Revised Common Lectionary (Complementary)
15 यहोवा सज्जनों की रक्षा करता है।
उनकी प्रार्थनाओं पर वह कान देता है।
16 किन्तु यहोवा, जो बुरे काम करते हैं, ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध होता है।
वह उनको पूरी तरह नष्ट करता है।
17 यहोवा से विनती करो, वह तुम्हारी सुनेगा।
वह तुम्हें तुम्हारी सब विपत्तियों से बचा लेगा।
18 लोगों को विपत्तियाँ आ सकती है और वे अभिमानी होना छोड़ते हैं। यहोवा उन लोगों के निकट रहता है।
जिनके टूटे मन हैं उनको वह बचा लेगा।
19 सम्भव है सज्जन भी विपत्तियों में घिर जाए।
किन्तु यहोवा उन सज्जनों की उनकी हर समस्या से रक्षा करेगा।
20 यहोवा उनकी सब हड्डियों की रक्षा करेगा।
उनकी एक भी हड्डी नहीं टूटेगी।
21 किन्तु दुष्ट की दुष्टता उनको ले डूबेगी।
सज्जन के विरोधी नष्ट हो जायेंगे।
22 यहोवा अपने हर दास की आत्मा बचाता है।
जो लोग उस पर निर्भर रहते हैं, वह उन लोगों को नष्ट नहीं होने देगा।
21 रूबेन, गाद और मनश्शे के परिवार समूह के लोगों ने ग्यारह व्यक्तियों को उत्तर दिया। उन्होंने यह कहा, 22 “हमारा परमेश्वर यहोवा है! हम लोग फिर दुहराते हैं कि हमारा परमेश्वर यहोवा है[a] और परमेश्वर जानता है कि हम लोगों ने यह क्यों किया। हम लोग चाहते हैं कि तुम लोग भी यह जानो। तुम लोग उसका निर्णय कर सकते हो जो हम लोगों ने किया है। यदि तुम लोगों को यह विश्वास है कि हम लोगों ने पाप किया है तो तुम लोग हमे अभी मार सकते हो। 23 यदि हम ने परमेश्वर के नियम को तोड़ा है तो हम कहेंगे कि यहोवा स्वयं हमें सजा दे। क्या तुम लोग यह सोचते हो कि हम लोगों ने इस वेदी को होमबलि चढ़ाने और अन्नबलि तथा मेलबलि चढ़ाने के लिये बनाया है? 24 नहीं! हम लोगों ने इसे इस उद्देश्य से नहीं बनाया है। हम लोगों ने ये वेदी क्यों बनाई है? हम लोगों को भय था कि भविष्य में तुम्हारे लोग हम लोगों को अपने राष्ट्र का एक भाग नहीं समझेंगे। तब तुम्हारे लोग यह कहेंगे, तुम लोग इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की उपासना नहीं कर सकते। 25 परमेश्वर ने हम लोगों को यरदन नदी की दूसरी ओर का प्रदेश दिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि यरदन नदी को सीमा बनाया है। हमें डर है कि जब तुम्हारे बच्चे बड़े होकर इस प्रदेश पर शासन करेंगे तब वे हमें भूल जाएंगे, कि हम भी तुम्हारे लोग हैं। वे हम से कहेंगे, ‘हे रूबेन और गाद के लोगो तुन इस्राएल के भाग नहीं हो!’ तब तुम्हारे बच्चे हमारे बच्चों को यहोवा की उपासना करने से रोकेंगे। इसलिये तुम्हारे बच्चे हम लोगों के बच्चों को यहोवा की उपासना करने से रोक देंगे।
26 “इसलिए हम लोगों ने इस वेदी को बनाया। किन्तु हम लोग यह योजना नहीं बना रहे हैं कि इस पर होमबलि चढ़ाएंगे और बलियाँ देंगे। 27 हम लोगों ने जिस सच्चे उद्देश्य के लिये वेदी बनाई थी, वह अपने लोगों को यह दिखाना मात्र था कि हम उस परमेश्वर की उपासना करते हैं जिसकी तुम लोग उपासना करते हो। यह वेदी तुम्हारे लिये, हम लोगों के लिये और भविष्य में हम लोगों के बच्चों के लिये इस बात का प्रमाण होगा कि हम लोग परमेश्वर की उपासना करते हैं। हम लोग यहोवा को अपनी बलियाँ, अन्नबलि और मेलबलि चढ़ाते हैं। हम चाहते थे कि तुम्हारे बच्चे बढ़ें और जानें कि हम लोग भी तुम्हारी तरह इस्राएल के लोग हैं। 28 भविष्य में यदि ऐसा होता है कि तुम्हारे बच्चे कहें कि हम लोग इस्राएल से सम्बन्ध नहीं रखते तो हमारे बच्चे तब कह सकेंगे कि ध्यान दें! ‘हमारे पूर्वजों ने, जो हम लोगों से पहले थे, एक वेदी बनाई थी। यह वेदी ठीक वैसी ही है जैसी पवित्र तम्बू के सामने यहोवा की वेदी है। हम लोग इस वेदी का उपयोग बलि देने के लिये नहीं करते—यह इस बात का संकेत करता है कि हम लोग इस्राएल के एक भाग हैं।’
