Revised Common Lectionary (Complementary)
16 मैं तो सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारुँगा।
यहोवा उसका उत्तर मुझे देगा।
17 मैं तो अपने दु:ख को परमेश्वर से प्रात,
दोपहर और रात में कहूँगा। वह मेरी सुनेगा।
18 मैंने कितने ही युद्धों में लड़ायी लड़ी है।
किन्तु परमेश्वर मेरे साथ है, और हर युद्ध से मुझे सुरक्षित लौटायेगा।
19 वह शाश्वत सम्राट परमेश्वर मेरी सुनेगा
और उन्हें नीचा दिखायेगा।
मेरे शत्रु अपने जीवन को नहीं बदलेंगे।
वे परमेश्वर से नहीं डरते, और न ही उसका आदर करते।
20 मेरे शत्रु अपने ही मित्रों पर वार करते।
वे उन बातों को नहीं करते, जिनके करने को वे सहमत हो गये थे।
21 मेरे शत्रु सचमुच मीठा बोलते हैं, और सुशांति की बातें करते रहते हैं।
किन्तु वास्तव में, वे युद्ध का कुचक्र रचते हैं।
उनके शब्द काट करते छुरी की सी
और फिसलन भरे हैं जैसे तेल होता है।
22 अपनी चिंताये तुम यहोवा को सौंप दो।
फिर वह तुम्हारी रखवाली करेगा।
यहोव सज्जन को कभी हारने नहीं देगा।
23 इससे पहले कि उनकी आधी आयु बीते।
हे परमेश्वर उन हत्यारों को और उन झूठों को कब्रों में भेज!
जहाँ तक मेरा है, मैं तो तुझ पर ही भरोसा रखूँगा।
7 राजा बहुत क्रोधित था। वह खड़ा हुआ। उसने अपना दाखमधु वहीं छोड़ दिया और बाहर बगीचे में चला गया। किन्तु हामान, रानी एस्तेर से अपने प्राणों की भीख माँगने के लिये भीतर ही ठहरा रहा। हामान यह जानता था कि राजा ने उसके प्राण लेने का निश्चय कर लिया है। इसलिये वह अपने प्राणों की भीख माँगता रहा। 8 राजा जैसे ही बगीचे से भोज के कमरे की ओर वापस आ रहा था, तो वह क्या देखता है कि जिस बिछौने पर एस्तेर लेटी है, उस पर हामान झुका हुआ है। राजा ने क्रोध भरे स्वर में कहा, “अरे, क्या तू महल में मेरे रहते हुए ही महारानी पर आक्रमण करेगा?”
जैसे ही राजा के मुख से ये शब्द निकले, राजा के सेवकों ने भीतर आ कर हामान का मुँह ढक दिया। 9 राजा के एक खोजे सेवक ने जिसका नाम हर्बोना था, कहा, “हामान के घर के पास पचहत्तर फुट लम्बा फाँसी देने का एक खम्भा बनाया गया है। हामान ने यह खम्भा मोर्दकै को फाँसी पर चढ़ाने के लिये बनाया था। मोर्दकै वही व्यक्ति है जिसने तुम्हारी हत्या के षड़यन्त्र को बताकर तुम्हारी सहायता की थी।”
राजा बोला, “उस खम्भे पर हामान को लटका दिया जाये!”
