Revised Common Lectionary (Complementary)
परमेश्वर का कष्ट सहता सेवक
13 “मेरे सेवक की ओर देखो। यह बहुत सफल होगा। यह बहुत महत्त्वपूर्ण होगा। आगे चल कर लोग उसे आदर देंगे और उसका सम्मान करेंगे।” 14 “किन्तु बहुत से लोगों ने जब मेरे सेवक को देखा तो वे भौंचक्के रह गये। मेरा सेवक इतनी बुरी तरह से सताया हुआ था कि वे उसे एक मनुष्य के रूप में बड़ी कठिनता से पहचान पाये। 15 किन्तु और भी बड़ी संख्या में लोग उसे देख कर चकित होंगे। राजा उसे देखकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे और एक शब्द भी नहीं बोल पायेंगे। मेरे सेवक के बारे में उन लोगों ने वह कहानी बस सुनी ही नहीं है, जो कुछ हुआ था, बल्कि उन्होंने तो उसे देखा था। उन लोगों ने उस कहानी को सुना भर नहीं था, बल्कि उसे समझा था।”
53 हमने जो बातें बतायी थी; उनका सचमुच किसने विश्वास किया यहोवा के दण्ड को सचमुच किसने स्वीकारा
2 यहोवा के सामने एक छोटे पौधे की तरह उसकी बढ़वार हुई। वह एक ऐसी जड़ के समान था जो सूखी धरती में फूट रही थी। वह कोई विशेष, नहीं दिखाई देता था। न ही उसकी कोई विशेष महिमा थी। यदि हम उसको देखते तो हमें उसमें कोई ऐसी विशेष बात नहीं दिखाई देती, जिससे हम उसको चाह सकते। 3 उस से घृणा की गई थी और उसके मित्रों ने उसे छोड़ दिया था। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो पीड़ा को जानता था। वह बीमारी को बहुत अच्छी तरह पहचानता था। लोग उसे इतना भी आदर नहीं देते थे कि उसे देख तो लें। हम तो उस पर ध्यान तक नहीं देते थे।
4 किन्तु उसने हमारे पाप अपने ऊपर ले लिए। उसने हमारी पीड़ा को हमसे ले लिया और हम यही सोचते रहे कि परमेश्वर उसे दण्ड दे रहा है। हमने सोचा परमेश्वर उस पर उसके कर्मों के लिये मार लगा रहा है। 5 किन्तु वह तो उन बुरे कामों के लिये बेधा जा रहा था, जो हमने किये थे। वह हमारे अपराधों के लिए कुचला जा रहा था। जो कर्ज़ हमें चुकाना था, यानी हमारा दण्ड था, उसे वह चुका रहा था। उसकी यातनाओं के बदले में हम चंगे (क्षमा) किये गये थे। 6 किन्तु उसके इतना करने के बाद भी हम सब भेड़ों की तरह इधर—उधर भटक गये। हममें से हर एक अपनी—अपनी राह चला गया। यहोवा द्वारा हमें हमारे अपराधों से मुक्त कर दिये जाने के बाद और हमारे अपराध को अपने सेवक से जोड़ देने पर भी हमने ऐसा किया।
7 उसे सताया गया और दण्डित किया गया। किन्तु उसने उसके विरोध में अपना मुँह नहीं खोला। वह वध के लिये ले जायी जाती हुई भेड़ के समान चुप रहा। वह उस मेमने के समान चुप रहा जिसका ऊन उतारा जा रहा हो। अपना बचाव करने के लिये उसने कभी अपना मुँह नहीं खोला। 8 लोगों ने उस पर बल प्रयोग किया और उसे ले गये। उसके साथ खेरपन से न्याय नहीं किया गया। उसके भावी परिवार के प्रति कोई कुछ नहीं कह सकता क्योंकि सजीव लोगों की धरती से उसे उठा लिया गया। मेरे लोगों के पापों का भुगतान करने के लिये उसे दण्ड दिया गया था। 9 उसकी मृत्यु हो गयी और दुष्ट लोगों के साथ उसे गाड़ा गया। धनवान लोगों के बीच उसे दफ़नाया गया। उसने कभी कोई हिंसा नहीं की। उसने कभी झूठ नहीं बोला किन्तु फिर भी उसके साथ ऐसी बातें घटीं।
