Revised Common Lectionary (Complementary)
शाऊल का हृदय परिवर्तन
9 शाऊल अभी प्रभु के अनुयायियों को मार डालने की धमकियाँ दिया करता था। वह प्रमुख याजक के पास गया 2 और उसने दमिश्क के आराधनालयों के नाम माँग कर अधिकार पत्र ले लिया जिससे उसे वहाँ यदि कोई इस पंथ का अनुयायी मिले, फिर चाहे वह स्त्री हो, चाहे पुरुष, तो वह उन्हें बंदी बना सके और फिर वापस यरूशलेम ले आये।
3 सो जब चलते चलते वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो अचानक उसके चारों ओर आकाश से एक प्रकाश कौंध गया 4 और वह धरती पर जा पड़ा। उसने एक आवाज़ सुनी जो उससे कह रही थी, “शाऊल, अरे ओ शाऊल! तू मुझे क्यों सता रहा है?”
5 शाऊल ने पूछा, “प्रभु, तू कौन है?”
वह बोला, “मैं यीशु हूँ जिसे तू सता रहा है। 6 पर तू अब खड़ा हो और नगर में जा। वहाँ तुझे बता दिया जायेगा कि तुझे क्या करना चाहिये।”
7 जो पुरुष उसके साथ यात्रा कर रहे थे, अवाक् खड़े थे। उन्होंने आवाज़ तो सुनी किन्तु किसी को भी देखा नहीं। 8 फिर शाऊल धरती पर से खड़ा हुआ। किन्तु जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह कुछ भी देख नहीं पाया। सो वे उसे हाथ पकड़ कर दमिश्क ले गये। 9 तीन दिन तक वह न तो कुछ देख पाया, और न ही उसने कुछ खाया या पिया।
10 दमिश्क में हनन्याह नाम का एक शिष्य था। प्रभु ने दर्शन देकर उससे कहा, “हनन्याह।”
सो वह बोला, “प्रभु, मैं यह रहा।”
11 प्रभु ने उससे कहा, “खड़ा हो और सीधी कहलाने वाली गली में जा। और वहाँ यहूदा के घर में जाकर तरसुस निवासी शाऊल नाम के एक व्यक्ति के बारे में पूछताछ कर क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है। 12 उसने एक दर्शन में देखा है कि हनन्याह नाम के एक व्यक्ति ने घर में आकर उस पर हाथ रखे हैं ताकि वह फिर से देख सके।”
13 हनन्याह ने उत्तर दिया, “प्रभु मैंने इस व्यक्ति के बारे में बहुत से लोगों से सुना है। यरूशलेम में तेरे संतों के साथ इसने जो बुरी बातें की हैं, वे सब मैंने सुना है। 14 और यहाँ भी यह प्रमुख याजकों से तेरे नाम में सभी विश्वास रखने वालों को बंदी बनाने का अधिकार लेकर आया है।”
15 किन्तु प्रभु ने उससे कहा, “तू जा क्योंकि इस व्यक्ति को विधर्मियों, राजाओं और इस्राएल के लोगों के सामने मेरा नाम लेने के लिये, एक साधन के रूप में मैंने चुना है। 16 मैं स्वयं उसे वह सब कुछ बताऊँगा, जो उसे मेरे नाम के लिए सहना होगा।”
17 सो हनन्याह चल पड़ा और उस घर के भीतर पहुँचा और शाऊल पर उसने अपने हाथ रख दिये और कहा, “भाई शाऊल, प्रभु यीशु ने मुझे भेजा है, जो तेरे मार्ग में तेरे सम्मुख प्रकट हुआ था ताकि तू फिर से देख सके और पवित्र आत्मा से भावित हो जाये।” 18 फिर तुरंत छिलकों जैसी कोई वस्तु उसकी आँखों से ढलकी और उसे फिर दिखाई देने लगा। वह खड़ा हुआ और उसने बपतिस्मा लिया। 19 फिर थोड़ा भोजन लेने के बाद उसने अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर ली।
शाऊल का दमिश्क में प्रचार कार्य
वह दमिश्क में शिष्यों के साथ कुछ समय ठहरा। 20 फिर वह तुरंत यहूदी आराधनालयों में जाकर यीशु का प्रचार करने लगा। वह बोला, “यह यीशु परमेश्वर का पुत्र है।”
मन्दिर के समर्पण के लिए दाऊद का एक पद।
1 हे यहोवा, तूने मेरी विपत्तियों से मेरा उद्धार किया है।
तूने मेरे शत्रुओं को मुझको हराने और मेरी हँसी उड़ाने नहीं दी।
सो मैं तेरे प्रति आदर प्रकट करुँगा।
2 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैंने तुझसे प्रार्थना की।
तूने मुझको चँगा कर दिया।
3 कब्र से तूने मेरा उद्धार किया, और मुझे जीने दिया।
मुझे मुर्दों के साथ मुर्दों के गर्त में पड़े हुए नहीं रहना पड़ा।
4 परमेश्वर के भक्तों, यहोवा की स्तुति करो!
