Revised Common Lectionary (Complementary)
तार के वाद्यों के संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
1 हे परमेश्वर, मेरा प्रार्थना गीत सुन।
मेरी विनती सुन।
2 जहाँ भी मैं कितनी ही निर्बलता में होऊँ,
मैं सहायता पाने को तुझको पुकारूँगा!
जब मेरा मन भारी हो और बहुत दु:खी हो,
तू मुझको बहुत ऊँचे सुरक्षित स्थान पर ले चल।
3 तू ही मेरा शरणस्थल है!
तू ही मेरा सुदृढ़ गढ़ है, जो मुझे मेरे शत्रुओं से बचाता है।
4 तेरे डेरे में, मैं सदा सदा के लिए निवास करूँगा।
मैं वहाँ छिपूँगा जहाँ तू मुझे बचा सके।
5 हे परमेश्वर, तूने मेरी वह मन्नत सुनी है, जिसे तुझ पर चढ़ाऊँगा,
किन्तु तेरे भक्तों के पास हर वस्तु उन्हें तुझसे ही मिली है।
6 राजा को लम्बी आयु दे।
उसको चिरकाल तक जीने दे!
7 उसको सदा परमेश्वर के साथ में बना रहने दे!
तू उसकी रक्षा निज सच्चे प्रेम से कर।
8 मैं तेरे नाम का गुण सदा गाऊँगा।
उन बातों को करूँगा जिनके करने का वचन मैंने दिया है।
यहूदा पर अजर्याह का शासन
15 यहूदा के राजा अमस्याह का पुत्र अजर्याह इस्राएल के राजा यारोबाम के राज्यकाल के सत्ताईसवें, वर्ष में राजा बना। 2 शासन करना आरम्भ करने के समय अजर्याह सोलह वर्ष का था। उसने यरूशलेम में बावन वर्ष तक शासन किया। अजर्याह की माँ यरूशलेम की यकोल्याह नाम की थी। 3 अजर्याह ने ठीक अपने पिता अमस्याह की तरह वे काम किये जिन्हें यहोवा ने अच्छा बताया था। अर्जयाह ने उन सभी कामों का अनुसरण किया जिन्हें उसके पिता अमस्याह ने किया था। 4 किन्तु उसने उच्च स्थानों को नष्ट नहीं किया। इन पूजा के स्थानों पर लोग अब भी बलि भेंट करते तथा सुगन्धि जलाते थे।
5 यहोवा ने राजा अजर्याह को हानिकारक कुष्ठरोग का रोगी बना दिया। वह मरने के दिन तक इसी रोग से पीड़ित रहा। अजर्याह एक अलग महल में रहता था। राजा का पुत्र योताम राज महल की देखभाल और जनता का न्याय करता था।
6 अजर्याह ने जो बड़े काम किये वे, यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 7 अजर्याह मरा और अपने पूर्वजों के साथ दाऊद के नगर में दफनाया गया। अजर्याह का पुत्र योताम उसके बाद नया राजा हुआ।
5 यीशु ने इन बारहों को बाहर भेजते हुए आज्ञा दी, “गै़र यहूदियों के क्षेत्र में मत जाओ तथा किसी भी सामरी नगर में प्रवेश मत करो। 6 बल्कि इस्राएल के परिवार की खोई हुई भेड़ों के पास ही जाओ 7 और उन्हें उपदेश दो, ‘स्वर्ग का राज्य निकट है।’ 8 बीमारों को ठीक करो, मरे हुओं को जीवन दो, कोढ़ियों को चंगा करो और दुष्टात्माओं को निकालो। तुमने बिना कुछ दिये प्रभु की आशीष और शक्तियाँ पाई हैं, इसलिये उन्हें दूसरों को बिना कुछ लिये मुक्त भाव से बाँटो। 9 अपने पटुके में सोना, चाँदी या ताँबा मत रखो। 10 यात्रा के लिए कोई झोला तक मत लो। कोई फालतू कुर्ता, चप्पल और छड़ी मत रखो क्योंकि मज़दूर का उसके खाने पर अधिकार है।
11 “तुम लोग जब कभी किसी नगर या गाँव में जाओ तो पता करो कि वहाँ विश्वासयोग्य कौन है। फिर तब तक वहीं ठहरे रहो जब तक वहाँ से चल न दो। 12 जब तुम किसी घर-बार में जाओ तो परिवार के लोगों का सत्कार करते हुए कहो, ‘तुम्हें शांति मिले।’ 13 यदि घर-बार के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा आशीर्वाद उनके साथ साथ रहेगा और यदि वे इस योग्य न होंगे तो तुम्हारा आशीर्वाद तुम्हारे पास वापस आ जाएगा। 14 यदि कोई तुम्हारा स्वागत न करे या तुम्हारी बात न सुने तो उस घर या उस नगर को छोड़ दो। और अपने पाँव में लगी वहाँ की धूल वहीं झाड़ दो। 15 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि जब न्याय होगा, उस दिन उस नगर की स्थिति से सदोम और अमोरा[a] नगरों की स्थिति कहीं अच्छी होगी।
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