Revised Common Lectionary (Complementary)
1 यहोवा राजा है।
वह सामर्थ्य और महिमा का वस्त्र पहने है।
वह तैयार है, सो संसार स्थिर है।
वह नहीं टलेगा।
2 हे परमेश्वर, तेरा साम्राज्य अनादि काल से टिका हुआ है।
तू सदा जीवित है।
3 हे यहोवा, नदियों का गर्जन बहुत तीव्र है।
पछाड़ खाती लहरों का शब्द घनघोर है।
4 समुद्र की पछाड़ खाती लहरे गरजती हैं, और वे शक्तिशाली हैं।
किन्तु ऊपर वाला यहोवा अधिक शक्तिशाली है।
5 हे यहोवा, तेरा विधान सदा बना रहेगा।
तेरा पवित्र मन्दिर चिरस्थायी होगा।
आसा के परिवर्तन
15 परमेश्वर की आत्मा अजर्याह पर उतरी। अजर्याह ओदेद का पुत्र था। 2 अजर्याह आसा से मिलने गया। अजर्याह ने कहा, “आसा तथा यहूदा और बिन्यामीन के सभी लोगो मेरी सुनो! यहोवा तुम्हारे साथ तब है जब तुम उसके साथ हो। यदि तुम यहोवा को खोजोगे तो तुम उसे पाओगे। किन्तु यदि तुम उसे छोड़ोगे तो वह तुम्हें छोड़ देगा। 3 बहुत समय तक इस्राएल सच्चे परमेश्वर के बिना था और वे शिक्षक याजक और नियम के बिना थे। 4 किन्तु जब इस्राएल के लोग कष्ट में पड़े तो वे फिर इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की ओर लौटे। उन्होंने यहोवा की खोज की और उसको उन्होंने पाया। 5 उन विपत्ति के दिनों में कोई व्यक्ति सुरक्षित यात्रा नहीं कर सकता था। सभी राष्ट्र बहुत अधिक उपद्रव ग्रस्त थे। 6 एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को और एक नगर दूसरे नगर को नष्ट करता था। यह इसलिये हो रहा था कि परमेश्वर हर प्रकार की विपत्तियों से उनको परेशान कर रहा था। 7 किन्तु आसा, तुम तथा यहूदा और बिन्यामीन के लोगो, शक्तिशाली बनो। कमजोर न पड़ो, ढीले न पड़ो क्योंकि तुम्हें अपने अच्छे काम का पुरस्कार मिलेगा!”
8 आसा ने जब इन बातों और ओदेद नबी के सन्देश को सुना तो वह बहुत उत्साहित हुआ। तब उसने सारे यहूदा और बिन्यामीन देश से घृणित मूर्तियों को हटा दिया और उसने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में अपने अधिकार में लाए गए नगरों में मूर्तियों को हटाया और उसने यहोवा की उस वेदी की मरम्मत की जो यहोवा के मन्दिर के द्वार मण्डप के सामने थी।
9 तब आसा ने यहूदा और बिन्यामीन के सभी लोगों को इकट्ठा किया। उसने एप्रैम, मनश्शे और शिमोन परिवारों को भी इकट्ठा किया जो इस्राएल देश से यहूदा देश में रहने के लिये आ गए थे। उनकी बहुत बड़ी संख्या यहूदा में आई क्योंकि उन्होंने देखा कि आसा का यहोवा परमेश्वर, आसा के साथ है।
10 आसा के शासन के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में आसा और वे लोग यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 11 उस समय उन्होंने यहोवा को सात सौ बैलों और सात हज़ार भेड़ों और बकरों की बलि दी। आसा की सेना ने उन जानवरों और अन्य बहुमूल्य चीज़ों को अपने शत्रुओं से लिया था। 12 तब उन्होंने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर की सेवा पूरे हृदय और पूरी आत्मा से करने की वाचा की। 13 कोई व्यक्ति जो यहोवा परमेश्वर की सेवा से इन्कार करता था, मार दिया जाता था। इस बात का कोई महत्व नहीं था कि वह व्यक्ति महत्त्वपूर्ण या साधारण है अथवा पुरुष या स्त्री है। 14 तब आसा और लोगों ने यहोवा की शपथ ली। उन्होंने उच्च स्वर में उद्घोष किया। उन्होंने तुरही और मेढ़ों के सींगे बजाए। 15 यहूदा से सभी लोग प्रसन्न थे क्योंकि उन्होंने पूरे हृदय से शपथ ली थी। उन्होंने पूरे हृदय से यहोवा का अनुसरण किया तथा येहोवा की खोज की और उसे पाया। इसलिये यहोवा ने उनके पूरे देश में शान्ति दी।
15 जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, उसके पास सोने से बनी नापने की एक छड़ी थी जिससे वह उस नगर को, उसके द्वारों को और उसके परकोटे को नाप सकता था। 16 नगर को वर्गाकार में बसाया गया था। यह जितना लम्बा था उतना ही चौड़ा था। उस स्वर्गदूत ने उस छड़ी से उस नगरी को नापा। वह कोई बारह हज़ार स्टोडिया पायी गयी। उसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई एक जैसी थी। 17 स्वर्गदूत ने फिर उसके परकोटे को नापा। वह कोई एक सौ चवालीस हाथ था। उसे मनुष्य के हाथों की लम्बाई से नापा गया था जो हाथ स्वर्गदूत का भी हाथ है। 18 नगर का परकोटा यशब नामक रत्न का बना था तथा नगर को काँच के समान चमकते शुद्ध सोने से बनाया गया था।
19 नगर के परकोटे की नीवें हर प्रकार के बहुमूल्य रत्नों से सजाई गयी थी। नींव का पहला पत्थर यशब का बना था, दूसरी नीलम से, तीसरी स्फटिक से, चौथी पन्ने से, 20 पाँचवीं गोमेद से, छठी मानक से, सातवीं पीत मणि से, आठवीं पेरोज से, नवीं पुखराज से, दसवीं लहसनिया से, ग्यारहवीं धूम्रकांत से और बारहवीं चन्द्रकाँत मणि से बनी थी। 21 बारहों द्वार बारह मोतियों से बने थे, हर द्वार एक-एक मोती से बना था। नगर की गलियाँ स्वच्छ काँच जैसे शुद्ध सोने की बनी थीं।
22 नगर में मुझे कोई मन्दिर दिखाई नहीं दिया। क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेमना ही उसके मन्दिर थे।
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