Revised Common Lectionary (Complementary)
धन्यवाद का एक गीत।
1 हे धरती, तुम यहोवा के लिये गाओ।
2 आनन्दित रहो जब तुम यहोवा की सेवा करो।
प्रसन्न गीतों के साथ यहोवा के सामने आओ।
3 तुम जान लो कि वह यहोवा ही परमेश्वर है।
उसने हमें रचा है और हम उसके भक्त हैं।
हम उसकी भेड़ हैं।
4 धन्यवाद के गीत संग लिये यहोवा के नगर में आओ,
गुणगान के गीत संग लिये यहोवा के मन्दिर में आओ।
उसका आदर करो और नाम धन्य करो।
5 यहोवा उत्तम है।
उसका प्रेम सदा सर्वदा है।
हम उस पर सदा सर्वदा के लिये भरोसा कर सकते हैं!
14 यहोवा उसके सामने प्रकट होगा
और वह अपने बाण बिजली की तरह चलायेगा।
यहोवा, मेरे स्वामी तरही बजाएगा
और सेना मरूभूमि के तूफान के समान आगे बढ़ेगी।
15 सर्वशक्तिमान यहोवा उनकी रक्षा करेगा।
सैनिक पत्थर और गुलेल का उपयोग शत्रु को पराजित करने में करेंगे।
वे अपने शत्रुओं का खुन बहायेंगे,
यह दाखमधु जैसा बहेगा।
यह वेदी के कानों पर फेंके गए खून जैसा होगा!
16 उस समय, उनके परमेश्वर यहोवा
अपने लोगों को वैसे ही बचाएगा,
जैसे गङेरिया भेङों को बचाता है।
वे उनके लिये बहुत मूल्यावान होंगे।
वे उनके हाथो में जगमगाते रत्न—से होंगे।
17 हर एक चीज अच्छी और सुन्दर होगी!
वहाँ अदभुत फसल होगी,
किन्तु वहाँ केवल अन्न और दाखधु नहीं होगी।
वहाँ युवक युवतीयाँ होंगी!
यहोवा की प्रतिज्ञायें
10 बसन्त ऋतु में यहोवा से वर्षा के लिये प्रार्थना करो। यहोवा बिजली भेजेगा और वर्षा होगी। और परमेश्वर हर एक व्यक्ति के खेत में उगायेगा।
2 ये जादुगर अपनी छोटी मूर्तियों और जादू का उपयोग भविष्य की घटनाओं को जानने के लिए करते हैं, किन्तु यह सब व्यर्थ है। वे लोग दर्शन करते हैं और अपने स्वपनों के बारे में कुछ कहते हैं, किन्तु यह सब व्यर्थ झुठ के अलावा कुछ नहीं हैं। अत: लोग भेङों की तरह इधर—उधर सहायता के लिये पुकारते हुए भटक रहे हैं। किन्तु उनको रास्ता दिखाने वाला कोई गङेरया नहीं।
पौलुस की इफ़िसुस के बुजुर्गों से बातचीत
17 उसने मिलेतुस से इफिसुस के बुजुर्गों और कलीसिया को सन्देषा भेज कर अपने पास बुलाया।
18 उनके आने पर पौलुस ने उनसे कहा, “यह तुम जानते हो कि एशिया पहुँचने के बाद पहले दिन से ही हर समय मैं तुम्हारे साथ कैसे रहा हूँ 19 और दीनतापूर्वक आँसू बहा-बहा कर यहूदियों के षड्यन्त्रों के कारण मुझ पर पड़ी अनेक परीक्षाओं में भी मैं प्रभु की सेवा करता रहा। 20 तुम जानते हो कि मैं तुम्हें तुम्हारे हित की कोई बात बताने से कभी हिचकिचाया नहीं। और मैं तुम्हें उन बातों का सब लोगों के बीच और घर-घर जा कर उपदेश देने में कभी नहीं झिझका। 21 यहूदियों और यूनानियों को मैं समान भाव से मन फिराव के परमेश्वर की तरफ़ मुड़ने को कहता रहा हूँ और हमारे प्रभु यीशु में विश्वास के प्रति उन्हें सचेत करता रहा हूँ।