10 यहोवा ने उसे कुचल डालने का निश्चय किया। यहोवा ने निश्चय किया कि वह यातनाएँ झेले। सो सेवक ने अपना प्राण त्यागने को खुद को सौंप दिया। किन्तु वह एक नया जीवन अनन्त—अनन्त काल तक के लिये पायेगा। वह अपने लोगों को देखेगा। यहोवा उससे जो करना चाहता है, वह उन बातों को पूरा करेगा। 11 वह अपनी आत्मा में बहुत सी पीड़ाएँ झेलेगा किन्तु वह घटने वाली अच्छी बातों को देखेगा। वह जिन बातों का ज्ञान प्राप्त करता है, उनसे संतुष्ट होगा।
मेरा वह उत्तम सेवक बहुत से लोगों को उनके अपराधों से छुटकारा दिलाएगा। वह उनके पापों को अपने सिर ले लेगा। 12 इसलिए मैं उसे बहुतों के साथ पुरस्कार का सहभागी बनाऊँगा। वह इस पुरस्कार को विजेताओं के साथ ग्रहण करेगा। क्यों क्योंकि उसने अपना जीवन दूसरों के लिए दे दिया। उसने अपने आपको अपराधियों के बीच गिना जाने दिया। जबकि उसने वास्तव में बहुतेरों के पापों को दूर किया और अब वह पापियों के लिए प्रार्थना करता है।
प्रभात की हरिणी नामक राग पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक भजन।
1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर!
तूने मुझे क्यों त्याग दिया है? मुझे बचाने के लिये तू क्यों बहुत दूर है?
मेरी सहायता की पुकार को सुनने के लिये तू बहुत दूर है।
2 हे मेरे परमेश्वर, मैंने तुझे दिन में पुकारा
किन्तु तूने उत्तर नहीं दिया,
और मैं रात भर तुझे पुकाराता रहा।
3 हे परमेश्वर, तू पवित्र है।
तू राजा के जैसे विराजमान है। इस्राएल की स्तुतियाँ तेरा सिंहासन हैं।
4 हमारे पूर्वजों ने तुझ पर विश्वस किया।
हाँ! हे परमेश्वर, वे तेरे भरोसे थे! और तूने उनको बचाया।
5 हे परमेश्वर, हमारे पूर्वजों ने तुझे सहायता को पुकारा और वे अपने शत्रुओं से बच निकले।
उन्होंने तुझ पर विश्वास किया और वे निराश नहीं हुए।
6 तो क्या मैं सचमुच ही कोई कीड़ा हूँ,
जो लोग मुझसे लज्जित हुआ करते हैं और मुझसे घृणा करते हैं
7 जो भी मुझे देखता है मेरी हँसी उड़ाता है,
वे अपना सिर हिलाते और अपने होठ बिचकाते हैं।
8 वे मुझसे कहते हैं कि, “अपनी रक्षा के लिये तू यहोवा को पुकार ही सकता है।
वह तुझ को बचा लोगा।
यदि तू उसको इतना भाता है तो निश्चय ही वह तुझ को बचा लोगा।”
9 हे परमेश्वर, सच तो यह है कि केवल तू ही है जिसके भरोसा मैं हूँ। तूने मुझे उस दिन से ही सम्भाला है, जब से मेरा जन्म हुआ।
तूने मुझे आश्वस्त किया और चैन दिया, जब मैं अभी अपनी माता का दूध पीता था।
10 ठीक उसी दिन से जब से मैं जन्मा हूँ, तू मेरा परमेश्वर रहा है।
जैसे ही मैं अपनी माता की कोख से बाहर आया था, मुझे तेरी देखभाल में रख दिया गया था।
11 सो हे, परमेश्वर! मुझको मत बिसरा,
संकट निकट है, और कोई भी व्यक्ति मेरी सहायता को नहीं है।
12 मैं उन लोगों से घिरा हूँ,
जो शक्तिशाली साँड़ों जैसे मुझे घेरे हुए हैं।
13 वे उन सिंहो जैसे हैं, जो किसी जन्तु को चीर रहे हों
और दहाड़ते हो और उनके मुख विकराल खुले हुए हो।
14 मेरी शक्ति
धरती पर बिखरे जल सी लुप्त हो गई।
मेरी हड्डियाँ अलग हो गई हैं।
