Revised Common Lectionary (Complementary)
8 तब यहोवा ने एलिय्याह से कहा, 9 “सीदोन में सारपत को जाओ। वहीं रहो। उस स्थान पर एक विधवा स्त्री रहती है। मैंने उसे तुम्हें भोजन देने का आदेश दिया है।”
10 अत: एलिय्याह सारपत पहुँचा। वह नगर द्वार पर पहुँचा और उसने एक स्त्री को देखा। उसका पति मर चुका था। वह स्त्री ईंधन के लिये लकड़ियाँ इकट्ठी कर रही थी। एलिय्याह ने उससे कहा, “क्या तुम एक प्याले में थोड़ा पानी दोगी जिसे मैं पी सकूँ” 11 वह स्त्री उसके लिये पानी लाने जा रही थी, तो एलिय्याह ने कहा, “कृपया मेरे लिये एक रोटी का छोटा टुकड़ा भी लाओ।”
12 उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर की शपथ खाकर कहती हूँ कि मेरे पास रोटी नहीं है। मेरे पास बर्तन में मुट्ठी भर आटा और पीपे में थोड़ा सा जैतून का तेल है। इस स्थान पर मैं ईंधन के लिये दो चार लकड़ियाँ इकट्ठी करने आई थी। मैं इसे लेकर घर लौटूँगी और अपना आखिरी भोजन पकाऊँगी। मैं और मेरा पुत्र दोनों इसे खायेंगे और तब भूख से मर जाएंगे।”
13 एलिय्याह ने स्त्री से कहा, “परेशान मत हो। घर लौटो और जैसा तुमने कहा, अपना भोजन पकाओ। किन्तु तुम्हारे पास जो आटा है उसकी पहले एक छोटी रोटी बनाना। उस रोटी को मेरे पास लाना। तब अपने और अपने पुत्र के लिये पकाना। 14 इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा कहता है, ‘उस आटे का बर्तन कभी खाली नहीं होगा। पीपे में तेल सदैव रहेगा। ऐसा तब तक होता रहेगा जिस दिन तक यहोवा इस भूमि पर पानी नहीं बरसाता।’”
15 अत: वह स्त्री अपने घर लौटी। उसने वही किया जो एलिय्याह ने उससे करने को कहा था। एलिय्याह, वह स्त्री और उसका पुत्र बहुत दिनों तक पर्याप्त भोजन पाते रहे। 16 आटे का बर्तन और तेल का पीपा दोनों कभी खाली नहीं हुए। यह वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने होने को कहा था। यहोवा ने एलिय्याह के द्वारा बातें की थीं।
1 यहोवा का गुण गान कर!
मेरे मन, यहोवा की प्रशंसा कर।
2 मैं अपने जीवन भर यहोवा के गुण गाऊँगा।
मैं अपने जीवन भर उसके लिये यश गीत गाऊँगा।
3 अपने प्रमुखों के भरोसे मत रहो।
सहायता पाने को व्यक्ति के भरोसे मत रहो, क्योंकि तुमको व्यक्ति बचा नहीं सकता है।
4 लोग मर जाते हैं और गाड़ दिये जाते है।
फिर उनकी सहायता देने की सभी योजनाएँ यूँ ही चली जाती है।
5 जो लोग, याकूब के परमेश्वर से अति सहायता माँगते, वे अति प्रसन्न रहते हैं।
वे लोग अपने परमेश्वर यहोवा के भरोसे रहा करते हैं।
6 यहोवा ने स्वर्ग और धरती को बनाया है।
यहोवा ने सागर और उसमें की हर वस्तु बनाई है।
यहोवा उनको सदा रक्षा करेगा।
7 जिन्हें दु:ख दिया गया, यहोवा ऐसे लोगों के संग उचित बात करता है।
यहोवा भूखे लोगों को भोजन देता है।
यहोवा बन्दी लोगों को छुड़ा दिया करता है।
8 यहोवा के प्रताप से अंधे फिर देखने लग जाते हैं।
यहोवा उन लोगों को सहारा देता जो विपदा में पड़े हैं।
यहोवा सज्जन लोगों से प्रेम करता है।
9 यहोवा उन परदेशियों की रक्षा किया करता है जो हमारे देश में बसे हैं।
यहोवा अनाथों और विधवाओं का ध्यान रखता है
किन्तु यहोवा दुर्जनों के कुचक्र को नष्ट करता हैं।
10 यहोवा सदा राज करता रहे!
