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Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 30

मन्दिर के समर्पण के लिए दाऊद का एक पद।

हे यहोवा, तूने मेरी विपत्तियों से मेरा उद्धार किया है।
    तूने मेरे शत्रुओं को मुझको हराने और मेरी हँसी उड़ाने नहीं दी।
    सो मैं तेरे प्रति आदर प्रकट करुँगा।
हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैंने तुझसे प्रार्थना की।
    तूने मुझको चँगा कर दिया।
कब्र से तूने मेरा उद्धार किया, और मुझे जीने दिया।
    मुझे मुर्दों के साथ मुर्दों के गर्त में पड़े हुए नहीं रहना पड़ा।

परमेश्वर के भक्तों, यहोवा की स्तुति करो!
    उसके शुभ नाम की प्रशंसा करो।
यहोवा क्रोधित हुआ, सो निर्णय हुआ “मृत्यु।”
    किन्तु उसने अपना प्रेम प्रकट किया और मुझे “जीवन” दिया।
मैं रात को रोते बिलखाते सोया।
    अगली सुबह मैं गाता हुआ प्रसन्न था।

मैं अब यह कह सकता हूँ, और मैं जानता हूँ
    यह निश्चय सत्य है, “मैं कभी नहीं हारुँगा!”
हे यहोवा, तू मुझ पर दयालु हुआ
    और मुझे फिर अपने पवित्र पर्वत पर खड़े होने दिया।
तूने थोड़े समय के लिए अपना मुख मुझसे फेरा
    और मैं बहुत घबरा गया।
हे परमेश्वर, मैं तेरी ओर लौटा और विनती की।
    मैंने मुझ पर दया दिखाने की विनती की।
मैंने कहा, “परमेश्वर क्या यह अच्छा है कि मैं मर जाऊँ
    और कब्र के भीतर नीचे चला जाऊँ
मरे हुए जन तो मिट्टी में लेटे रहते हैं,
    वे तेरे नेक की स्तुति जो सदा सदा बनी रहती है नहीं करते।
10 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन और मुझ पर करुणा कर!
    हे यहोवा, मेरी सहायता कर!”

11 मैंने प्रार्थना की और तूने सहायता की! तूने मेरे रोने को नृत्य में बदल दिया।
मेरे शोक वस्त्र को तूने उतार फेंका,
    और मुझे आनन्द में सराबोर कर दिया।
12 हे यहोवा, मैं तेरा सदा यशगान करुँगा। मैं ऐसा करुँगा जिससे कभी नीरवता न व्यापे।
    तेरी प्रशंसा सदा कोई गाता रहेगा।

यशायाह 6:1-4

यशायाह को नबी बनने के लिये परमेश्वर का बुलावा

जिस वर्ष राजा उज्जिय्याह की मृत्यु हुई, मैंने अपने अद्भुत स्वामी के दर्शन किये। वह एक बहुत ऊँचे सिंहासन पर विराजमान था। उसके लम्वे चोगे से मन्दिर भर गया था। यहोवा के चारों ओर साराप स्वर्गदूत खड़े थे। हर साराप (स्वर्गदूत) के छः छः पंख थे। इनमें से दो पंखों का प्रयोग वे अपने मुखों को ढकने के लिए किया करते थे तथा दो पंखों का प्रयोग अपने पैरों को ढकने के लिये करते थे और दो पंखों को वे उड़ने के काम में लाते थे। हर स्वर्गदूत दूसरे स्वर्गदूत से पुकार—पुकार कर कह रहे थे, “पवित्र, पवित्र, पवित्र, सर्वशक्तिशाली यहोवा परम पवित्र है! यहोवा की महिमा सारी धरती पर फैली है।” स्वर्गदूतों की वाणी के स्वर बहुत ऊँचे थे। स्वर्गदूतों की आवाज़ से द्वार की चौखटें हिल उठीं और फिर मन्दिर धुएँ[a] से भरने लगा।

प्रकाशित वाक्य 4

स्वर्ग के दर्शन

इसके बाद मैंने दृष्टि उठाई और स्वर्ग का खुला द्वार मेरे सामने था। और वही आवाज़ जिसे मैंने पहले सुना था, तुरही के से स्वर में मुझसे कह रही थी, “यहीं ऊपर आ जा। मैं तुझे वह दिखाऊँगा जिसका भविष्य में होना निश्चित है।” फिर मैं तुरन्त ही आत्मा के वशीभूत हो उठा। मैंने देखा कि मेरे सामने स्वर्ग का सिंहासन था और उस पर कोई विराजमान था। जो वहाँ विराजमान था, उसकी आभा यशब और गोमेद के समान थी। उसके सिंहासन के चारों ओर एक इन्द्रधनुष था जो पन्ने जैसा दमक रहा था।

उस सिंहासन के चारों ओर चौबीस सिंहासन और थे, जिन पर चौबीस प्राचीन बैठे हुए थे। उन्होंने श्वेत वस्त्र पहने थे। उनके सिर पर सोने के मुकुट थे। सिंहासन में से बिजली की चकाचौंध, घड़घड़ाहट तथा मेघों का गर्जन-तर्जन निकल रहे थे। सिंहासन के सामने ही लपलपाती हुई सात मशालें जल रही थीं। ये मशालें परमेश्वर की सात आत्माएँ हैं। सिंहासन के सामने पारदर्शी काँच का स्फटिक सागर सा फैला था।

सिंहासन के ठीक सामने तथा उसके दोनों ओर चार प्राणी थे। उनके आगे और पीछे आँखें ही आँखें थीं। पहला प्राणी सिंह के समान था, दूसरा प्राणी बैल के जैसा था, तीसरे प्राणी का मुख मनुष्य के जैसा था और चौथा प्राणी उड़ते हुए गरूड़ जैसा था। इन चारों ही प्राणियों के छह छह पंख थे। उनके चारों ओर तथा भीतर आँखें ही आँखें भरी पड़ीं थीं। दिन रात वे निरन्तर कहते रहते थे:

“सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर पवित्र है,
पवित्र है, पवित्र है, जो था, जो है और जो आनेवाला है।”

जब ये सजीव प्राणी उस अजर अमर की महिमा, आदर और धन्यवाद कर रहे हैं जो सिंहासन पर विराजमान था तो 10 वे चौबीसों प्राचीन[a] उसके चरणों में गिरकर, उस सदा सर्वदा जीवित रहने वाले की उपासना करते हैं। वे सिंहासन के सामने अपने मुकुट डाल देते हैं और कहते हैं:

11 “हे हमारे प्रभु और हमारे परमेश्वर!
तू ही महिमा, आदर और शक्ति पाने को सुयोग्य है।
    क्योंकि तूने ही अपनी इच्छा से सभी वस्तु सृजी हैं।
तेरी ही इच्छा से उनका अस्तित्व है। और तेरी ही इच्छा से हुई है उनकी सृष्टि।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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