उसके शुभ नाम की प्रशंसा करो।
5 यहोवा क्रोधित हुआ, सो निर्णय हुआ “मृत्यु।”
किन्तु उसने अपना प्रेम प्रकट किया और मुझे “जीवन” दिया।
मैं रात को रोते बिलखाते सोया।
अगली सुबह मैं गाता हुआ प्रसन्न था।
6 मैं अब यह कह सकता हूँ, और मैं जानता हूँ
यह निश्चय सत्य है, “मैं कभी नहीं हारुँगा!”
7 हे यहोवा, तू मुझ पर दयालु हुआ
और मुझे फिर अपने पवित्र पर्वत पर खड़े होने दिया।
तूने थोड़े समय के लिए अपना मुख मुझसे फेरा
और मैं बहुत घबरा गया।
8 हे परमेश्वर, मैं तेरी ओर लौटा और विनती की।
मैंने मुझ पर दया दिखाने की विनती की।
9 मैंने कहा, “परमेश्वर क्या यह अच्छा है कि मैं मर जाऊँ
और कब्र के भीतर नीचे चला जाऊँ
मरे हुए जन तो मिट्टी में लेटे रहते हैं,
वे तेरे नेक की स्तुति जो सदा सदा बनी रहती है नहीं करते।
10 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन और मुझ पर करुणा कर!
हे यहोवा, मेरी सहायता कर!”
11 मैंने प्रार्थना की और तूने सहायता की! तूने मेरे रोने को नृत्य में बदल दिया।
मेरे शोक वस्त्र को तूने उतार फेंका,
और मुझे आनन्द में सराबोर कर दिया।
12 हे यहोवा, मैं तेरा सदा यशगान करुँगा। मैं ऐसा करुँगा जिससे कभी नीरवता न व्यापे।
तेरी प्रशंसा सदा कोई गाता रहेगा।
11 तभी मैंने देखा और अनेक स्वर्गदूतों की ध्वनियों को सुना। वे उस सिंहासन, उन प्राणियों तथा प्राचीनों के चारों ओर खड़े थे। स्वर्गदूतों की संख्या लाखों और करोड़ों थी 12 वे ऊँचे स्वर में कह रहे थे:
“वह मेमना जो मार डाला गया था, वह पराक्रम, धन, विवेक, बल, आदर,
महिमा और स्तुति प्राप्त करने को योग्य है।”
13 फिर मैंने सुना कि स्वर्ग की, धरती पर की, पाताल लोक की, समुद्र की, समूची सृष्टि—हाँ, उस समूचे ब्रह्माण्ड का हर प्राणी कह रहा था:
“जो सिंहासन पर बैठा है और मेमना का स्तुति,
आदर, महिमा और पराक्रम सर्वदा रहें!”
