Revised Common Lectionary (Complementary)
15 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे पास अपना नबी भेजेगा। यह नबी तुम्हारे अपने ही लोगों में से आएगा। वह मेरी तरह ही होगा। तुम्हें इस नबी की बात माननी चाहिए। 16 यहोवा तुम्हारे पास इस नबी को भेजेगा क्योंकि तुमने ऐसा करने के लिए उससे कहा है। उस समय जब तुम होरेब (सीनै) पर्वत के चारों ओर इकट्ठे हुए थे, तुम यहोवा की आवाज और पहाड़ पर भीषण आग को देखकर भयभीत थे। इसलिए तुमने कहा था, हम लोग यहोवा अपने परमेश्वर की आवाज फिर न सुनें। ‘हम लोग उस भीषण आग को फिर न देखें। हम मर जाएंगे!’
17 “यहोवा ने मुझसे कहा, ‘वे जो चाहते हैं, वह ठीक है। 18 मैं तुम्हारी तरह का एक नबी उनके लिए भेज दूँगा। यह नबी उन्हीं लोगों में से कोई एक होगा। मैं उसे वह सब बताऊँगा जो उसे कहना होगा और वह लोगों से वही कहेगा जो मेरा आदेश होगा। 19 यह नबी मेरे नाम पर बोलेगा और जब वह कुछ कहेगा तब यदि कोई व्यक्ति मेरे आदेशों को सुनने से इन्कार करेगा तो मैं उस व्यक्ति को दण्ड दूँगा।’
झूठे नबियों को कैसे जाना जाये
20 “किन्तु कोई नबी कुछ ऐसा कह सकता है जिसे करने के लिए मैंने उसे नहीं कहा है और वह लोगों से कह सकता है कि वह मेरे स्थान पर बोल रहा है। यदि ऐसा होता है तो उस नबी को मार डालना चाहिए या कोई ऐसा नबी हो सकता है जो दूसरे देवताओं के नाम पर बोलता है। उस नबी को भी मार डालना चाहिए।
1 यहोवा के गुण गाओ!
यहोवा का अपने सम्पूर्ण मन से ऐसी उस सभा में धन्यवाद करता हूँ
जहाँ सज्जन मिला करते हैं।
2 यहोवा ऐसे कर्म करता है, जो आश्चर्यपूर्ण होते हैं।
लोग हर उत्तम वस्तु चाहते हैं, वही जो परमेश्वर से आती है।
3 परमेश्वर ऐसे कर्म करता है जो सचमुच महिमावान और आश्चर्यपूर्ण होते हैं।
उसका खरापन सदा—सदा बना रहता है।
4 परमेश्वर अद्भुत कर्म करता है ताकि हम याद रखें
कि यहोवा करूणापूर्ण और दया से भरा है।
5 परमेश्वर निज भक्तों को भोजन देता है।
परमेश्वर अपनी वाचा को याद रखता है।
6 परमेश्वर के महान कार्य उसके प्रजा को यह दिखाया
कि वह उनकी भूमि उन्हें दे रहा है।
7 परमेश्वर जो कुछ करता है वह उत्तम और पक्षपात रहित है।
उसके सभी आदेश पूरे विश्वास योग्य हैं।
8 परमेश्वर के आदेश सदा ही बने रहेंगे।
परमेश्वर के उन आदेशों को देने के प्रयोजन सच्चे थे और वे पवित्र थे।
9 परमेश्वर निज भक्तों को बचाता है।
परमेश्वर ने अपनी वाचा को सदा अटल रहने को रचा है, परमेश्वर का नाम आश्चर्यपूर्ण है और वह पवित्र है।
10 विवेक भय और यहोवा के आदर से उपजता है।
वे लोग बुद्धिमान होतेहैं जो यहोवा का आदर करते हैं।
यहोवा की स्तुति सदा गायी जायेगी।
चढ़ावे का भोजन
8 अब मूर्तियों पर चढ़ाई गई बलि के विषय में हम यह जानते हैं, “हम सभी ज्ञानी हैं।” ज्ञान लोगों को अहंकार से भर देता है। किन्तु प्रेम से व्यक्ति अधिक शक्तिशाली बनता है। 2 यदि कोई सोचे कि वह कुछ जानता है तो जिसे जानना चाहिये उसके बारे में तो उसने अभी कुछ जाना ही नहीं। 3 यदि कोई परमेश्वर को प्रेम करता है तो वह परमेश्वर के द्वारा जाना जाता है।
