Revised Common Lectionary (Complementary)
मेम्
97 आ हा, यहोवा तेरी शिक्षाओं से मुझे प्रेम है।
हर घड़ी मैं उनका ही बखान किया करता हूँ।
98 हे यहोवा, तेरे आदेशों ने मुझे मेरे शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान बनाया।
तेरा विधान सदा मेरे साथ रहता है।
99 मैं अपने सब शिक्षाओं से अधिक बुद्धिमान हूँ
क्योंकि मैं तेरी वाचा का पाठ किया करता हूँ।
100 बुजुर्ग प्रमुखों से भी अधिक समझता हूँ।
क्योंकि मैं तेरे आदेशों को पालता हूँ।
101 हे यहोवा, तू मुझे राह में हर कदम बुरे मार्ग से बचाता है,
ताकि जो तू मुझे बताता है वह मैं कर सकूँ।
102 यहोवा, तू मेरा शिक्षक है।
सो मैं तेरे विधान पर चलना नहीं छोड़ूँगा।
103 तेरे वचन मेरे मुख के भीतर
शहद से भी अधिक मीठे हैं।
104 तेरी शिक्षाएँ मुझे बुद्धिमान बनाती है।
सो मैं झूठी शिक्षाओं से घृणा करता हूँ।
इस्राएल के लोगों द्वारा अपने पापों का अंगीकार
9 फिर उसी महीने की चौबीसवीं तारीख को एक दिन के उपवास के लिये इस्राएल के लोग परस्पर एकत्र हुए। उन्होंने यह दिखने के लिये कि वे दु:खी और बेचैन हैं, उन्होंने शोक वस्त्र धारण किये, अपने अपने सिरों पर राख डाली। 2 वे लोग जो सच्चे इस्राएली थे, उन्होंने बाहर के लोगों से अपने आपको अलग कर दिया। इस्राएली लोगों ने मन्दिर में खड़े होकर अपने और अपने पूर्वजों के पापों को स्वीकार किया। 3 वे लोग वहाँ लगभग तीन घण्टे खड़े रहे और उन्होंने अपने यहोवा परमेश्वर की व्यवस्था के विधान की पुस्तक का पाठ किया और फिर तीन घण्टे और अपने यहोवा परमेश्वर की उपासना करते हुए उन्होंने स्वयं को नीचे झुका लिया तथा अपने पापों को स्वीकार किया।
4 फिर लेवीवंशी येशू, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, बानी और कनानी सीढ़ियों पर खड़े हो गये और उन्होंने अपने परमेश्वर यहोवा को ऊँचे स्वर में पुकारा। 5 इसके बाद लेवीवंशी येशू, कदमीएल, बानी, हशबन्याह, शेरेब्याह, होदियाह, शबन्याह और पतहयाह ने फिर कहा। वे बोले: “खड़े हो जाओ और अपने यहोवा परमेश्वर की स्तुति करो!
“परमेश्वर सदा से जीवित था! और सदा ही जीवित रहेगा!
लोगों को चाहिये कि स्तुति करें तेरे महिमावान नाम की!
सभी आशीषों से और सारे गुण—गानों से नाम ऊपर उठे तेरा!
6 तू तो परमेश्वर है! यहोवा,
बस तू ही परमेश्वर है!
आकाश को तूने बनाया है! सर्वोच्च आकाशों की रचना की तूने,
और जो कुछ है उनमें सब तेरा बनाया है!
धरती की रचना की तूने ही,
और जो कुछ धरती पर है!
सागर को,
और जो कुछ है सागर में!
तूने बनाया है हर किसी वस्तु को जीवन तू देता है!
सितारे सारे आकाश के, झुकते हैं सामने तेरे और उपासना करते हैं तेरी!
7 यहोवा परमेश्वर तू ही है,
अब्राम को तूने चुना था।
राह उसको तूने दिखाई थी,
बाबेल के उर से निकल जाने की तूने ही बदला था।
उसका नाम और उसे दिया नाम इब्राहीम का।
8 तूने यह देखा था कि वह सच्चा और निष्ठावान था तेरे प्रति।
कर लीया तूने साथ उसके वाचा एक
उसे देने को धरती
कनान की वचन दिया तूने धरती, जो हुआ करती थी हित्तियों की और एमोरीयों की।
धरती, जो हुआ करती थी परिज्जियों, यबूसियों और गिर्गाशियों की!
किन्तु वचन दिया तूने उस धरती को देने का इब्राहीम की संतानों को
और अपना वचन वह पूरा किया तूने क्यों? क्योंकि तू उत्तम है।
9 यहोवा देखा था तड़पते हुए तूने हमारे पूर्वजों को मिस्र में।
पुकारते सहायता को लाल सागर के तट पर तूने उनको सुना था!
10 फ़िरौन को तूने दिखाये थे चमत्कार।
तूने हाकिमों को उसके और उसके लोगों को दिखाये थे अद्भुत कर्म।
तुझको यह ज्ञान था कि सोचा करते थे
मिस्री कि वे उत्तम हैं हमारे पूर्वजों से।
किन्तु प्रमाणित कर दिया तूने कि तू कितना महान है!
और है उसकी याद बनी हुई उनको आज तक भी!
11 सामने उनके लाल सागर को विभक्त किया था तूने,
और वे पार हो गये थे सूखी धरती पर चलते हुए!
