Revised Common Lectionary (Complementary)
10 हे यहोवा, तेरे कर्मो से तुझे प्रशंसा मिलती है।
तुझको तेरे भक्त धन्य कहा करते हैं।
11 वे लोग तेरे महिमामय राज्य का बखान किया करते हैं।
तेरी महानता को वे बताया करते हैं।
12 ताकि अन्य लोग उन महान बातों को जाने जिनको तू करता है।
वे लोग तेरे महिमामय राज्य का मनन किया करते हैं।
13 हे यहोवा, तेरा राज्य सदा—सदा बना रहेगा
तू सर्वदा शासन करेगा।
14 यहोवा गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाता है।
यहोवा विपदा में पड़े लोगों को सहारा देता है।
15 हे यहोवा, सभी प्राणी तेरी ओर खाना पाने को देखते हैं।
तू उनको ठीक समय पर उनका भोजन दिया करता है।
16 हे यहोवा, तू निज मुट्ठी खोलता है,
और तू सभी प्राणियों को वह हर एक वस्तु जिसकी उन्हें आवश्यकता देता है।
17 यहोवा जो भी करता है, अच्छा ही करता है।
यहोवा जो भी करता, उसमें निज सच्चा प्रेम प्रकट करता है।
18 जो लोग यहोवा की उपासना करते हैं, यहोवा उनके निकट रहता है।
सचमुच जो उसकी उपासना करते है, यहोवा हर उस व्यक्ति के निकट रहता है।
मोआब इस्राएल से अलग होता है
4 मेशा मोआब का राजा था। उसके पास बहुत बकरियाँ थीं। मेशा ने एक लाख मेमने और एक लाख भेढ़ों का ऊन इस्राएल के राजा को भेंट किया। 5 किन्तु जब अहाब मरा तब मोआब इस्राएल के राजा के शासन से स्वतन्त्र हो गया।
6 तब राजा यहोराम शोमरोन के बाहर निकला और उसने इस्राएल के सभी पुरुषों को इकट्ठा किया। 7 यहोराम ने यहूदा के राजा यहोशापात के पास सन्देशवाहक भेजे। यहोराम ने कहा, “मोआब का राजा मेरे शासन से स्वतन्त्र हो गया है। क्या तुम मोआब के विरुद्ध युद्ध करने मेरे साथ चलोगे”
यहोशापात ने कहा, “हाँ, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। हम दोनों एक सेना की तरह मिल जायेंगे। मेरे लोग तुम्हारे लोगों जैसे होंगे। मेरे घोड़े तुम्हारे घोड़ों जैसे होंगे।”
एलीशा से तीन राजा सलाह माँगते हैं
8 यहोशापात ने यहोराम से पूछा, “हमें किस रास्ते से चलना चाहिए?”
यहोराम ने उत्तर दिया, “हमें एदोम की मरुभूमि से होकर जाना चाहिए।”
9 इसलिये इस्राएल का राजा यहूदा और एदोम के राजाओं के साथ गया। वे लगभग सात दिन तक चारों ओर घूमते रहे। सेना व उनके पशुओं के लिये पर्याप्त पानी नहीं था। 10 अन्त में इस्राएल के राजा (यहोराम) ने कहा, “ओह, यहोवा ने सत्य ही हम तीनों राजाओं को एक साथ इसलिये बुलाया कि मोआबी हम लोगों को पराजित करें!”