4 सो मूर्तियों पर चढ़ाये गये भोजन के बारे में हम जानते हैं कि इस संसार में वास्तविक प्रतिमा कहीं नहीं है। और यह कि परमेश्वर केवल एक ही है। 5 और धरती या आकाश में यद्यपि तथाकथित बहुत से “देवता” हैं, बहुत से “प्रभु” हैं। 6 किन्तु हमारे लिये तो एक ही परमेश्वर है, हमारा पिता। उसी से सब कुछ आता है। और उसी के लिये हम जीते हैं। प्रभु केवल एक है, यीशु मसीह। उसी के द्वारा सब वस्तुओं का अस्तित्व है और उसी के द्वारा हमारा जीवन है।
7 किन्तु यह ज्ञान हर किसी के पास नहीं है। कुछ लोग जो अब तक मूर्ति उपासना के आदी हैं, ऐसी वस्तुएँ खाते हैं और सोचते है जैसे मानो वे वस्तुएँ मूर्ति का प्रसाद हों। उनके इस कर्म से उनकी आत्मा निर्बल होने के कारण दूषित हो जाती है। 8 किन्तु वह प्रसाद तो हमें परमेश्वर के निकट नहीं ले जायेगा। यदि हम उसे न खायें तो कुछ घट नहीं जाता और यदि खायें तो कुछ बढ़ नहीं जाता।
9 सावधान रहो! कहीं तुम्हारा यह अधिकार उनके लिये, जो दुर्बल हैं, पाप में गिरने का कारण न बन जाये। 10 क्योंकि दुर्बल मन का कोई व्यक्ति यदि तुझ जैसे इस विषय के जानकार को मूर्ति वाले मन्दिर में खाते हुए देखता है तो उसका दुर्बल मन क्या उस हद तक नहीं भटक जायेगा कि वह मूर्ति पर बलि चढ़ाई गयी वस्तुओं को खाने लगे। 11 तेरे ज्ञान से, दुर्बल मन के व्यक्ति का तो नाश ही हो जायेगा तेरे उसी बन्धु का, जिसके लिए मसीह ने जान दे दी। 12 इस प्रकार अपने भाइयों के विरुद्ध पाप करते हुए और उनके दुर्बल मन को चोट पहुँचाते हुए तुम लोग मसीह के विरुद्ध पाप कर रहे हो। 13 इसलिए यदि भोजन मेरे भाई को पाप की राह पर बढ़ाता है तो मैं फिर कभी भी माँस नहीं खाऊँगा ताकि मैं अपने भाई के लिए, पाप करने की प्रेरणा न बनूँ!
दुष्टात्मा के चंगुल से छुटकारा
(लूका 4:31-37)
21 और कफरनहूम पहुँचे। फिर अगले सब्त के दिन यीशु आराधनालय में गया और लोगों को उपदेश देने लगा। 22 उसके उपदेशों पर लोग चकित हुए। क्योंकि वह उन्हें किसी शास्त्र ज्ञाता की तरह नहीं बल्कि एक अधिकारी की तरह उपदेश दे रहा था। 23 उनकी यहूदी आराधनालय में संयोग से एक ऐसा व्यक्ति भी था जिसमें कोई दुष्टात्मा समायी थी। वह चिल्ला कर बोला, 24 “नासरत के यीशु! तुझे हम से क्या चाहिये? क्या तू हमारा नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू कौन है, तू परमेश्वर का पवित्र जन है।”
25 इस पर यीशु ने झिड़कते हुए उससे कहा, “चुप रह! और इसमें से बाहर निकल!” 26 दुष्टात्मा ने उस व्यक्ति को झिंझोड़ा और वह ज़ोर से चिल्लाती हुई उसमें से निकल गयी।
27 हर व्यक्ति चकित हो उठा। इतना चकित, कि सब आपस में एक दूसरे से पूछने लगे, “यह क्या है? अधिकार के साथ दिया गया एक नया उपदेश! यह दुष्टात्माओं को भी आज्ञा देता है और वे उसे मानती हैं।” 28 इस तरह गलील और उसके आसपास हर कहीं यीशु का नाम जल्दी ही फैल गया।
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