14 फिर उन चारों प्राणियों ने “आमीन” कहा और प्राचीनों ने नत मस्तक होकर उपासना की।
यीशु झील पर प्रकट हुआ
21 इसके बाद झील तिबिरियास पर यीशु ने शिष्यों के सामने फिर अपने आपको प्रकट किया। उसने अपने आपको इस तरह प्रकट किया। 2 शमौन पतरस, थोमा (जो जुड़वाँ कहलाता था) गलील के काना का नतनएल, जब्दी के बेटे और यीशु के दो अन्य शिष्य वहाँ इकट्ठे थे। 3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।”
वे उससे बोले, “हम भी तेरे साथ चल रहे हैं।” तो वे उसके साथ चल दिये और नाव में बैठ गये। पर उस रात वे कुछ नहीं पकड़ पाये।
4 अब तक सुबह हो चुकी थी। तभी वहाँ यीशु किनारे पर आ खड़ा हुआ। किन्तु शिष्य जान नहीं सके कि वह यीशु है। 5 फिर यीशु ने उनसे कहा, “बालकों तुम्हारे पास कोई मछली है?”
उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं।”
6 फिर उसने कहा, “नाव की दाहिनी तरफ़ जाल फेंको तो तुम्हें कुछ मिलेगा।” सो उन्होंने जाल फेंका किन्तु बहुत अधिक मछलियों के कारण वे जाल को वापस खेंच नहीं सके।
7 फिर यीशु के प्रिय शिष्य ने पतरस से कहा, “यह तो प्रभु है।” जब शमौन ने यह सुना कि वह प्रभु है तो उसने अपना बाहर पहनने का वस्त्र कस लिया। (क्योंकि वह नंगा था।) और पानी में कूद पड़ा। 8 किन्तु दूसरे शिष्य मछलियों से भरा हुआ जाल खिंचते हुए नाव से किनारे पर आये। क्योंकि वे धरती से अधिक दूर नहीं थे, उनकी दूरी कोई सौ मीटर की थी। 9 जब वे किनारे आए उन्होंने वहाँ दहकते कोयलों की आग जलती देखी। उस पर मछली और रोटी पकने को रखी थी। 10 यीशु ने उनसे कहा, “तुमने अभी जो मछलियाँ पकड़ी हैं, उनमें से कुछ ले आओ।”
11 फिर शमौन पतरस नाव पर गया और 153 बड़ी मछलियों से भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा। जाल में यद्यपि इतनी अधिक मछलियाँ थी, फिर भी जाल फटा नहीं। 12 यीशु ने उनसे कहा, “यहाँ आओ और भोजन करो।” उसके शिष्यों में से किसी को साहस नहीं हुआ कि वह उससे पूछे, “तू कौन है?” क्योंकि वे जान गये थे कि वह प्रभु है। 13 यीशु आगे बढ़ा। उसने रोटी ली और उन्हें दे दी और ऐसे ही मछलियाँ भी दी।
14 अब यह तीसरी बार थी जब मरे हुओं में से जी उठने के बाद यीशु अपने शिष्यों के सामने प्रकट हुआ था।
यीशु की पतरस से बातचीत
15 जब वे भोजन कर चुके तो यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “यूहन्ना के पुत्र शमौन, जितना प्रेम ये मुझ से करते हैं, तू मुझसे उससे अधिक प्रेम करता है?”
पतरस ने यीशु से कहा, “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझे प्रेम करता हूँ।”
यीशु ने पतरस से कहा, “मेरे मेमनों[a] की रखवाली कर।”
16 वह उससे दोबारा बोला, “यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे प्रेम करता है?”
पतरस ने यीशु से कहा, “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझे प्रेम करता हूँ।”
यीशु ने पतरस से कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।”
17 यीशु ने फिर तीसरी बार पतरस से कहा, “यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे प्रेम करता है?”
पतरस बहुत व्यथित हुआ कि यीशु ने उससे तीसरी बार यह पूछा, “क्या तू मुझसे प्रेम करता है?” सो पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, तू सब कुछ जानता है, तू जानता है कि मैं तुझसे प्रेम करता हूँ।”
यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। 18 मैं तुझसे सत्य कहता हूँ, जब तू जवान था, तब तू अपनी कमर पर फेंटा कस कर, जहाँ चाहता था, चला जाता था। पर जब तू बूढा होगा, तो हाथ पसारेगा और कोई दूसरा तुझे बाँधकर जहाँ तू नहीं जाना चाहता, वहाँ ले जायेगा।” 19 (उसने यह दर्शाने के लिए ऐसा कहा कि वह कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा।) इतना कहकर उसने उससे कहा, “मेरे पीछे चला आ।”
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