Revised Common Lectionary (Complementary)
23-24 किन्तु तब भी परमेश्वर ने उन पर बादल को उघाड़ दिया,
उऩके खाने के लिय़े नीचे मन्ना बरसा दिया।
यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे अम्बर के द्वार खुल जाये
और आकाश के कोठे से बाहर अन्न उँडेला हो।
25 लोगों ने वह स्वर्गदूत का भोजन खाया।
उन लोगों को तृप्त करने के लिये परमेश्वर ने भरपूर भोजन भेजा।
26 फिर परमेश्वर ने पूर्व से तीव्र पवन चलाई
और उन पर बटेरे वर्षा जैसे गिरने लगी।
27 तिमान की दिशा से परमेश्वर की महाशक्ति ने एक आँधी उठायी और नीला आकाश काला हो गया
क्योंकि वहाँ अनगिनत पक्षी छाए थे।
28 वे पक्षी ठीक डेरे के बीच में गिरे थे।
वे पक्षी उन लोगों के डेरों के चारों तरफ गिरे थे।
29 उनके पास खाने को भरपूर हो गया,
किन्तु उनकी भूख ने उनसे पाप करवाये।
43 यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “फसह पर्व के नियम ये हैं: कोई विदेशी फसह पर्व में से नहीं खाएगा। 44 किन्तु यदि कोई व्यक्ति दास को खरीदेगा और यदि उसका खतना करेगा तो वह दास उस में से खा सकेगा। 45 किन्तु यदि कोई व्यक्ति केवल तुम लोगों के देश में रहता है या किसी व्यक्ति को तुम्हारे लिए मजदूरी पर रखा गया है तो उस व्यक्ति को उस में से नहीं खाना चाहिए। वह केवल इस्राएल के लोगों के लिए है।
46 “प्रत्येक परिवार को घर के भीतर ही भोजन करना चाहिए। कोई भी भोजन घर के बाहर नहीं ले जाना चाहिए। मेमने की किसी हड्डी को न तोड़ें। 47 पूरी इस्राएली जाति इस उत्सव को अवश्य मनाए। 48 यदि कोई ऐसा व्यक्ति तुम लोगों के साथ रहता है जो इस्राएल की जाति का सदस्य नहीं है किन्तु वह फसह पर्व में सम्मिलित होना चाहता है तो उसका खतना अवश्य होना चाहिए। तब वह इस्राएल के नागरिक के समान होगा, और वह भोजन में भाग ले सकेगा। किन्तु यदि उस व्यक्ति का खतना नहीं हुआ हो तो वह इस फसह पर्व के भोजन को नहीं खा सकता। 49 ये ही नियम हर एक पर लागू होंगे। नियमों के लागू होने में इस बात को कोई महत्व नहीं होगा कि वह व्यक्ति तुम्हारे देश का नागरिक है या विदेशी है।”
50 इसलिए इस्राएल के सभी लोगों ने उन आदेशों का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा और हारून को दिया था। 51 इस प्रकार यहोवा उसी दिन इस्राएल के सभी लोगों को मिस्र से बाहर ले गया। लोगों ने समूहों में प्रस्थान किया।
13 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “प्रत्येक पहलौठा इस्राएली लड़का मुझे समर्पित होगा। हर एक स्त्री का पहलौठा नर बच्चा मेरा ही होगा। तुम लोग हर एक नर पहलौठा जानवर को भी मुझे समर्पित करना।”
27 अतः जो कोई भी प्रभु की रोटी या प्रभु के प्याले को अनुचित रीति से खाता पीता है, वह प्रभु की देह और उस के लहू के प्रति अपराधी होगा। 28 व्यक्ति को चाहिये कि वह पहले अपने को परखे और तब इस रोटी को खाये और इस प्याले को पिये। 29 क्योंकि प्रभु के देह का अर्थ समझे बिना जो इस रोटी को खाता और इस प्याले को पीता है, वह इस प्रकार खा-पी कर अपने ऊपर दण्ड को बुलाता है। 30 इसलिए तो तुममें से बहुत से लोग दुर्बल हैं, बीमार हैं और बहुत से तो चिरनिद्रा में सो गये हैं। 31 किन्तु यदि हमने अपने आप को अच्छी तरह से परख लिया होता तो हमें प्रभु का दण्ड न भोगना पड़ता। 32 प्रभु हमें अनुशासित करने के लिये दण्ड देता है। ताकि हमें संसार के साथ दंडित न किया जाये।
33 इसलिए हे मेरे भाईयों, जब भोजन करने तुम इकट्ठे होते हो तो परस्पर एक दूसरे की प्रतिक्षा करो। 34 यदि सचमुच किसी को बहुत भूख लगी हो तो उसे घर पर ही खा लेना चाहिये ताकि तुम्हारा एकत्र होना तुम्हारे लिये दण्ड का कारण न बने। अस्तु; दूसरी बातों को जब मैं आऊँगा, तभी सुलझाऊँगा।
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