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Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 90:12-17

12 तू हमको सिखा दे कि हम सचमुच यह जाने कि हमारा जीवन कितना छोटा है।
    ताकि हम बुद्धिमान बन सकें।
13 हे यहोवा, तू सदा हमारे पास लौट आ।
    अपने सेवकों पर दया कर।
14 प्रति दिन सुबह हमें अपने प्रेम से परिपूर्ण कर,
    आओ हम प्रसन्न हो और अपने जीवन का रस लें।
15 तूने हमारे जीवनों में हमें बहुत पीड़ा और यातना दी है, अब हमें प्रसन्न कर दे।
16 तेरे दासों को उन अद्भुत बातों को देखने दे जिनको तू उनके लिये कर सकता है,
    और अपनी सन्तानों को अपनी महिमा दिखा।
17 हमारे परमेश्वर, हमारे स्वमी, हम पर कृपालु हो।
    जो कुछ हम करते हैं
    तू उसमें सफलता दे।

व्यवस्था विवरण 5:22-33

लोगों का भय

22 मूसा ने कहा, “यहोवा ने ये आदेश तुम सभी को दिये जब तुम एक साथ पर्वत पर थे। यहोवा ने स्पष्ट शब्दों में बातें कीं और उसकी तेज आवाज आग, बादल और घने अन्धकार से सुनाई दे रही थी। जब उसने यह आदेश दे दिये तब और कुछ नहीं कहा। उसने अपने शब्दों को दो पत्थर की शिलाओं पर लिखा और उन्हें मुझे दे दिया।

23 “तुमने आवाज को अंधेरे में तब सुना जब पर्वत आग से जल रहा था। तब तुम मेरे पास आए, तुम्हारे परिवार समूह के सभी नेता और तुम्हारे सभी बुजुर्ग। 24 उन्होंने कहा, ‘यहोवा हमारे परमशेवर ने अपना गौरव और महानता दिखाई है। हमने उसे आग में से बोलते सुना है! आज हम लोगों ने देख लिया है कि किसी व्यक्ति का परमेश्वर से बात करने के बाद भी जीवित रह सकना, सम्भव है। 25 किन्तु यदि हमने यहोवा अपने परमेश्वर को दुबारा बात करते सुना तो हम जरूर मर जाएंगे! वह भयानक आग हमें नष्ट कर देगी। किन्तु हम मरना नहीं चाहते। 26 कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसने हम लोगों की तरह कभी जीवित परमेश्वर को आग में से बात करते सुना हो और जीवित हो! 27 मूसा, तुम समीप जाओ और यहोवा हम लोगों का परमेश्वर, जो कहता है सुनो। तब वह सब बातें हमें बताओ जो यहोवा तुमसे कहता है, और हम लोग वह सब करेंगे जो तुम कहोगे।’

यहोवा मूसा से बात करता है

28 “यहोवा ने वे बातें सुने जो तुमने मुझसे कहीं। तब यहोवा न मुझसे कहा, ‘मैंने वे बातें सुनीं जो इन लोगों ने कहीं। जो कुछ उन्होंने कहा है, ठीक है। 29 मैं केवल यह चाहता हूँ कि वे हृदय से मेरा सम्मान करें और मेरे आदेशों को मानें। तब हर एक चीज उनके तथा उनके वंशजों के लिए सदैव अच्छी रहेगी।

30 “‘जाओ और लोगों से कहो कि अपने डेरों में लौट जायें। 31 किन्तु मूसा, तुम मेरे निकट खड़े रहो। मैं तुम्हें सारे आदेश, विधि और नियम दूँगा जिसकी शिक्षा तुम उन्हें दोगे। उन्हें ये सभी बातें उस देश में करनी चाहिए जिसे मैं उन्हें रहने के लिए दे रहा हूँ।’

32 “इसलिए तुम सभी लोगों को वह सब कुछ करने के लिए सावाधान रहना चाहिए जिसके लिए यहोवा का तुम्हें आदेश है। तुम्हें न दाहिने हाथ मुड़ना चाहिये और न ही बायें हाथ। सदैव उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिये! 33 तुम्हें उसी तरह रहना चाहिए, जिस प्रकार रहने का आदेश यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुमको दिया है। तब तुम सदा जीवित रह सकते हो और हर चीज तुम्हारे लिए अच्छी होगी। उस देश में, जो तुम्हारा होगा, तुम्हारी आयु लम्बी हो जायेगी।

इब्रानियों 4:1-11

अतः जब उसकी विश्राम में प्रवेश की प्रतिज्ञा अब तक बनी हुई है तो हमें सावधान रहना चाहिए कि तुममें से कोई अनुपयुक्त सिद्ध न हो। क्योंकि हमें भी उन्हीं के समान सुसमाचार का उपदेश दिया गया है। किन्तु जो सुसंदेश उन्होंने सुना, वह उनके लिए व्यर्थ था। क्योंकि उन्होंने जब उसे सुना तो इसे विश्वास के साथ धारण नहीं किया। अब देखो, हमने, जो विश्वासी हैं, उस विश्राम में प्रवेश पाया है। जैसा कि परमेश्वर ने कहा भी है:

“मैंने क्रोध में इसी से तब शपथ लेकर कहा था,
    ‘वे कभी मेरे विश्राम में सम्मिलित नहीं होंगे।’”(A)

जब संसार की सृष्टि करने के बाद उसका काम पूरा हो गया था। उसने सातवें दिन के सम्बन्ध में इन शब्दों में कहीं शास्त्रों में कहा है, “और फिर सातवें दिन अपने सभी कामों से परमेश्वर ने विश्राम लिया।”(B) और फिर उपरोक्त सन्दर्भ में भी वह कहता है: “वे कभी मेरे विश्राम में सम्मिलित नहीं होंगे।”

जिन्हें पहले सुसन्देश सुनाया गया था अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण वे तो विश्राम में प्रवेश नहीं पा सके किन्तु औरों के लिए विश्राम का द्वार अभी भी खुला है। इसलिए परमेश्वर ने फिर एक विशेष दिन निश्चित किया और उसे नाम दिया “आज” कुछ वर्षों के बाद दाऊद के द्वारा परमेश्वर ने उस दिन के बारे में शास्त्र में बताया था। जिसका उल्लेख हमने अभी किया है:

“यदि आज उसकी आवाज़ सुनो,
    अपने हृदय जड़ मत करो।”(C)

अतः यदि यहोशू उन्हें विश्राम में ले गया होता तो परमेश्वर बाद में किसी और दिन के विषय में नहीं बताता। तो खैर जो भी हो। परमेश्वर के भक्तों के लिए एक वैसी विश्राम रहती ही है जैसी विश्राम सातवें दिन परमेश्वर की थी। 10 क्योंकि जो कोई भी परमेश्वर की विश्राम में प्रवेश करता है, अपने कर्मों से विश्राम पा जाता है। वैसे ही जैसे परमेश्वर ने अपने कर्मों से विश्राम पा लिया। 11 सो आओ हम भी उस विश्राम में प्रवेश पाने के लिए प्रत्येक प्रयत्न करें ताकि उनकी अनाज्ञाकारिता के उदाहरण का अनुसरण करते हुए किसी का भी पतन न हो।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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