Revised Common Lectionary (Complementary)
1 हे धरती की हर वस्तु, आनन्द के साथ परमेश्वर की जय बोलो।
2 उसके माहिमामय नाम की स्तुति करों!
उसका आदर उसके स्तुति गीतों से करों!
3 उसके अति अद्भुत कामों से परमेश्वर को बखानों!
हे परमेश्वर, तेरी शक्ति बहुत बड़ी है। तेरे शत्रु झुक जाते और वे तुझसे डरते हैं।
4 जगत के सभी लोग तेरी उपासना करें
और तेरे नाम का हर कोई गुण गायें।
5 तुम उनको देखो जो आश्चर्यपूर्ण काम परमेश्वर ने किये!
वे वस्तुएँ हमको अचरज से भर देती है।
6 परमेश्वर ने धरती सूखी होने को सागर को विवश किया
और उसके आनन्दित जन पैदल महानद को पार कर गये।
7 परमेश्वर अपनी महाशक्ति से इस संसार का शासन करता है।
परमेश्वर हर कहीं लोगों पर दृष्टि रखता है।
कोई भी व्यक्ति उसके विरूद्ध नहीं हो सकता।
8 लोगों, हमारे परमेश्वर का गुणगान
तुम ऊँचे स्वर में करो।
9 परमेश्वर ने हमको यह जीवन दिया है।
वह हमारी रक्षा करता है।
मनश्शे अपना कुशासन यहूदा पर आरम्भ करता है
21 मनेश्शे जब शासन करने लगा तब वह बारह वर्ष का था। उसने पचपन वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम हेप्सीबा था।
2 मनश्शे ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा बाताया था। मनश्शे वे भयंकर काम करता था जो अन्य राष्ट्र करते थे। (और योहवा ने उन राष्ट्रों को अपना देश छोड़ने पर विवश किया था जब इस्राएली आए थे।) 3 मनश्शे ने फिर उन उच्च स्थानों को बनाया जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने नष्ट किया था। मनश्शे ने भी ठीक इस्राएल के राजा अहाब की तरह बाल की वेदी बनाई और अशेरा स्तम्भ बनाया। मनश्शे ने आकाश में तारों की सेवा और पूजा आरम्भ की। 4 मनश्शे ने यहोवा के मन्दिर में असत्य देवताओं की पूजा की वेदियाँ बनाईं। (यह वही स्थान है जिसके बारे में यहोवा बातें कर रहा था जब उसने कहा था, “मैं अपना नाम यरूशलेम में रखूँगा।”) 5 मनश्शे ने यहोवा के मन्दिर के दो आँगनों में आकाश के नक्षत्रों के लिये वेदियाँ बनाईं। 6 मनश्शे ने अपने पुत्र की बलि दी और उसे वेदी पर जलाया। मनश्शे ने भविष्य जानने के प्रयत्न में कई तरीकों का उपयोग किया। वह ओझाओं और भूत सिद्धियों से मिला।
मनश्शे अधिक से अधिक वह करता गया जिसे यहोवा ने बुरा कहा था। इसने यहोवा को क्रोधित किया। 7 मनश्शे ने अशेरा की एक खुदी हुई मूर्ति बनाई। उसने इस मूर्ति को मन्दिर में रखा। यहोवा ने दाऊद और दाऊद के पुत्र सुलैमान से इस मन्दिर के बारे में कहा थाः “मैंने यरूशलेम को पूरे इस्राएल के नगरों में से चुना है। मैं अपना नाम यरूशलेम के मन्दिर में सदैव के लिये रखूँगा। 8 मैं इस्राएल के लोगों से वह भूमि जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दी थी, छोड़ने के लिये नहीं कहूँगा। मैं लोगों को उनके देश में रहने दूँगा, यदि वे उन सब चीज़ों का पालन करेंगे जिनका आदेश मैंने दिया है और जो उपदेश मेरे सेवक मूसा ने उनको दिये हैं।” 9 किन्तु लोगों ने परमेश्वर की एक न सुनी। इस्राएलियों के आने के पहले कनान में रहने वाले सभी राष्ट्र जितना बुरा करते थे मनश्शे ने उससे भी अधिक बुरा किया और यहोवा ने उन राष्ट्रों को नष्ट कर दिया था जब इस्राएल के लोग अपनी भूमि लेने आए थे।