22 “और अब पवित्र आत्मा के अधीन होकर मैं यरूशलेम जा रहा हूँ। मैं नहीं जानता वहाँ मेरे साथ क्या कुछ घटेगा। 23 मैं तो बस इतना जानता हूँ कि हर नगर में पवित्र आत्मा यह कहते हुए मुझे सचेत करती रहती है कि बंदीगृह और कठिनताएँ मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं। 24 किन्तु मेरे लिये मेरे प्राणों का कोई मूल्य नहीं है। मैं तो बस उस दौड़ धूप और उस सेवा को पूरा करना चाहता हूँ जिसे मैंने प्रभु यीशु से ग्रहण किया है वह है—परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार की साक्षी देना।
25 “और अब मैं जानता हूँ कि तुममें से कोई भी, जिनके बीच मैं परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुँह आगे कभी नहीं देख पायेगा। 26 इसलिये आज मैं तुम्हारे सामने घोषणा करता हूँ कि तुममें से किसी के भी खून का दोषी मैं नहीं हूँ। 27 क्योंकि मैं परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा को तुम्हें बताने में कभी नहीं हिचकिचाया हूँ। 28 अपनी और अपने समुदाय की रखवाली करते रहो। पवित्र आत्मा ने उनमें से तुम्हें उन पर दृष्टि रखने वाला बनाया है ताकि तुम परमेश्वर की[a] उस कलीसिया का ध्यान रखो जिसे उसने अपने रक्त के बदले मोल लिया था। 29 मैं जानता हूँ कि मेरे विदा होने के बाद हिंसक भेड़िये तुम्हारे बीच आयेंगे और वे इस भोले-भाले समूह को नहीं छोड़ेंगे। 30 यहाँ तक कि तुम्हारे अपने बीच में से ही ऐसे लोग भी उठ खड़े होंगे, जो शिष्यों को अपने पीछे लगा लेने के लिए बातों को तोड़-मरोड़ कर कहेंगे। 31 इसलिये सावधान रहना। याद रखना कि मैंने तीन साल तक एक एक को दिन रात रो रो कर सचेत करना कभी नहीं छोड़ा था।
32 “अब मैं तुम्हें परमेश्वर और उसके सुसंदेश के अनुग्रह के हाथों सौंपता हूँ। वही तुम्हारा निर्माण कर सकता है और तुम्हें उन लोगों के साथ जिन्हें पवित्र किया जा चुका है, तुम्हारा उत्तराधिकार दिला सकता है। 33 मैंने कभी किसी के सोने-चाँदी या वस्त्रों की अभिलाषा नहीं की। 34 तुम स्वयं जानते हो कि मेरे इन हाथों ने ही मेरी और मेरे साथियों की आवश्यकताओं को पूरा किया है। 35 मैंने अपने हर कर्म से तुम्हें यह दिखाया है कि कठिन परिश्रम करते हुए हमें निर्बलों की सहायता किस प्रकार करनी चाहिये और हमें प्रभु यीशु का वह वचन याद रखना चाहिये जिसे उसने स्वयं कहा था, ‘लेने से देने में अधिक सुख है।’”
36 यह कह चुकने के बाद वह उन सब के साथ घुटनों के बल झुका और उसने प्रार्थना की। 37-38 हर कोई फूट फूट कर रो रहा था। गले मिलते हुए वे उसे चूम रहे थे। उसने जो यह कहा था कि वे उसका मुँह फिर कभी नहीं देखेंगे, इससे लोग बहुत अधिक दुःखी थे। फिर उन्होंने उसे सुरक्षा पूर्वक जहाज़ तक पहुँचा दिया।
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