Revised Common Lectionary (Complementary)
मूसा का तेजस्वी मुख
29 तब मूसा सीनै पर्वत से नीचे उतरा। वह यहोवा की दोनों पत्थरों की समतल पट्टियों को साथ लाया जिन पर यहोवा के नियम लिखे थे। मूसा का मुख चमक रहा था। क्योंकि उसने परमेश्वर से बातें की थीं। किन्तु मूसा यह नहीं जानता था कि उसके मुख पर तेज है। 30 हारून और इस्राएल के सभी लोगों ने देखा कि मूसा का मुख चमक रहा था। इसलिए वे उसके पास जाने से डरे। 31 किन्तु मूसा ने उन्हें बुलाया। इसलिए हारून और लोगों के सभी अगुवा मूसा के पास गए। मूसा ने उन से बातें कीं। 32 उसके बाद इस्राएल के सभी लोग मूसा के पास आए। और मूसा ने उन्हें वे आदेश दिए जो यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसे दिए थे।
33 जब मूसा ने बातें करना खत्म किया तब उसने अपने मुख को एक कपड़े से ढक लिया। 34 जब कभी मूसा यहोवा के सामने बातें करने जाता तो कपड़े को हटा लेता था। तब मूसा बाहर आता और इस्राएल के लोगों को वह बताता जो यहोवा का आदेश होता था। 35 इस्राएल के लोग देखते थे कि मूसा का मुख तेज से चमक रहा है। इसलिए मूसा अपना मुख फिर ढक लेता था। मूसा अपने मुख को तब तक ढके रखता था जब तक वह यहोवा के साथ बात करने अगली बार नहीं जाता था।
1 यहोवा राजा है।
सो हे राष्ट्र, भय से काँप उठो।
परमेश्वर राजा के रूप में करूब दूतों पर विराजता है।
सो हे विश्व भय से काँप उठो।
2 यहोवा सिय्योन में महान है।
सारे मनुष्यों का वही महान राजा है।
3 सभी मनुष्य तेरे नाम का गुण गाएँ।
परमेश्वर का नाम भय विस्मय है।
परमेश्वर पवित्र है।
4 शक्तिशाली राजा को न्याय भाता है।
परमेश्वर तूने ही नेकी बनाया है।
तू ही याकूब (इस्राएल) के लिये खरापन और नेकी लाया।
5 यहोवा हमारे परमेश्वर का गुणगान करो,
और उसके पवित्र चरण चौकी की आराधना करो।
6 मूसा और हारुन परमेश्वर के याजक थे।
शमूएल परमेश्वर का नाम लेकर प्रार्थना करने वाला था।
उन्होंने यहोवा से विनती की
और यहोवा ने उनको उसका उत्तर दिया।
7 परमेश्वर ने ऊँचे उठे बादल में से बातें कीं।
उन्होंने उसके आदेशों को माना।
परमेश्वर ने उनको व्यवस्था का विधान दिया।
8 हमारे परमेश्वर यहोवा, तूने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया।
तूने उन्हें यह दर्शाया कि तू क्षमा करने वाला परमेश्वर है,
और तू लोगों को उनके बुरे कर्मो के लिये दण्ड देता है।
9 हमारे परमेश्वर यहोवा के गुण गाओ।
उसके पवित्र पर्वत की ओर झुककर उसकी उपासना करो।
हमारा परमेश्वर यहोवा सचमुच पवित्र है।
12 अपनी इसी आशा के कारण हम इतने निर्भय हैं। 13 हम उस मूसा के जैसे नहीं हैं जो अपने मुख पर पर्दा डाले रहता था कहीं इस्राएल के लोग (यहूदी) अपनी आँखें गड़ा कर जिसका विनाश सुनिश्चित था, उस सेवा के अंत को न देख लें। 14 किन्तु उनकी बुद्धि बन्द हो गयी थी, क्योंकि आज तक जब वे उस पुरानी वाचा को पढ़ते हैं, तो वही पर्दा उन पर बिना हटाये पड़ा रहता है। क्योंकि वह पर्दा बस मसीह के द्वारा ही हटाया जाता है। 15 आज तक जब जब मूसा का ग्रंथ पढ़ा जाता है तो पढ़ने वालों के मन पर वह पर्दा पड़ा ही रहता है। 16 किन्तु जब किसी का हृदय प्रभु की ओर मुड़ता है तो वह पर्दा हटा दिया जाता है। 17 देखो! जिस प्रभु की ओर मैं इंगित कर रहा हूँ, वही आत्मा है। और जहाँ प्रभु की आत्मा है, वहाँ छुटकारा है। 18 सो हम सभी अपने खुले मुख के साथ दर्पण में प्रभु के तेज का जब ध्यान करते हैं तो हम भी वैसे ही होने लगते हैं और हमारा तेज अधिकाधिक बढ़ने लगता है। यह तेज उस प्रभु से ही प्राप्त होता है। यानी आत्मा से।