मिस्र के सैनिक पीछा कर रहे थे उनका। किन्तु डुबा दिया तूने था शत्रु को सागर में।
और वे डूब गये सागर में जैसे डूब जाता है पानी में पत्थर।
12 मीनार जैसे बादल से दिन में उन्हें राह तूने दिखाई
और अग्नि के खंभे का प्रयोग कर रात में उनको तूने दिखाई राह।
मार्ग को तूने उनके इस प्रकार कर दिया ज्योर्तिमय
और दिखा दिया उनको कि कहाँ उन्हें जाना है।
13 फिर तू उतरा सीनै पहाड़ पर और आकाश से
तूने था उनको सम्बोधित किया।
उत्तम विधान दे दिया तूने
उन्हें सच्ची शिक्षा को था तूने दिया उनको।
व्यवस्था का विधान उन्हें तूने दिया और तूने दिया आदेश उनको बहुत उत्तम!
14 तूने बताया उन्हें सब्त यानी अपने विश्राम के विशेष दिन के विषय में।
तूने अपने सेवक मूसा के द्वारा उनको आदेश दिये।
व्यवस्था का विधान दिया और दी शिक्षाएँ।
15 जब उनको भूख लगी,
बरसा दिया भोजन था तूने आकाश से।
जब उन्हें प्यास लगी,
चट्टान से प्रकट किया तूने था जल को
और कहा तूने था उनसे ‘आओ, ले लो इस प्रदेश को।’
तूने वचन दिया उन को उठाकर हाथ यह प्रदेश देने का उनको!
पत्नी और पति
21 मसीह के प्रति सम्मान के कारण एक दूसरे को समर्पित हो जाओ।
22 हे पत्नियो, अपने-अपने पतियों के प्रति ऐसे समर्पित रहो, जैसे तुम प्रभु को समर्पित होती हो। 23 क्योंकि अपनी पत्नी के ऊपर उसका पति ही प्रमुख है। वैसे ही जैसे हमारी कलीसिया का सिर मसीह है। वह स्वयं ही इस देह का उद्धार करता है। 24 जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियों को सब बातों में अपने अपने पतियों के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
25 हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम करो। वैसे ही जैसे मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आपको उसके लिये बलि दे दिया। 26 ताकि वह उसे प्रभु की सेवा में जल में स्नान करा के पवित्र कर हमारी घोषणा के साथ परमेश्वर को अर्पित कर दे। 27 इस प्रकार वह कलीसिया को एक ऐसी चमचमाती दुल्हन के रूप में स्वयं के लिए प्रस्तुत कर सकता है जो निष्कलंक हो, झुरियों से रहित हो या जिसमें ऐसी और कोई कमी न हो। बल्कि वह पवित्र हो और सर्वथा निर्दोष हो।
28 पतियों को अपनी-अपनी पत्नियों से उसी प्रकार प्रेम करना चाहिए जैसे वे स्वयं अपनी देहों से करते हैं। जो अपनी पत्नी से प्रेम करता है, वह स्वयं अपने आप से ही प्रेम करता है। 29 कोई अपनी देह से तो कभी घृणा नहीं करता, बल्कि वह उसे पालता-पोसता है और उसका ध्यान रखता है। वैसे ही जैसे मसीह अपनी कलीसिया का 30 क्योंकि हम भी तो उसकी देह के अंग ही हैं। 31 शास्त्र कहता है: “इसीलिए एक पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से बंध जाता है और दोनों एक देह हो जाते हैं।”(A) 32 यह रहस्यपूर्ण सत्य बहुत महत्वपूर्ण है और मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह मसीह और कलीसिया पर भी लागू होता है। 33 सो कुछ भी हो, तुममें से हर एक को अपनी पत्नी से वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे तुम स्वयं अपने आपको करते हो। और एक पत्नी को भी अपने पति का डर मानते हुए उसका आदर करना चाहिए।
बच्चे और माता-पिता
6 हे बालकों, प्रभु में आस्था रखते हुए माता-पिता की आज्ञा का पालन करो क्योंकि यही उचित है। 2 “अपने माता-पिता का सम्मान कर।”(B) यह पहली आज्ञा है जो इस प्रतिज्ञा से भी युक्त है, 3 “तेरा भला हो और तू धरती पर चिरायु हो।”(C)
4 और हे पिताओं, तुम भी अपने बालकों को क्रोध मत दिलाओ बल्कि प्रभु से मिली शिक्षा और निर्देशों को देते हुए उनका पालन-पोषण करो।
सेवक और स्वामी
5 हे सेवको, तुम अपने सांसारिक स्वामियों की आज्ञा निष्कपट हृदय से भय और आदर के साथ उसी प्रकार मानो जैसे तुम मसीह की आज्ञा मानते हो। 6 केवल किसी के देखते रहते ही काम मत करो जैसे तुम्हें लोगों के समर्थन की आवश्यकता हो। बल्कि मसीह के सेवक के रूप में काम करो जो अपना मन लगाकर परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं। 7 उत्साह के साथ एक सेवक के रूप में ऐसे काम करो जैसे मानो तुम लोगों की नहीं प्रभु की सेवा कर रहे हो। 8 याद रखो, तुममें से हर एक, चाहे वह सेवक या स्वतन्त्र है यदि कोई अच्छा काम करता है, तो प्रभु से उसका प्रतिफल पायेगा।
9 हे स्वामियों, तुम भी अपने सेवकों के साथ वैसा ही व्यवहार करो और उन्हें डराना-धमकाना छोड़ दो। याद रखो, उनका और तुम्हारा स्वामी स्वर्ग में है और वह कोई पक्षपात नहीं करता।
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