10 यहोवा ने अपने सेवक, नबियों का उपयोग यह कहने के लिये कियाः 11 “यहूदा के राजा मनश्शे ने इन घृणित कामों को किया है और अपने से पहले की गई एमोरियों की बुराई से भी बड़ी बुराई की है। मनश्शे ने अपने देवमूर्तियों के कारण यहूदा से भी पाप कराया है। 12 इसलिये इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘देखो! मैं यरूशलेम और यहूदा पर इतनी विपत्तियाँ ढाऊँगा कि यदि कोई व्यक्ति इनके बारे में सुनेगा तो उसका हृदय बैठ जायेगा। 13 मैं यरूशलेम तक शोमरोन की माप पंक्ति और अहाब के परिवार की साहुल को फैलाऊँगा। कोई व्यक्ति तश्तरी को पोछता है और तब वह उसे उलट कर रख देता है। मैं यरूशलेम के ऊपर भी ऐसा ही करूँगा। 14 वहाँ मेरे कुछ व्यक्ति फिर भी बचे रह जायेंगे। किन्तु मैं उन व्यक्तियों को छोड़ दूँगा। मैं उन्हें उनके शत्रुओं को दे दूँगा। उनके शत्रु उन्हें बन्दी बनायेंगे, वे उन कीमती चीज़ों की तरह होंगे जिन्हें सैनिक युद्ध में प्राप्त करते हैं। 15 क्यों क्योंकि हमारे लोगों ने वे काम किये जिन्हें मैंने बुरा बताया। उन्होंने मुझे उस दिन से क्रोधित किया है जिस दिन से उनके पूर्वज मिस्र से बाहर आए
मानसिक द्वन्द्व
14 क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है और मैं हाड़-माँस का भौतिक मनुष्य हूँ जो पाप की दासता के लिए बिका हुआ है। 15 मैं नहीं जानता मैं क्या कर रहा हूँ क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ, नहीं करता, बल्कि मुझे वह करना पड़ता है, जिससे मैं घृणा करता हूँ। 16 और यदि मैं वही करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता तो मैं स्वीकार करता हूँ कि व्यवस्था उत्तम है। 17 किन्तु वास्तव में वह मैं नहीं हूँ जो यह सब कुछ कर रहा है, बल्कि यह मेरे भीतर बसा पाप है। 18 हाँ, मैं जानता हूँ कि मुझ में यानी मेरे भौतिक मानव शरीर में किसी अच्छी वस्तु का वास नहीं है। नेकी करने के इच्छा तो मुझ में है पर नेक काम मुझ से नहीं होते। 19 क्योंकि जो अच्छा काम मैं करना चाहता हूँ, मैं नहीं करता बल्कि जो मैं नहीं करना चाहता, वे ही बुरे काम मैं करता हूँ। 20 और यदि मैं वही काम करता हूँ जिन्हें करना नहीं चाहता तो वास्तव में उनका कर्ता जो उन्हें कर रहा है, मैं नहीं हूँ, बल्कि वह पाप है जो मुझ में बसा है।
21 इसलिए मैं अपने में यह नियम पाता हूँ कि मैं जब अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने में बुराई को ही पाता हूँ। 22 अपनी अन्तरात्मा में मैं परमेश्वर की व्यवस्था को सहर्ष मानता हूँ। 23 पर अपने शरीर में मैं एक दूसरे ही नियम को काम करते देखता हूँ यह मेरे चिन्तन पर शासन करने वाली व्यवस्था से युद्ध करता है और मुझे पाप की व्यवस्था का बंदी बना लेता है। यह व्यवस्था मेरे शरीर में क्रियाशील है। 24 मैं एक अभागा इंसान हूँ। मुझे इस शरीर से, जो मौत का निवाला है, छुटकारा कौन दिलायेगा? 25 अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ। सो अपने हाड़ माँस के शरीर से मैं पाप की व्यवस्था का गुलाम होते हुए भी अपनी बुद्धि से परमेश्वर की व्यवस्था का सेवक हूँ।
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