सिय्योन तुम्हारा परमेश्वर पर सदा राज करता रहे!
यहोवा का गुणगान करो!
24 मसीह ने मनुष्य के हाथों के बने परम पवित्र स्थान में, जो सच्चे परम पवित्र स्थान की एक प्रतिकृति मात्र था, प्रवेश नहीं किया। उसने तो स्वयं स्वर्ग में ही प्रवेश किया ताकि अब वह हमारी ओर से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रकट हो।
25 और न ही अपना बार-बार बलिदान चढ़ाने के लिए उसने स्वर्ग में उस प्रकार प्रवेश किया जैसे महायाजक उस लहू के साथ, जो उसका अपना नहीं है, परम पवित्र स्थान में हर साल प्रवेश करता है। 26 नहीं तो फिर मसीह को सृष्टि के आदि से ही अनेक बार यातनाएँ झेलनी पड़तीं। किन्तु अब देखो, इतिहास के चरम बिन्दु पर अपने बलिदान के द्वारा पापों का अंत करने के लिए वह सदा सदा के लिए एक ही बार प्रकट हो गया है।
27 जैसे एक बार मरना और उसके बाद न्याय का सामना करना मनुष्य की नियति है। 28 सो वैसे ही मसीह को, एक ही बार अनेक व्यक्तियों के पापों को उठाने के लिए बलिदान कर दिया गया। और वह पापों को वहन करने के लिए नहीं, बल्कि जो उसकी बाट जोह रहे हैं, उनके लिए उद्धार लाने को फिर दूसरी बार प्रकट होगा।
धर्मशास्त्रियों के विरोध में यीशु की चेतावनी
(मत्ती 23:1-36; लूका 20:45-47)
38 अपने उपदेश में उसने कहा, “धर्मशास्त्रियों से सावधान रहो। वे अपने लम्बे चोगे पहने हुए इधर उधर घूमना पसंद करते हैं। बाजारों में अपने को नमस्कार करवाना उन्हें भाता है। 39 और आराधनालयों में वे महत्वपूर्ण आसनों पर बैठना चाहते हैं। वे जेवनारों में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान पाने की इच्छा रखते हैं। 40 वे विधवाओं की सम्पति हड़प जाते हैं। दिखावे के लिये वे लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ बोलते हैं। इन लोगों को कड़े से कड़ा दण्ड मिलेगा।”
सच्चा दान
(लूका 21:1-4)
41 यीशु दान-पात्र के सामने बैठा हुआ देख रहा था कि लोग दान पात्र में किस तरह धन डाल रहे हैं। बहुत से धनी लोगों ने बहुत सा धन डाला। 42 फिर वहाँ एक गरीब विधवा आयी और उसने उसमें दो दमड़ियाँ डालीं जो एक पैसे के बराबर भी नहीं थीं।
43 फिर उसने अपने चेलों को पास बुलाया और उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, धनवानों द्वारा दान-पात्र में डाले गये प्रचुर दान से इस निर्धन विधवा का यह दान कहीं महान है। 44 क्योंकि उन्होंने जो कुछ उनके पास फालतु था, उसमें से दान दिया, किन्तु इसने अपनी दीनता में जो कुछ इसके पास था सब कुछ दे डाला। इसके पास इतना सा ही था जो इसके जीवन का सहारा था!”
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