मेरा साहस खत्म हो चुका है।
15 मेरा मुख सूखे ठीकर सा है।
मेरी जीभ मेरे अपने ही तालू से चिपक रही है।
तूने मुझे मृत्यु की धूल में मिला दिया है।
16 मैं चारों तरफ कुतों से घिर हूँ,
दुष्ट जनों के उस समूह ने मुझे फँसाया है।
उन्होंने मेरे मेरे हाथों और पैरों को सिंह के समान भेदा है।
17 मुझको अपनी हड्डियाँ दिखाई देती हैं।
ये लोग मुझे घूर रहे हैं।
ये मुझको हानि पहुँचाने को ताकते रहते हैं।
18 वे मेरे कपड़े आपस में बाँट रहे हैं।
मेरे वस्त्रों के लिये वे पासे फेंक रहे हैं।
19 हे यहोवा, तू मुझको मत त्याग।
तू मेरा बल हैं, मेरी सहायता कर। अब तू देर मत लगा।
20 हे यहोवा, मेरे प्राण तलवार से बचा ले।
उन कुत्तों से तू मेरे मूल्यवान जीवन की रक्षा कर।
21 मुझे सिंह के मुँह से बचा ले
और साँड़ के सींगो से मेरी रक्षा कर।
22 हे यहोवा, मैं अपने भाईयों में तेरा प्रचार करुँगा।
मैं तेरी प्रशंसा तेरे भक्तों की सभा बीच करुँगा।
23 ओ यहोवा के उपासकों, यहोवा की प्रशंसा करो।
इस्राएल के वंशजों यहोवा का आदर करो।
ओ इस्राएल के सभी लोगों, यहोवा का भय मानों और आदर करो।
24 क्योंकि यहोवा ऐसे मनुष्यों की सहायता करता है जो विपति में होते हैं।
यहोवा उन से घृणा नहीं करता है।
यदि लोग सहायता के लिये यहोवा को पुकारे
तो वह स्वयं को उनसे न छिपायेगा।
25 हे यहोवा, मेरा स्तुति गान महासभा के बीच तुझसे ही आता है।
उन सबके सामने जो तेरी उपासना करते हैं। मैं उन बातों को पूरा करुँगा जिनको करने की मैंने प्रतिज्ञा की है।
26 दीन जन भोजन पायेंगे और सन्तुष्ट होंगे।
तुम लोग जो उसे खोजते हुए आते हो उसकी स्तुति करो।
मन तुम्हारे सदा सदा को आनन्द से भर जायें।
27 काश सभी दूर देशों के लोग यहोवा को याद करें
और उसकी ओर लौट आयें।
काश विदेशों के सब लोग यहोवा की आराधना करें।
28 क्योंकि यहोवा राजा है।
वह प्रत्येक राष्ट्र पर शासन करता है।
29 लोग असहाय घास के तिनकों की भाँति धरती पर बिछे हुए हैं।
हम सभी अपना भोजन खायेंगे और हम सभी कब्रों में लेट जायेंगे।
हम स्वयं को मरने से नहीं रोक सकते हैं। हम सभी भूमि में गाड़ दिये जायेंगे।
हममें से हर किसी को यहोवा के सामने दण्डवत करना चाहिए।
30 और भविष्य में हमारे वंशज यहोवा की सेवा करेंगे।
लोग सदा सर्वदा उस के बारे में बखानेंगे।
31 वे लोग आयेंगे और परमेश्वर की भलाई का प्रचार करेंगे
जिनका अभी जन्म ही नहीं हुआ।
16 “यह वह वाचा है जिसे मैं उनसे करूँगा। और फिर उसके बाद प्रभु घोषित करता है।
अपनी व्यवस्था उनके हृदयों में बसाऊँगा।
मैं उनके मनों पर उनको लिख दूँगा।”(A)
17 वह यह भी कहता है:
“उनके पापों और उनके दुष्कर्मों को
और अब मैं कभी याद नहीं रखूँगा।”(B)
18 और फिर जब पाप क्षमा कर दिए गए तो पापों के लिए किसी बलि की कोई आवश्यकता रह ही नहीं जाती।
परमेश्वर के निकट आओ
