Revised Common Lectionary (Complementary)
एक भक्ति गीत; कोरह परीवार का एक पद।
1 यहोवा महान है!
वह परमेश्वर के नगर, उसके पवित्र नगर में प्रशंसनीय है।
2 परमेश्वर का पवित्र नगर एक सुन्दर नगर है।
धरती पर वह नगर सर्वाधिक प्रसन्न है।
सिय्योन पर्वत सबसे अधिक ऊँचा और सर्वाधिक पवित्र है।
यह नगर महा सम्राट का है।
3 उस नगर के महलों में
परमेश्वर को सुरक्षास्थल कहा जाता है।
4 एकबार कुछ राजा आपस में आ मिले
और उन्हेंने इस नगर पर आक्रमण करने का कुचक्र रचा।
सभी साथ मिलकर चढ़ाई के लिये आगे बढ़े।
5 राजा को देखकर वे सभी चकित हुए।
उनमें भगदड़ मची और वे सभी भाग गए।
6 उन्हें भय ने दबोचा,
वे भय से काँप उठे!
7 प्रचण्ड पूर्वी पवन ने
उनके जलयानों को चकनाचूर कर दिया।
8 हाँ, हमने उन राजाओं की कहानी सुनी है
और हमने तो इसको सर्वशक्तिमान यहोवा के नगर में हमारे परमेश्वर के नगर में घटते हुए भी देखा।
यहोवा उस नगर को सुदृढ़ बनाएगा।
9 हे परमेश्वर, हम तेरे मन्दिर में तेरी प्रेमपूर्ण करूणा पर मनन करते हैं।
10 हे परमेश्वर, तू प्रसिद्ध है।
लोग धरती पर हर कहीं तेरी स्तुति करते हैं।
हर मनुष्य जानता है कि तू कितना भला है।
11 हे परमेश्वर, तेरे उचित न्याय के कारण सिय्योन पर्वत हर्षित है।
और यहूदा की नगरियाँ आनन्द मना रही हैं।
12 सिय्योन की परिक्रमा करो। नगरी के दर्शन करो।
तुम बुर्जो (मीनारों) को गिनो।
13 ऊँचे प्राचीरों को देखो।
सिय्योन के महलों को सराहो।
तभी तुम आने वाली पीढ़ी से इसका बखान कर सकोगे।
14 सचमुच हमारा परमेश्वर सदा सर्वदा परमेश्वर रहेगा।
वह हमको सदा ही राह दिखाएगा। उसका कभी भी अंत नहीं होगा।
यहोवा तुम्हें तुम्हारी धरती वापस दिलवायेगा
18 फिर यहोवा अपनी धरती के बारे में बहुत अधिक चिन्तित हुआ।
उसे अपने लोगों पर दया आयी।
19 यहोवा ने अपने लोगों से कहा।
वह बोला, “मैं तुम्हारे लिये अन्र, दाखमधु और तेल भिजवाऊँगा।
ये तुमको भरपूर मिलेंगे।
मैं तुमको अब और अधिक जातियों के बीच में लज्जित नहीं करूँगा।
20 नहीं, मैं तुम्हारी धरती को त्यागने के लिये उन लोगों (उत्तर अथवा बाबुल) पर दबाव दूँगा।
मैं उनको सूखी और उजड़ी हुई धरती पर भेजूँगा।
उनमें से कुछ पूर्व के सागर में जायेंगे
और उनमें से कुछ पश्चिमी समुद्र में जायेंगे।
उन शत्रुओं ने ऐसे भयानक कर्म किये हैं।
वे लोग वैसे हो जायेंगे जैसे सड़ती हुई मृत वस्तुएँ होती हैं।
वहाँ ऐसी भयानक दुर्गन्ध होगी।”
धरती को फिर नया बनाया जायेगा
21 हे धरती, तू भयभत मत हो।
प्रसन्न हो जा और आनन्द से भर जा
क्योंकी यहोवा बड़े काम करने को है।
22 ओ मैदानी पशुओं, तुम भय त्यागो।
जंगल की चारागाहें घास उगाया करेंगी।
वृक्ष फल देने लगेंगे।
अंजीर के पेड़ और अंगूर की बेलें भरपूर फल देंगे।
23 सो, हे सिय्योन के लोगों, प्रसन्न रहो।
अपने परमेश्वर यहोवा में आनन्द से भर जाओ।
क्योंकि वह तुम्हारे साथ भला करेगा और तुम्हें वर्षा देगा।
वह तुम्हें अगली वर्षा देगा और वह तूझे पिछली वर्षा भी देगा जैसे पहले दिया करता था।
24 तुम्हारे ये खलिहान गेहूँ से भर जायेंगे और तुम्हारे कुप्पे दाखमधु
और जैतुन के तेल से उफनने लगेंगे।