29 “सत्य तो यह है, कि हम लोग यहोवा के विरुद्ध नहीं होना चाहते। हम लोग अब उसका अनुसरण करना छोड़ना नहीं चाहते। हम लोग जानते हैं कि एक मात्र सच्ची वेदी वही है जो पवित्र तम्बू के सामने है। वह वेदी, हमारे परमेश्वर यहोवा की है।”
30 याजक पीनहास और दस प्रमुखों ने रूबेन, गाद और मनश्शे के लोगों द्वारा कही गई यह बात सुनी। वे इस बात से सन्तुष्ट थे कि लोग सच बोल रहे थे। 31 इसलिए याजक एलीआज़र के बारे में पीनहास ने कहा, “अब हम लोग समझते हैं कि योहवा हमारे साथ है और हम लोग जानते हैं कि तुम में से कोई भी उसके विपरीत नहीं गए हो। हम लोग प्रसन्न हैं कि इस्राएल के लोगों को यहोवा से दण्ड नहीं मिलेगा।”
32 तब पीनहास और प्रमुखों ने उस स्थान को छोड़ा और वे अपने घर चले गए। उन्होंने रूबेन और गाद के लोगों को गिलाद प्रदेश में छोड़ा और कनान को लौट गये। वे लौटकर इस्राएल के लोगों के पास गये और जो कुछ हुआ था, उनसे कहा। 33 इस्राएल के लोग भी सन्तुष्ट हो गए। वे प्रसन्न थे और उन्होंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। उन्होंने निर्णय लिया कि वे रूबेन, गाद और मनश्शे के लोगों के विरुद्ध जाकर नहीं लड़ेंगे। उन्होंने उन प्रदेशों को नष्ट न करने का निर्णय किया।
34 और रुबेन और गाद के लोगों ने कहा, “यह वेदी सभी लोगों को यह बताती है कि हमें यह विश्वास है कि यहोवा परमेश्वर है और इसलिए उन्होंने वेदी का नाम ‘प्रमाण’ रखा।”
माँगते रहो
(मत्ती 7:7-11)
5-6 फिर उसने उनसे कहा, “मानो, तुममें से किसी का एक मित्र है, सो तुम आधी रात उसके पास जाकर कहते हो, ‘हे मित्र मुझे तीन रोटियाँ दे। क्योंकि मेरा एक मित्र अभी-अभी यात्रा से मेरे पास आया है और मेरे पास उसके सामने परोसने के लिये कुछ भी नहीं है।’ 7 और कल्पना करो उस व्यक्ति ने भीतर से उत्तर दिया, ‘मुझे तंग मत कर, द्वार बंद हो चुका है, बिस्तर में मेरे साथ मेरे बच्चे हैं, सो तुझे कुछ भी देने मैं खड़ा नहीं हो सकता।’ 8 मैं तुम्हें बताता हूँ वह यद्यपि नहीं उठेगा और तुम्हें कुछ नहीं देगा, किन्तु फिर भी क्योंकि वह तुम्हारा मित्र है, सो तुम्हारे निरन्तर, बिना संकोच माँगते रहने से वह खड़ा होगा और तुम्हारी आवश्यकता भर, तुम्हें देगा। 9 और इसीलिये मैं तुमसे कहता हूँ माँगो, तुम्हें दिया जाएगा। खोजो, तुम पाओगे। खटखटाओ, तुम्हारे लिए द्वार खोल दिया जायेगा। 10 क्योंकि हर कोई जो माँगता है, पाता है। जो खोजता है, उसे मिलता है। और जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है। 11 तुममें ऐसा पिता कौन होगा जो यदि उसका पुत्र मछली माँगे, तो मछली के स्थान पर उसे साँप थमा दे 12 और यदि वह अण्डा माँगे तो उसे बिच्छू दे दे। 13 सो बुरे होते हूए भी जब तुम जानते हो कि अपने बच्चों को उत्तम उपहार कैसे दिये जाते हैं, तो स्वर्ग में स्थित परम पिता, जो उससे माँगते हैं, उन्हें पवित्र आत्मा कितना अधिक देगा।”
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