Revised Common Lectionary (Complementary)
संगीत निर्देशक को यदूतून के लिये दाऊद का एक पद।
1 मैंने कहा, “जब तक ये दुष्ट मेरे सामने रहेंगे,
तब तक मैं अपने कथन के प्रति सचेत रहूँगा।
मैं अपनी वाणी को पाप से दूर रखूँगा।
और मैं अपने मुँह को बंद कर लूँगा।”
2 सो इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा।
मैंने भला भी नहीं कहा!
किन्तु मैं बहुत परेशान हुआ।
3 मैं बहुत क्रोधित था।
इस विषय में मैं जितना सोचता चला गया, उतना ही मेरा क्रोध बढ़ता चला गया।
सो मैंने अपना मुख तनिक नहीं खोला।
4 हे यहोवा, मुझको बता कि मेरे साथ क्या कुछ घटित होने वाला है?
मुझे बता, मैं कब तक जीवित रहूँगा?
मुझको जानने दे सचमुच मेरा जीवन कितना छोटा है।
5 हे यहोवा, तूने मुझको बस एक क्षणिक जीवन दिया।
तेरे लिये मेरा जीवन कुछ भी नहीं है।
हर किसी का जीवन एक बादल सा है। कोई भी सदा नहीं जीता!
6 वह जीवन जिसको हम लोग जीते हैं, वह झूठी छाया भर होता है।
जीवन की सारी भाग दौड़ निरर्थक होती है। हम तो बस व्यर्थ ही चिन्ताएँ पालते हैं।
धन दौलत, वस्तुएँ हम जोड़ते रहते हैं, किन्तु नहीं जानते उन्हें कौन भोगेगा।
7 सो, मेरे यहोवा, मैं क्या आशा रखूँ?
तू ही बस मेरी आशा है!
8 हे यहोवा, जो कुकर्म मैंने किये हैं, उनसे तू ही मुझको बचाएगा।
तू मेरे संग किसी को भी किसी अविवेकी जन के संग जैसा व्यवहार नहीं करने देगा।
9 मैं अपना मुँह नहीं खोलूँगा।
मैं कुछ भी नहीं कहूँगा।
यहोवा तूने वैसे किया जैसे करना चाहिए था।
10 किन्तुपरमेश्वर, मुझको दण्ड देना छोड़ दे।
यदि तूने मुझको दण्ड देना नहीं छोड़ा, तो तू मेरा नाश करेगा!
11 हे यहोवा, तू लोगों को उनके कुकर्मो का दण्ड देता है। और इस प्रकार जीवन की खरी राह लोगों को सिखाता है।
हमारी काया जीर्ण शीर्ण हो जाती है। ऐसे उस कपड़े सी जिसे कीड़ा लगा हो।
हमारा जीवन एक छोटे बादल जैसे देखते देखते विलीन हो जाती है।
12 हे यहोवा, मेरी विनती सुन!
मेरे शब्दों को सुन जो मैं तुझसे पुकार कर कहता हूँ।
मेरे आँसुओं को देख।
मैं बस राहगीर हूँ, तुझको साथ लिये इस जीवन के मार्ग से गुजरता हूँ।
इस जीवन मार्ग पर मैं अपने पूर्वजों की तरह कुछ समय मात्र टिकता हूँ।
13 हे यहोवा, मुझको अकेला छोड़ दे,
मरने से पहले मुझे आनन्दित होने दे, थोड़े से समय बाद मैं जा चुका होऊँगा।
17 तब यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने कहा, 2 “मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के परिवार को यह कहानी सुनाओ। उनसे पूछो कि इसका तात्पर्य क्या है 3 उनसे कहो:
“‘एक विशाल उकाब (नबूकदनेस्सर) विशाल पंख सहित लबानोन में आया।
उकाब के चितकबरे लम्बें पंख थे।
4 उस उकाब ने उस विशाल देवदार वृक्ष (लबानोन) के माथे को तोड़ डालाऔर उसे कनान ले गया।
उकाब ने व्यापारियों के नगर में उस शाखा को रखा।
5 तब उकाब ने बीजों (लोगों) में से कुछ को कनान से लिया।
उसने उन्हें अच्छी भूमि में बोया।
उसने एक अच्छी नदी के सहारे उन्हें बोया।
6 बीज उगे और वे अंगूर की बेल बने।
यह बेल अच्छी थी।
बेल ऊँची नहीं थी।
किन्तु यह एक बड़े क्षेत्र को ढकने के लिये फैल गई।
बेल के तने बने
और छोटी बेलें बहुत लम्बी हो गई।
7 तब दूसरे बड़े पंखों वाले उकाब ने अंगूर की बेल को देखा।
उकाब के लम्बें पंख थे।
अंगूर की बेल चाहती थी कि यह नया उकाब उसकी देख—भाल करे।
इसलिये इसने अपनी जड़ों को इस उकाब की ओर फैलाया।
इसकी शाखायें इस उकाब की ओर फैलीं।
इसकी शाखायें इस उकाब की ओर फलीं।
इसकी शाखायें उस खेत से दूर फैली जहाँ यह बोई गई थी।
अगूंर की बेल चाहती थी कि नया उकाब इसे पानी दे।
8 अगूंर की बेल अच्छे खेत में बोई गई थी।
यह प्रभूत जल के पास बोई गई थी।
यह शाखायें और फल उत्पन्न कर सकती थी।
यह एक बहुत अच्छी अगूंर की बेल हो सकती थी।’”
9 मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कही,
“क्या तुम समझते हो कि बेल सफल होगी?
नहीं! नया उकाब बेल को जमीन से उखाड़ देगा।
और पक्षी बेल की जड़ों को तोड़ देगा।
वह सारे अंगूर खा जाएगा।
तब नयी पत्तियाँ सूखेंगी और मर जाएंगी।
वह बेल बहुत कमजोर होगी।
इस बेल को जड़ से उखाड़ने के लिये शक्तिशाली अस्त्र—शस्त्र
या शक्तिशाली राष्ट्र की जरूरत नहीं होगी।
10 क्या यह बेल वहाँ बढ़ेगी जहाँ बोई गई हैं नहीं, गर्म पुरवाई चलेगी
और बेल सूखेगी और मर जाएगी।
यह वहीं मरेगी जहाँ यह बोई गई थी।”
12 जिन्होंने व्यवस्था को पाये बिना पाप किये, वे व्यवस्था से बाहर रहते हुए नष्ट होंगे। और जिन्होंने व्यवस्था में रहते हुए पाप किये उन्हें व्यवस्था के अनुसार ही दण्ड मिलेगा। 13 क्योंकि वे जो केवल व्यवस्था की कथा सुनते हैं परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी नहीं है। बल्कि जो व्यवस्था पर चलते है वे ही धर्मी ठहराये जायेंगे।
14 सो जब ग़ैर यहूदी लोग जिनके पास व्यवस्था नहीं है स्वभाव से ही व्यवस्था की बातों पर चलते हैं तो चाहे उनके पास व्यवस्था नहीं है तो भी वे अपनी व्यवस्था आप हैं। 15 वे अपने मन पर लिखे हुए, व्यवस्था के कर्मों को दिखाते हैं। उनका विवेक भी इसकी ही साक्षी देता है और उनका मानसिक संघर्ष उन्हें अपराधी बताता है या निर्दोष कहता है।
16 ये बातें उस दिन होंगी जब परमेश्वर मनुष्य की छूपी बातों का, जिसका मैं उपदेश देता हूँ उस सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा न्याय करेगा।
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