25 मुझ यहोवा ने अपनी सशक्त सेना तुम्हारे विरोध में भेजी थी।
वे भिन्नाती हुई टिड्डियाँ, फुदकती हुई टिड्डियाँ, विनाशकारी टिड्डियाँ
और कुतरती टिड्डियाँ तुम्हारी वस्तुएँ खा गयी।
किन्तु मैं, यहोवा उन विपत्तियों के वर्षों के बदले में
फिर से तुम्हें और वर्षा दूँगा।
26 फिर तुम्हारे पास खाने को भरपूर होगा।
तुम संतुष्ट होगे।
अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का तुम गुणगान करोगे।
उसने तुम्हारे लिये अद्भुत बातें की हैं।
अब मेरे लोग फिर कभी लज्जित नहीं होंगे।
27 तुमको पता चल जायेगा कि मैं इस्राएली लोगों के साथ हूँ।
तुमको पता चल जायेगा कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ
और कोई दूसरा परमेश्वर नहीं है।
मेरे लोग फिर कभी लज्जित न होंगे।
सभी लोगों पर अपनी आत्मा उंडेलने की यहोवा की प्रतिज्ञा
28 इसके बाद,
मैं तुम सब पर अपनी आत्मा उंडेलूँगा।
तुम्हारे पुत्र—पुत्रियाँ भविष्यवाणी करेंगे।
तुम्हारे बूढ़े दिव्य स्वप्नों को देखेंगे।
तुम्हारे युवक दर्शन करेंगे।
29 उस समय मैं अपनी आत्मा
दास—दासियों पर उंडेलूँगा।
क्रूस पर चढ़े मसीह के विषय में संदेश
2 हे भाइयों, जब मैं तुम्हारे पास आया था तो परमेश्वर के रहस्यपूर्ण सत्य का, वाणी की चतुरता अथवा मानव बुद्धि के साथ उपदेश देते हुए नहीं आया था 2 क्योंकि मैंने यह निश्चय कर लिया था कि तुम्हारे बीच रहते, मैं यीशु मसीह और क्रूस पर हुई उसकी मृत्यु को छोड़ कर किसी और बात को जानूँगा तक नहीं। 3 सो मैं दीनता के साथ भय से पूरी तरह काँपता हुआ तुम्हारे पास आया। 4 और मेरी वाणी तथा मेरा संदेश मानव बुद्धि के लुभावने शब्दों से युक्त नहीं थे बल्कि उनमें था आत्मा की शक्ति का प्रमाण 5 ताकि तुम्हारा विश्वास मानव बुद्धि के बजाय परमेश्वर की शक्ति पर टिके।
परमेश्वर का ज्ञान
6 जो समझदार हैं, उन्हें हम बुद्धि देते हैं किन्तु यह बुद्धि इस युग की बुद्धि नहीं है, न ही इस युग के उन शासकों की बुद्धि है जिन्हें विनाश के कगार पर लाया जा रहा है। 7 इसके स्थान पर हम तो परमेश्वर के उस रहस्यपूर्ण विवेक को देते हैं जो छिपा हुआ था और जिसे अनादि काल से परमेश्वर ने हमारी महिमा के लिये निश्चित किया था। 8 और जिसे इस युग के किसी भी शासक ने नहीं समझा क्योंकि यदि वे उसे समझ पाये होते तो वे उस महिमावान प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। 9 किन्तु शास्त्र में लिखा है:
“जिन्हें आँखों ने देखा नहीं
और कानों ने सुना नहीं;
जहाँ मनुष्य की बुद्धि तक कभी नहीं पहुँची ऐसी बातें
उनके हेतु प्रभु ने बनायी जो जन उसके प्रेमी होते।”(A)
10 किन्तु परमेश्वर ने उन ही बातों को आत्मा के द्वारा हमारे लिये प्रकट किया है।
आत्मा हर किसी बात को ढूँढ निकालती है यहाँ तक कि परमेश्वर की छिपी गहराइयों तक को। 11 ऐसा कौन है जो दूसरे मनुष्य के मन की बातें जान ले सिवाय उस व्यक्ति के उस आत्मा के जो उसके अपने भीतर ही है। इसी प्रकार परमेश्वर के विचारों को भी परमेश्वर की आत्मा को छोड़ कर और कौन जान सकता है।
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