैं। उनका कहना है कि पुनरुत्थान तो अब तक हो भी चुका है। ये कुछ लोगों के विश्वास को नष्ट कर रहे हैं।
19 कुछ भी हो परमेश्वर ने जिस सुदृढ़ नींव को डाला है, वह दृढ़ता के साथ खड़ी है। उस पर अंकित है, “प्रभु अपने भक्तों को जानता है।”(A) और “वह हर एक, जो कहता है कि वह प्रभु का है, उसे बुराइयों से बचे रहना चाहिए।”
20 एक बड़े घर में बस सोने-चाँदी के ही पात्र तो नहीं होते हैं, उसमें लकड़ी और मिट्टी के बरतन भी होते हैं। कुछ विशेष उपयोग के लिए होते हैं और कुछ साधारण उपयोग के लिए। 21 इसलिए यदि व्यक्ति अपने आपको बुराइयों से शुद्ध कर लेता है तो वह विशेष उपयोग का बनेगा और फिर पवित्र बन कर अपने स्वामी के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। और किसी भी उत्तम कार्य के लिए तत्पर रहेगा।
22 जवानी की बुरी इच्छाओं से दूर रहो धार्मिक जीवन, विश्वास, प्रेम और शांति के लिये उन सब के साथ जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम पुकारते हैं, प्रयत्नशील रहो। 23 मूर्खतापूर्ण, बेकार के तर्क वितर्कों से सदा बचे रहो। क्योंकि तुम जानते ही हो कि इनसे लड़ाई-झगड़े पैदा होते हैं। 24 और प्रभु के सेवक को तो झगड़ना ही नहीं चाहिए। उसे तो सब पर दया करनी चाहिए। उसे शिक्षा देने में योग्य होना चाहिए। उसे सहनशील होना चाहिए। 25 उसे अपने विरोधियों को भी इस आशा के साथ कि परमेश्वर उन्हें भी मन फिराव करने की शक्ति देगा, विनम्रता के साथ समझाना चाहिए। ताकि उन्हें भी सत्य का ज्ञान हो जाये 26 और वे सचेत होकर शैतान के उस फन्दे से बच निकलें जिसमें शैतान ने उन्हें जकड़ रखा है ताकि वे परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण कर सकें।
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