19 इसलिए भाईयों, क्योंकि यीशु के लहू के द्वारा हमें उस परम पवित्र स्थान में प्रवेश करने का निडर भरोसा है, 20 जिसे उसने परदे के द्वारा, अर्थात् जो उसका शरीर ही है, एक नए और सजीव मार्ग के माध्यम से हमारे लिए खोल दिया है। 21 और क्योंकि हमारे पास एक ऐसा महान याजक है जो परमेश्वर के घराने का अधिकारी है। 22 तो फिर आओ, हम सच्चे हृदय, निश्चयपूर्ण विश्वास अपनी अपराधपूर्ण चेतना से हमें शुद्ध करने के लिए किए गए छिड़काव से युक्त अपने हृदयों को लेकर शुद्ध जल से धोए हुए अपने शरीरों के साथ परमेश्वर के निकट पहुँचते हैं। 23 तो आओ जिस आशा को हमने अंगीकार किया है, हम अडिग भाव से उस पर डटे रहें क्योंकि जिसने हमें वचन दिया है, वह विश्वासपूर्ण है।
मज़बूत रहने के लिए एक दूसरे की सहायता करो
24 तथा आओ, हम ध्यान रखें कि हम प्रेम और अच्छे कर्मों के प्रति एक दूसरे को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं। 25 हमारी सभाओं में आना मत छोड़ो। जैसे कि कुछों को तो वहाँ नहीं आने की आदत ही पड़ गयी है। बल्कि हमें तो एक दूसरे को उत्साहित करना चाहिए। और जैसा कि तुम देख ही रहे हो-कि वह दिन[a] निकट आ रहा है। सो तुम्हें तो यह और अधिक करना चाहिए।
महान महायाजक यीशु
14 इसलिए क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु एक ऐसा महान् महायाजक है, जो स्वर्गों में से होकर गया है तो हमें अपने अंगीकृत एवं घोषित विश्वास को दृढ़ता के साथ थामे रखना चाहिए। 15 क्योंकि हमारे पास जो महायाजक है, वह ऐसा नहीं है जो हमारी दुर्बलताओं के साथ सहानुभूति न रख सके। उसे हर प्रकार से वैसे ही परखा गया है जैसे हमें फिर भी वह सर्वथा पाप रहित है। 16 तो फिर आओ, हम भरोसे के साथ अनुग्रह पाने परमेश्वर के सिंहासन की ओर बढ़ें ताकि आवश्यकता पड़ने पर हमारी सहायता के लिए हम दया और अनुग्रह को प्राप्त कर सकें।
7 यीशु ने इस धरती पर के जीवनकाल में जो उसे मृत्यु से बचा सकता था, ऊँचे स्वर में पुकारते हुए और रोते हुए उससे प्रार्थनाएँ तथा विनतियाँ की थीं और आदरपूर्ण समर्पण के कारण उसकी सुनी गयी। 8 यद्यपि वह उसका पुत्र था फिर भी यातनाएँ झेलते हुए उसने आज्ञा का पालन करना सीखा। 9 और एक बार सम्पूर्ण बन जाने पर उन सब के लिए जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, वह अनन्त छुटकारे का स्रोत बन गया।
यीशु का बंदी बनाया जाना
(मत्ती 26:47-56; मरकुस 14:43-50; लूका 22:47-53)
18 यीशु यह कहकर अपने शिष्यों के साथ छोटी नदी किद्रोन के पार एक बगीचे में चला गया।
2 धोखे से उसे पकड़वाने वाला यहूदा भी उस जगह को जानता था क्योंकि यीशु वहाँ प्रायः अपने शिष्यों से मिला करता था। 3 इसलिये यहूदा रोमी सिपाहियों की एक टुकड़ी और महायाजकों और फरीसियों के भेजे लोगों और मन्दिर के पहरेदारों के साथ मशालें दीपक और हथियार लिये वहाँ आ पहुँचा।
4 फिर यीशु जो सब कुछ जानता था कि उसके साथ क्या होने जा रहा है, आगे आया और उनसे बोला, “तुम किसे खोज रहे हो?”
5 उन्होंने उसे उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।”
यीशु ने उनसे कहा, “वह मैं हूँ।” (तब उसे धोखे से पकड़वाने वाला यहूदा भी वहाँ खड़ा था।) 6 जब उसने उनसे कहा, “वह मैं हूँ,” तो वे पीछे हटे और धरती पर गिर पड़े।
7 इस पर एक बार फिर यीशु ने उनसे पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?”