10 सो उन्होंने उसी खम्भे पर जिसे उसने मोर्दकै के लिए बनाया था हामान को लटका दिया। इसके बाद राजा ने क्रोध करना छोड़ दिया।
यहूदियों की मदद के लिये राजा का आदेश
8 उसी दिन महाराजा क्षयर्ष ने यहूदियों के शत्रु हामान के पास जो कुछ था, वह सब महारानी एस्तेर को दे दिया। एस्तेर ने राजा को बता दिया कि मोर्दकै रिश्ते में उसका भाई लगता है। इसके बाद मोर्दकै राजा से मिलने आया। 2 राजा ने हामान से अपनी जो अँगूठी वापस ले ली थी, उसे अपनी अँगूली से निकाल कर मोर्दकै को दे दिया। इसके बाद एस्तेर ने मोर्दकै को हामान की सारी सम्पत्ति का अधिकारी नियुक्त कर दिया।
3 तब एस्तेर ने राजा से फिर कहा और वह राजा के पैरों में गिर कर रोने लगी। उसने राजा से प्रार्थना की कि वह अगागी हामान की उस बुरी योजना को समाप्त कर दे जिसे हामान ने यहूदियों के नाश के लिए सोचा था।
4 इस पर राजा ने अपने सोने के राजदण्ड को एस्तेर की ओर आगे बढ़ाया। एस्तेर उठी और राजा के आगे खड़ी हो गयी। 5 फिर एस्तेर ने कहा, “महाराज, यदि तुम मुझे पसंद करते हो और यह तुम्हें अच्छा लगता है तो कृपा करके मेरे लिए यह कर दीजिये। यदि आपको यह किया जाना ठीक लगे तो इसे पूरा कर दीजिये। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके एक आदेश पत्र लिखिये, जो उस आदेश पत्र को रद्द कर दे जिसे हामान ने भेजा था। अगागी हामान ने राजा के सभी प्रांतों में बसे यहूदियों को नष्ट करने की एक योजना सोची थी और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने आज्ञा पत्र भिजवा दिये थे। 6 मैं महाराज से यह प्रार्थना इसलिए कर रही हूँ कि मैं अपने लोगों के साथ उस भयानक काण्ड को घटते देखना सहन नहीं कर पाऊँगी। मैं अपने परिवार की हत्या को देखना सहन नहीं कर पाऊँगी।”
7 महाराजा क्षयर्ष ने महारानी एस्तेर और यहूदी मोर्दकै को उत्तर देते हुए जो कहा था, वह यह है, “हामान, क्योंकि यहूदियों के विरोध में था, इसलिए उसकी सम्पत्ति मैंने एस्तेर को दे दी तथा मेरे सिपाहियों ने उसे फाँसी देने के खम्भे पर लटका दिया। 8 अब राजा की ओर से एक और दूसरा आज्ञा पत्र लिखा जाये। इसे तुम्हें यहूदियों की सहायता के लिए जो सबसे अच्छा लगे वैसा ही लिखो। फिर राजा की विशेष अँगूठी से उस आज्ञा पर मुहर लगा दो। राजा की ओर से लिखा गया और राजा की अँगूठी से जिस पर मुहर दी गयी हो, ऐसा कोई भी राजकीय पत्र रद्द नहीं किया जा सकता।”
9 राजा के सचिवों को तत्काल बुलाया गया। सीवान नाम के तीसरे महीने की तेईसवीं तारीख को वह आदेश पत्र लिखा गया। यहूदियों के लिये मोर्दकै के सभी आदेशों को सचिवों ने लिखकर यहूदियों, मुखियाओं, राज्यपालों और एक सौ सत्ताईस प्रांतो के अधिकारियों के पास पहुँचा दिया। ये प्रांत भारत से लेकर कूश तक फैले हुए थे। ये आदेश पत्र हर प्रांत की लिपि और भाषा में लिखे गये थे और हर देश के लोगों की भाषा में उसका अनुवाद किया गया था। यहूदियों के लिये ये आदेश उन की अपनी भाषा और उनकी अपनी लिपि में लिखे गये थे। 10 मोर्दकै ने ये आदेश महाराजा क्षयर्ष की ओर से लिखे थे और फिर उन पत्रों पर उसने राजा की अँगूठी से मुहर लगा दी थी। फिर उन पत्रों को उसने तीव्र घुड़सवार सन्देश वाहकों के द्वारा भिजवा दिया। ये सन्देश वाहक उन घोड़ों पर सवार थे जिन्हें विशेष राजा के लिए पाला—पोसा गया था।