मिट्टी के पात्रों में अध्यात्म का धन
4 क्योंकि परमेश्वर के अनुग्रह से यह सेवा हमें प्राप्त हुई है, इसलिए हम निराश नहीं होते। 2 हमने तो लज्जापूर्ण गुप्त कार्यों को छोड़ दिया है। हम कपट नहीं करते और न ही हम परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, बल्कि सत्य को सरल रूप में प्रकट करके लोगों की चेतना में परमेश्वर के सामने अपने आप को प्रशंसा के योग्य ठहराते हैं।
मूसा और एलिय्याह के साथ यीशु
(मत्ती 17:1-8; मरकुस 9:2-8)
28 इन शब्दों के कहने के लगभग आठ दिन बाद वह पतरस, यूहन्ना और याकूब को साथ लेकर प्रार्थना करने के लिए पहाड़ के ऊपर गया। 29 फिर ऐसा हुआ कि प्रार्थना करते हुए उसके मुख का स्वरूप कुछ भिन्न ही हो गया और उसके वस्त्र चमचम करते सफेद हो गये। 30 वहीं उससे बात करते हुए दो पुरुष प्रकट हुए। वे मूसा और एलिय्याह थे। 31 जो अपनी महिमा के साथ प्रकट हुए थे और यीशु की मृत्यु के विषय में बात कर रहे थे जिसे वह यरूशलेम में पुरा करने पर था। 32 किन्तु पतरस और वे जो उसके साथ थे नींद से घिरे थे। सो जब वे जागे तो उन्होंने यीशु की महिमा को देखा और उन्होंने उन दो जनों को भी देखा जो उसके साथ खड़े थे। 33 और फिर हुआ यूँ कि जैसे ही वे उससे विदा ले रहे थे, पतरस ने यीशु से कहा, “स्वामी, अच्छा है कि हम यहाँ हैं, हमें तीन मण्डप बनाने हैं—एक तेरे लिए। एक मूसा के लिये और एक एलिय्याह के लिये।” (वह नहीं जानता था, वह क्या कह रहा था।)
34 वह ये बातें कर ही रहा था कि एक बादल उमड़ा और उसने उन्हें अपनी छाया में समेट लिया। जैसे ही उन पर बादल छाया, वे घबरा गये। 35 तभी बादलों से आकाशवाणी हुई, “यह मेरा पुत्र है, इसे मैंने चुना है, इसकी सुनो।”
36 जब आकाशवाणी हो चुकी तो उन्होंने यीशु को अकेले पाया। वे इसके बारे में चुप रहे। उन्होंने जो कुछ देखा था, उस विषय में उस समय किसी से कुछ नहीं कहा।
लड़के को दुष्टात्मा से छुटकारा
(मत्ती 17:14-18; मरकुस 9:14-27)
37 अगले दिन ऐसा हुआ कि जब वे पहाड़ी से नीचे उतरे तो उन्हें एक बड़ी भीड़ मिली। 38 तभी भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्ला उठा, “गुरु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे बेटे पर अनुग्रह-दृष्टि कर। वह मेरी एकलौती सन्तान है। 39 अचानक एक दुष्ट आत्मा उसे जकड़ लेती है और वह चीख उठता है। उसे दुष्टात्मा ऐसे मरोड़ डालती है कि उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। वह उसे कभी नहीं छोड़ती और सताए जा रही है। 40 मैंने तेरे शिष्यों से प्रार्थना की कि वह उसे बाहर निकाल दें किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।”
41 तब यीशु ने उत्तर दिया, “अरे अविश्वासियों और भटकाये गये लोगों, मैं और कितने दिन तुम्हारे साथ रहूँगा और कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? अपने बेटे को यहाँ ले आ।”
42 अभी वह लड़का आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटकी दी और मरोड़ दिया। किन्तु यीशु ने दुष्ट आत्मा को फटकारा और लड़के को निरोग करके वापस उसके पिता को सौंप दिया। 43 वे सभी परमेश्वर की इस महानता से चकित हो उठे।
यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की चर्चा
(मत्ती 17:22-23; मरकुस 9:30-32)
यीशु जो कुछ कर रहा था उसे देखकर लोग जब आश्चर्य कर रहे थे तभी यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,
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