वे बोले, “यीशु नासरी को।”
8 यीशु ने उत्तर दिया, “मैंने तुमसे कहा, वह मैं ही हूँ। यदि तुम मुझे खोज रहे हो तो इन लोगों को जाने दो।” 9 यह उसने इसलिये कहा कि जो उसने कहा था, वह सच हो, “मैंने उनमें से किसी को भी नहीं खोया, जिन्हें तूने मुझे सौंपा था।”
10 फिर शमौन पतरस ने, जिसके पास तलवार थी, अपनी तलवार निकाली और महायाजक के दास का दाहिना कान काटते हुए उसे घायल कर दिया। (उस दास का नाम मलखुस था।) 11 फिर यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख! क्या मैं यातना का वह प्याला न पीऊँ जो परम पिता ने मुझे दिया है?”
यीशु का हन्ना के सामने लाया जाना
(मत्ती 26:57-58; मरकुस 14:53-54; लूका 22:54)
12 फिर रोमी टुकड़ी के सिपाहियों और उनके सूबेदारों तथा यहूदियों के मन्दिर के पहरेदारों ने यीशु को बंदी बना लिया। 13 और उसे बाँध कर पहले हन्ना के पास ले गये जो उस साल के महायाजक कैफा का ससुर था। 14 यह कैफा वही व्यक्ति था जिसने यहूदी नेताओं को सलाह दी थी कि सब लोगों के लिए एक का मरना अच्छा है।
पतरस का यीशु को पहचानने से इन्कार
(मत्ती 26:69-70; मरकुस 14:66-68; लूका 22:55-57)
15 शमौन पतरस तथा एक और शिष्य यीशु के पीछे हो लिये। महायाजक इस शिष्य को अच्छी तरह जानता था इसलिए वह यीशु के साथ महायाजक के आँगन में घुस गया। 16 किन्तु पतरस बाहर द्वार के पास ही ठहर गया। फिर महायाजक की जान पहचान वाला दूसरा शिष्य बाहर गया और द्वारपालिन से कह कर पतरस को भीतर ले आया। 17 इस पर उस दासी ने जो द्वारपालिन थी कहा, “हो सकता है कि तू भी यीशु का ही शिष्य है?”
पतरस ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”
18 क्योंकि ठंड बहुत थी दास और मन्दिर के पहरेदार आग जलाकर वहाँ खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ वहीं खड़ा था और ताप रहा था।
महायाजक की यीशु से पूछताछ
(मत्ती 26:59-66; मरकुस 14:55-64; लूका 22:66-71)
19 फिर महायाजक ने यीशु से उसके शिष्यों और उसकी शिक्षा के बारे में पूछा। 20 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “मैंने सदा लोगों के बीच हर किसी से खुल कर बात की है। सदा मैंने आराधनालयों में और मन्दिर में, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठे होते हैं, उपदेश दिया है। मैंने कभी भी छिपा कर कुछ नहीं कहा है। 21 फिर तू मुझ से क्यों पूछ रहा है? मैंने क्या कहा है उनसे पूछ जिन्होंने मुझे सुना है। मैंने क्या कहा, निश्चय ही वे जानते हैं।”
22 जब उसने यह कहा तो मन्दिर के एक पहरेदार ने, जो वहीं खड़ा था, यीशु को एक थप्पड़ मारा और बोला, “तूने महायाजक को ऐसे उत्तर देने की हिम्मत कैसे की?”
23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने कुछ बुरा कहा है तो प्रमाणित कर और बता कि उसमें बुरा क्या था, और यदि मैंने ठीक कहा है तो तू मुझे क्यों मारता है?”
24 फिर हन्ना ने उसे बंधे हुए ही महायाजक कैफा के पास भेज दिया।
पतरस का यीशु को पहचानने से फिर इन्कार
(मत्ती 26:71-75; मरकुस 14:69-72; लूका 22:58-62)
25 जब शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था तो उससे पूछा गया, “क्या यह सम्भव है कि तू भी उसका एक शिष्य है?” उसने इससे इन्कार किया।
वह बोला, “नहीं मैं नहीं हूँ।”
26 महायाजक के एक सेवक ने जो उस व्यक्ति का सम्बन्धी था जिसका पतरस ने कान काटा था, पूछा, “बता क्या मैंने तुझे उसके साथ बगीचे में नहीं देखा था?”