11 उन पत्रों पर राजा के ये आदेश लिखे थे: यहूदियों को हर नगर में आपस में एक जुट होकर अपनी रक्षा करने का अधिकार है। उन्हें अधिकार है कि वे किसी भी प्रांत और समूह के लोगों की ऐसी किसी भी सेना को छिन्न—भिन्न कर दें, मार डालें अथवा पूरी तरह नष्ट कर दें जो उन पर, उनकी स्त्रियों पर, और उनके बच्चों पर आक्रमण कर रही हो। यहूदियों को अधिकार है कि वे अपने शत्रुओं की सम्पत्ति को ले लें और उसे नष्ट कर डालें।
12 जब यहूदियों के लिये ऐसा किया जायेगा, उसके लिये उदार नाम के बारहवें महीने की तेरहवीं तारीख का दिन निश्चित किया गया। महाराजा क्षयर्ष के अपने सभी प्रांतों में यहूदियों को ऐसा करने की अनुमति दे दी गयी। 13 इस पत्र की एक प्रति राजा के आदेश के साथ हर प्रांत को बाहर भेजी जानी थी। यह एक नियम बन गया। हर प्रांत में इसने नियम का रुप ले लिया। राज्य में रहने वाली प्रत्येक जाति के लोगों के बीच इसका प्रचार किया गया। उन्होंने ऐसा इसलिये किया जिससे उस विशेष दिन के लिये यहूदी तैयार हो जायें जब यहूदियों को अपने शत्रुओं से बदला लेने की अनुमति दे दी जाएगी। 14 राजा के घोड़ों पर सवार सन्देश वाहक जल्दी से बाहर निकल गये। उन्हें राजा ने आज्ञा दी थी कि जल्दी करें। वह आज्ञा शूशन की राजधानी नगरी में भी लगा दी गयी।
15 फिर मोर्दकै राजा के पास से चला गया। मोर्दकै ने राजा से प्राप्त वस्त्र धारण किये हुए थे। उसके कपड़े नीले और सफेद रंग के थे। उसने एक लम्बा सोने का मुकुट पहन रखा था। बढ़िया सूत का बना हुआ बैगनी रंग का चोगा भी उसके पास था। शूशन की राजधानी नगरी में विशेष समारोह हो रहा था। लोग बहुत खुश थे। 16 यहूदियों के लिये तो यह विशेष प्रसन्नता का दिन था। यह आनन्द प्रसन्नता और बड़े सम्मान का दिन था।
17 जहाँ कहीं भी किसी प्रांत या किसी भी नगर में राजा का वह आदेश पत्र पहुँचा, यहूदियों में आनन्द और प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। यहूदी भोज दे रहे थे और उत्सव मना रहे थे और दूसरे बहुत से सामान्य लोग यहूदी बन गये। क्योंकि वे यहूदियों से बहुत डरा करते थे, इसीलिए उन्होंने ऐसा किया।
सबसे प्रेम रखो
(लूका 6:27-28, 32-36)
43 “तुमने सुना है: कहा गया है ‘तू अपने पड़ौसी से प्रेम कर(A) और शत्रु से घृणा कर।’ 44 किन्तु मैं कहता हूँ अपने शत्रुओं से भी प्यार करो। जो तुम्हें यातनाएँ देते हैं, उनके लिये भी प्रार्थना करो। 45 ताकि तुम स्वर्ग में रहने वाले अपने पिता की सिद्ध संतान बन सको। क्योंकि वह बुरों और भलों सब पर सूर्य का प्रकाश चमकाता है। पापियों और धर्मियों, सब पर वर्षा कराता है। 46 यह मैं इसलिये कहता हूँ कि यदि तू उन्हीं से प्रेम करेगा जो तुझसे प्रेम करते हैं तो तुझे क्या फल मिलेगा। क्या ऐसा तो कर वसूल करने वाले भी नहीं करते? 47 यदि तू अपने भाई बंदों का ही स्वागत करेगा तो तू औरों से अधिक क्या कर रहा है? क्या ऐसा तो विधर्मी भी नहीं करते? 48 इसलिये परिपूर्ण बनो, वैसे ही जैसे तुम्हारा स्वर्ग-पिता परिपूर्ण है।
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