11 किन्तु यहोशापात ने कहा, “निश्चय ही यहोवा के नबियों में से एक यहाँ है। हम लोग नबी से पूछें कि यहोवा हमें क्या करने के लिये कहता है।”
इस्राएल के राजा के सेवकों में से एक ने कहा, “शापात का पुत्र एलीशा यहाँ है। एलीशा, एलिय्याह का सेवक[a] था।”
12 यहोशापात ने कहा, “यहोवा की वाणी एलीशा के पास है।”
अतः इस्राएल का राजा (यहोराम), यहोशापत और एदोम के राजा एलीशा से मिलने गए।
13 एलीशा ने इस्राएल के राजा (यहोराम) से कहा, “तुम मुझ से क्या चाहते हो अपने पिता और अपनी माता के नबियों के पास जाओ।”
इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, “नहीं, हम लोग तुमसे मिलने आए हैं, क्योंकि यहोवा ने हम तीन राजाओं को इसलिये एक साथ यहाँ बुलाया है कि मोआबी हम लोगों को हराएं। हम तुम्हारी सहायता चाहते हैं।”
14 एलीशा ने कहा, “मैं यहूदा के राजा यहोशापात का सम्मान करता हूँ और मैं सर्वशक्तिमान यहोवा की सेवा करता हूँ। उसकी सत्ता निश्चय ही शाश्वत है, मैं यहाँ केवल राजा यहोशापात के कारण आया हूँ। अतः मैं सत्य कहता हूँ: मैं न तो तुम पर दृष्टि डालता और न तुम्हारी परवाह करता, यदि यहूदा का राजा यहोशापात यहाँ न होता। 15 किन्तु अब एक ऐसे व्यक्ति को मेरे पास लाओ जो वीणा बजाता हो।”
जब उस व्यक्ति ने वीणा बजाई तो यहोवा की शक्ति एलीशा पर उतरी। 16 तब एलीशा ने कहा, “यहोवा यह कहता हैः घाटी में गके खोदो। 17 यहोवा यही कहता है: तुम हवा का अनुभव नहीं करोगे, तुम वर्षा भी नहीं देखोगे। किन्तु वह घाटी जल से भर जायेगी। तुम, तुम्हारी गायें तथा अन्य जानवरों को पानी पीने को मिलेगा। 18 यहोवा के लिये यह करना सरल है। वह तुम्हें मोआबियों को भी पराजित करने देगा। 19 तुम हर एक सुदृढ़ नगर और हर एक अच्छे नगर पर आक्रमण करोगे। तुम हर एक अच्छे पेड़ को काट डालोगे। तुम सभी पानी के सोतों को रोक दोगे। तुम हरे खेत, उन पत्थरों से नष्ट करोगे जिन्हें तुम उन पर फेंकोगे।”
20 सवेरे प्रातः कालीन बलि के समय, एदोम से सड़क पर होकर पानी बहने लगा और घाटी भर गई।
तुम्हारा नया जीवन एक दूसरे के लिये
12 क्योंकि तुम परमेश्वर के चुने हुए पवित्र और प्रियजन हो इसलिए सहानुभूति, दया, नम्रता, कोमलता और धीरज को धारण करो। 13 तुम्हें आपस में जब कभी किसी से कोई कष्ट हो तो एक दूसरे की सह लो और परस्पर एक दूसरे को मुक्त भाव से क्षमा कर दो। तुम्हें आपस में एक दूसरे को ऐसे ही क्षमा कर देना चाहिए जैसे परमेश्वर ने तुम्हें मुक्त भाव से क्षमा कर दिया। 14 इन बातों के अतिरिक्त प्रेम को धारण करो। प्रेम ही सब को आपस में बाँधता और परिपूर्ण करता है। 15 तुम्हारे मन पर मसीह से प्राप्त होने वाली शांति का शासन हो। इसी के लिये तुम्हें उसी एक देह[a] में बुलाया गया है। सदा धन्यवाद करते रहो।
16 अपनी सम्पन्नता के साथ मसीह का संदेश तुम में वास करे। भजनों, स्तुतियों और आत्मा के गीतों को गाते हुए बड़े विवेक के साथ एक दूसरे को शिक्षा और निर्देश देते रहो। परमेश्वर को मन ही मन धन्यवाद देते हुए गाते रहो। 17 और तुम जो कुछ भी करो या कहो, वह सब प्रभु यीशु के नाम पर हो। उसी के द्वारा तुम हर समय परम पिता परमेश्वर को धन्यवाद देते रहो।
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