27 इस पर पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया। और तभी मुर्गे ने बाँग दी।
यीशु का पिलातुस के सामने लाया जाना
(मत्ती 27:1-2, 11-31; मरकुस 15:1-20; लूका 23:1-25)
28 फिर वे यीशु को कैफा के घर से रोमी राजभवन में ले गये। सुबह का समय था। यहूदी लोग राजभवन में नहीं जाना चाहते थे कि कहीं अपवित्र[a] न हो जायें और फ़सह का भोजन न खा सकें। 29 तब पिलातुस उनके पास बाहर आया और बोला, “इस व्यक्ति के ऊपर तुम क्या दोष लगाते हो?”
30 उत्तर में उन्होंने उससे कहा, “यदि यह अपराधी न होता तो हम इसे तुम्हें न सौंपते।”
31 इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, “इसे तुम ले जाओ और अपनी व्यवस्था के विधान के अनुसार इसका न्याय करो।”
यहूदियों ने उससे कहा, “हमें किसी को प्राणदण्ड देने का अधिकार नहीं है।” 32 (यह इसलिए हुआ कि यीशु ने जो बात उसे कैसी मृत्यु मिलेगी, यह बताते हुए कही थी, सत्य सिद्ध हो।)
33 तब पिलातुस महल में वापस चला गया। और यीशु को बुला कर उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”
34 यीशु ने उत्तर दिया, “यह बात क्या तू अपने आप कह रहा है या मेरे बारे में यह औरों ने तुझसे कही है?”
35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या तू सोचता है कि मैं यहूदी हूँ? तेरे लोगों और महायाजकों ने तुझे मेरे हवाले किया है। तूने क्या किया है?”
36 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस जगत का होता तो मेरी प्रजा मुझे यहूदियों को सौंपे जाने से बचाने के लिए युद्ध करती। किन्तु वास्तव में मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।”
37 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “तो तू राजा है?”
यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इसी प्रयोजन से मैं इस संसार में आया हूँ कि सत्य की साक्षी दूँ। हर वह व्यक्ति जो सत्य के पक्ष में है, मेरा वचन सुनता है।”
38 पिलातुस ने उससे पूछा, “सत्य क्या है?” ऐसा कह कर वह फिर यहूदियों के पास बाहर गया और उनसे बोला, “मैं उसमें कोई खोट नहीं पा सका हूँ 39 और तुम्हारी यह रीति है कि फ़सह पर्व के अवसर पर मैं तुम्हारे लिए किसी एक को मुक्त कर दूँ। तो क्या तुम चाहते हो कि मैं इस ‘यहूदियों के राजा’ को तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?”
40 एक बार वे फिर चिल्लाये, “इसे नहीं, बल्कि बरअब्बा को छोड़ दो।” (बरअब्बा एक बाग़ी था।)
19 तब पिलातुस ने यीशु को पकड़वा कर कोड़े लगवाये। 2 फिर सैनिकों ने कँटीली टहनियों को मोड़ कर एक मुकुट बनाया और उसके सिर पर रख दिया। और उसे बैंजनी रंग के कपड़े पहनाये। 3 और उसके पास आ-आकर कहने लगे, “यहूदियों का राजा जीता रहे” और फिर उसे थप्पड़ मारने लगे।
4 पिलातुस एक बार फिर बाहर आया और उनसे बोला, “देखो, मैं तुम्हारे पास उसे फिर बाहर ला रहा हूँ ताकि तुम जान सको कि मैं उसमें कोई खोट नहीं पा सका।” 5 फिर यीशु बाहर आया। वह काँटो का मुकुट और बैंजनी रंग का चोगा पहने हुए था। तब पिलातुस ने कहा, “यह रहा वह पुरुष।”
6 जब उन्होंने उसे देखा तो महायाजकों और मन्दिर के पहरेदारों ने चिल्ला कर कहा, “इसे क्रूस पर चढ़ा दो। इसे क्रूस पर चढ़ा दो।”
