Revised Common Lectionary (Complementary)
2 परमेश्वर मेरी रक्षा करता है।
मुझे उसका भरोसा है।
मुझे कोई भय नहीं है।
वह मेरी रक्षा करता है।
यहोवा याह मेरी शक्ति है।
वह मुझको बचाता है, और मैं उसका स्तुति गीत गाता हूँ।
3 तू अपना जल मुक्ति के झरने से ग्रहण कर।
तभी तू प्रसन्न होगा।
4 फिर तू कहेगा, “यहोवा की स्तुति करो!
उसके नाम की तुम उपासना किया करो!
उसने जो कार्य किये हैं उसका लोगों से बखान करो।
तुम उनको बताओ कि वह कितना महान है!”
5 तुम यहोवा के स्तुति गीत गाओ!
क्यों क्योंकि उसने महान कार्य किये हैं!
इस शुभ समाचार को जो परमेशवर का है,
सारी दुनियाँ में फैलाओ ताकि सभी लोग ये बातें जान जायें।
6 हे सिय्योन के लोगों, इन सब बातों का तुम उद्घोष करो!
वह इस्राएल का पवित्र (शक्तिशाली) ढंग से तुम्हारे साथ है।
इसलिए तुम प्रसन्न हो जाओ!
8 मेरे स्वामी यहोवा पापपूर्ण राज्य (इस्राएल) पर दृष्टि रखा है।
यहोवा यह कहता है,
“मैं पृथ्वी पर से इस्राएल को नष्ट कर दूँगा।
किन्तु मैं याकूब के परिवार को पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा।
9 मैं इस्राएल के घराने को तितर—बितर करके
अन्य राष्ट्रों में बिखेर देने का आदेश देता हूँ।
यह उसी प्रकार होगा जैसे कोई व्यक्ति अनाज को छनने से छन देता हो।
अच्छा आटा उससे निकल जाता है, किन्तु बुरे अंश फँस जाते हैं।
याकूब के परिवार के साथ ऐसा ही होगा।
10 “मेरे लोगों के बीच पापी कहते हैं,
‘हम लोगों के साथ कुछ भी बुरा घटित नहीं होगा!’
किन्तु वे सभी लोग तलवार से मार दिये जाएँगे।”
परमेश्वर राज्य की पुनस्थापना की प्रतिज्ञा करता है
11 “दाऊद का डेरा गिर गया है,
किन्तु उस समय इस डेरे को मैं फिर खड़ा करूँगा।
मैं दीवारों के छेदों को भर दूँगा।
मैं नष्ट इमारतों को फिर से बनाऊँगा।
मैं इसे ऐसा बनाऊँगा जैसा यह पहले था।
12 फिर वे एदोम में जो लोग बच गये हैं,
उन्हें और उन जातियों को
जो मेरे नाम से जानी जाती है, ले जायेंगे।”
यहोवा ने वे बातें कहीं, और वे उन्हें घटित करायेगा।
13 यहोवा कहता है, “वह समय आ रहा है, जब हर प्रकार का भोजन बहुतायत में होगा।
अभी लोग पूरी तरह फसल काट भी नहीं पाये होंगे
कि जुताई का समय आ जायेगा।
लोग अभी अंगूरों का रस निकाल ही रहे होंगे
कि अंगूरों की रूपाई का समय फिर आ पहुँचेगा।
पर्वतों से दाखमधु की धार बहेगी
और वह पहाड़ियों से बरसेगी।
14 मैं अपने लोगों इस्राएलियों को
देश निकाले से वापस लाऊँगा।
वे नष्ट हुए नगरों को फिर से बनाएंगे
और उन नगरों में रहेंगे।
वे अंगूर की बेलों के बाग लगाएंगे
और वे उन बागों से प्राप्त दाखमधु पीएंगे।
वे बाग लगाएंगे
और वे उन बागों के फलों को खाएंगे।
15 मैं अपने लोगों को उनकी भूमी पर जमाऊँगा
और वे पुन: उस देश से उखाड़े नहीं जाएंगे जिसे मैंने उन्हें दिया है।”
यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने ये बाते कहीं।
यूहन्ना का जन्म
57 फिर इलीशिबा का बच्चे को जन्म देने का समय आया और उसके घर एक पुत्र पैदा हुआ। 58 जब उसके पड़ोसियों और उसके परिवार के लोगों ने सुना कि प्रभु ने उस पर दया दर्शायी है तो सबने उसके साथ मिल कर हर्ष मनाया।
59 और फिर ऐसा हुआ कि आठवें दिन बालक का ख़तना करने के लिए लोग वहाँ आये। वे उसके पिता के नाम के अनुसार उसका नाम जकरयाह रखने जा रहे थे, 60 तभी उसकी माँ बोल उठी, “नहीं, इसका नाम तो यूहन्ना रखा जाना है।”
61 तब वे उससे बोले, “तुम्हारे किसी भी सम्बन्धी का यह नाम नहीं है।” 62 और फिर उन्होंने संकेतों में उसके पिता से पूछा कि वह उसे क्या नाम देना चाहता है?
63 इस पर जकरयाह ने उनसे लिखने के लिये एक तख्ती माँगी और लिखा, “इसका नाम है यूहन्ना।” इस पर वे सब अचरज में पड़ गये। 64 तभी तत्काल उसका मुँह खुल गया और उसकी वाणी फूट पड़ी। वह बोलने लगा और परमेश्वर की स्तुति करने लगा। 65 इससे सभी पड़ोसी डर गये और यहूदिया के सारे पहाड़ी क्षेत्र में लोगों में इन सब बातों की चर्चा होने लगी। 66 जिस किसी ने भी यह बात सुनी, अचरज में पड़कर कहने लगा, “यह बालक क्या बनेगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उस पर है।
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