पिलातुस ने उससे कहा, “तुम इसे ले जाओ और क्रूस पर चढ़ा दो, मैं इसमें कोई खोट नहीं पा सक रहा हूँ।”
7 यहूदियों ने उसे उत्तर दिया, “हमारी व्यवस्था है जो कहती है, इसे मरना होगा क्योंकि इसने परमेश्वर का पुत्र होने का दावा किया है।”
8 अब जब पिलातुस ने उन्हें यह कहते सुना तो वह बहुत डर गया। 9 और फिर राजभवन के भीतर जाकर यीशु से कहा, “तू कहाँ से आया है?” किन्तु यीशु ने उसे उत्तर नहीं दिया। 10 फिर पिलातुस ने उससे कहा, “क्या तू मुझसे बात नहीं करना चाहता? क्या तू नहीं जानता कि मैं तुझे छोड़ने का अधिकार रखता हूँ और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।”
11 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “तुम्हें तब तक मुझ पर कोई अधिकार नहीं हो सकता था जब तक वह तुम्हें परम पिता द्वारा नहीं दिया गया होता। इसलिये जिस व्यक्ति ने मुझे तेरे हवाले किया है, तुझसे भी बड़ा पापी है।”
12 यह सुन कर पिलातुस ने उसे छोड़ने का कोई उपाय ढूँढने का यत्न किया। किन्तु यहूदी चिल्लाये, “यदि तू इसे छोड़ता है, तो तू कैसर का मित्र नहीं है, कोई भी जो अपने आप को राजा होने का दावा करता है, वह कैसर का विरोधी है।”
13 जब पिलातुस ने ये शब्द सुने तो वह यीशु को बाहर उस स्थान पर ले गया जो “पत्थर का चबूतरा” कहलाता था। (इसे इब्रानी भाषा में गब्बता कहा गया है।) और वहाँ न्याय के आसन पर बैठा। 14 यह फ़सह सप्ताह की तैयारी का दिन था।[b] लगभग दोपहर हो रही थी। पिलातुस ने यहूदियों से कहा, “यह रहा तुम्हारा राजा!”
15 वे फिर चिल्लाये, “इसे ले जाओ! इसे ले जाओ। इसे क्रूस पर चढ़ा दो!”
पिलातुस ने उनसे कहा, “क्या तुम चाहते हो तुम्हारे राजा को मैं क्रूस पर चढ़ाऊँ?”
इस पर महायाजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़कर हमारा कोई दूसरा राजा नहीं है।”
16 फिर पिलातुस ने उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिए उन्हें सौंप दिया।
यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना
(मत्ती 27:32-44; मरकुस 15:21-32; लूका 23:26-39)
इस तरह उन्होंने यीशु को हिरासत में ले लिया। 17 अपना क्रूस उठाये हुए वह उस स्थान पर गया जिसे, “खोपड़ी का स्थान” कहा जाता था। (इसे इब्रानी भाषा में “गुलगुता” कहते थे।) 18 वहाँ से उन्होंने उसे दो अन्य के साथ क्रूस पर चढ़ाया। एक इधर, दूसरा उधर और बीच में यीशु।
19 पिलातुस ने दोषपत्र क्रूस पर लगा दिया। इसमें लिखा था, “यीशु नासरी, यहूदियों का राजा।” 20 बहुत से यहूदियों ने उस दोषपत्र को पढ़ा क्योंकि जहाँ यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, वह स्थान नगर के पास ही था। और वह ऐलान इब्रानी, यूनानी और लातीनी में लिखा था।
21 तब प्रमुख यहूदी नेता पिलातुस से कहने लगे, “‘यहूदियों का राजा’ मत कहो। बल्कि कहो, ‘उसने कहा था कि मैं यहूदियों का राजा हूँ।’”
22 पिलातुस ने उत्तर दिया, “मैंने जो लिख दिया, सो लिख दिया।”
23 जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके तो उन्होंने उसके वस्त्र लिए और उन्हें चार भागों में बाँट दिया। हर भाग एक सिपाही के लिये। उन्होंने कुर्ता भी उतार लिया। क्योंकि वह कुर्ता बिना सिलाई के ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था। 24 इसलिये उन्होंने आपस में कहा, “इसे फाड़ें नहीं बल्कि इसे कौन ले, इसके लिए पर्ची डाल लें।” ताकि शास्त्र का यह वचन पूरा हो:
“उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बाँट लिये
और मेरे वस्त्र के लिए पर्ची डाली।”(A)
इसलिए सिपाहियों ने ऐसा ही किया।
25 यीशु के क्रूस के पास उसकी माँ, मौसी क्लोपास की पत्नी मरियम, और मरियम मगदलिनी खड़ी थी। 26 यीशु ने जब अपनी माँ और अपने प्रिय शिष्य को पास ही खड़े देखा तो अपनी माँ से कहा, “प्रिय महिला, यह रहा तेरा बेटा।” 27 फिर वह अपने शिष्य से बोला, “यह रही तेरी माँ।” और फिर उसी समय से वह शिष्य उसे अपने घर ले गया।
यीशु की मृत्यु
(मत्ती 27:45-56; मरकुस 15:33-41; लूका 23:44-49)
28 इसके बाद यीशु ने जान लिया कि सब कुछ पूरा हो चुका है। फिर इसलिए कि शास्त्र सत्य सिद्ध हो उसने कहा, “मैं प्यासा हूँ।” 29 वहाँ सिरके से भरा एक बर्तन रखा था। इसलिये उन्होंने एक स्पंज को सिरके में पूरी तरह डुबो कर हिस्सप अर्थात् जूफे की टहनी पर रखा और ऊपर उठा कर, उसके मुँह से लगाया। 30 फिर जब यीशु ने सिरका ले लिया तो वह बोला, “पूरा हुआ।” तब उसने अपना सिर झुका दिया और प्राण त्याग दिये।
31 यह फ़सह की तैयारी का दिन था। सब्त के दिन उनके शव क्रूस पर न लटके रहें क्योंकि सब्त का वह दिन बहुत महत्त्वपूर्ण था इसके लिए यहूदियों ने पिलातुस से कहा कि वह आज्ञा दे कि उनकी टाँगे तोड़ दी जाएँ और उनके शव वहाँ से हटा दिए जाए। 32 तब सिपाही आये और उनमें से पहले, पहले की और फिर दूसरे व्यक्ति की, जो उसके साथ क्रूस पर चढ़ाये गये थे, टाँगे तोड़ीं। 33 पर जब वे यीशु के पास आये, उन्होंने देखा कि वह पहले ही मर चुका है। इसलिए उन्होंने उसकी टाँगे नहीं तोड़ीं।
34 पर उनमें से एक सिपाही ने यीशु के पंजर में अपना भाला बेधा जिससे तत्काल ही खून और पानी बह निकला। 35 (जिसने यह देखा था उसने साक्षी दी; और उसकी साक्षी सच है, वह जानता है कि वह सच कह रहा है ताकि तुम लोग विश्वास करो।) 36 यह इसलिए हुआ कि शास्त्र का वचन पूरा हो, “उसकी कोई भी हड्डी तोड़ी नहीं जायेगी।”(B) 37 और धर्मशास्त्र में लिखा है, “जिसे उन्होंने भाले से बेधा, वे उसकी ओर ताकेंगे।”(C)
यीशु की अन्त्येष्टि
(मत्ती 27:57-61; मरकुस 15:42-47; लूका 23:50-56)
38 इसके बाद अरमतियाह के यूसुफ़ ने जो यीशु का एक अनुयायी था किन्तु यहूदियों के डर से इसे छिपाये रखता था, पिलातुस से विनती की कि उसे यीशु के शव को वहाँ से ले जाने की अनुमति दी जाये। पिलातुस ने उसे अनुमति दे दी। सो वह आकर उसका शव ले गया।
39 निकुदेमुस भी, जो यीशु के पास रात को पहले आया था, वहाँ कोई तीस किलो मिला हुआ गंधरस और एलवा लेकर आया। फिर वे यीशु के शव को ले गये 40 और (यहूदियों के शव को गाड़ने की रीति के अनुसार) उसे सुगंधित सामग्री के साथ कफ़न में लपेट दिया। 41 जहाँ यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, वहाँ एक बगीचा था। और उस बगीचे में एक नयी कब्र थी जिसमें अभी तक किसी को रखा नहीं गया था। 42 क्योंकि वह सब्त की तैयारी का दिन शुक्रवार था और वह कब्र बहुत पास थी, इसलिये उन्होंने यीशु को उसी में रख दिया।
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