Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 7

दाऊद का एक भाव गीत: जिसे उसने यहोवा के लिये गाया। यह भाव गीत बिन्यामीन परिवार समूह के कीश के पुत्र शाऊल के विषय मे है।

हे मेरे यहोवा परमेश्वर, मुझे तुझ पर भरोसा है।
    उन व्यक्तियों से तू मेरी रक्षा कर, जो मेरे पीछे पड़े हैं। मुझको तू बचा ले।
यदि तू मुझे नहीं बचाता तो मेरी दशा उस निरीह पशु की सी होगी, जिसे किसी सिंह ने पकड़ लिया है।
    वह मुझे घसीट कर दूर ले जायेगा, कोई भी व्यक्ति मुझे नहीं बचा पायेगा।

हे मेरे यहोवा परमेश्वर, कोई पाप करने का मैं दोषी नहीं हूँ। मैंने तो कोई भी पाप नहीं किया।
मैंने अपने मित्रों के साथ बुरा नहीं किया
    और अपने मित्र के शत्रुओं की भी मैंने सहायता नहीं किया।
किन्तु एक शत्रु मेरे पीछे पड़ा हुआ है।
    वह मेरी हत्या करना चाहता है।
    वह शत्रु चाहता है कि मेरे जीवन को धरती पर रौंद डाले और मेरी आत्मा को धूल में मिला दे।
यहोवा उठ, तू अपना क्रोध प्रकट कर।
    मेरा शत्रु क्रोधित है, सो खड़ा हो जा और उसके विरुद्ध युद्ध कर।
    खड़ा हो जा और निष्यक्षता की माँग कर।
हे यहोवा, लोगों का न्याय कर।
    अपने चारों ओर राष्ट्रों को एकत्र कर और लोगों का न्याय कर।
हे यहोवा, न्याय कर मेरा,
    और सिद्ध कर कि मैं न्याय संगत हूँ।
    ये प्रमाणित कर दे कि मैं निर्दोष हूँ।
दुर्जन को दण्ड दे
    और सज्जन की सहायता कर।
हे परमेश्वर, तू उत्तम है।
    तू अन्तर्यामी है। तू तो लोगों के ह्रदय में झाँक सकता है।

10 जिन के मन सच्चे हैं, परमेश्वर उन व्यक्तियों की सहायता करता है।
    इसलिए वह मेरी भी सहायता करेगा।
11 परमेश्वर उत्तम न्यायकर्ता है।
    वह कभी भी अपना क्रोध प्रकट कर देगा।
12-13 परमेश्वर जब कोई निर्णय ले लेता है,
    तो फिर वह अपना मन नहीं बदलता है।
उसमें लोगों को दण्डित करने की क्षमता है।
    उसने मृत्यु के सब सामान साथ रखे हैं।

14 कुछ ऐसे लोग होते हैं जो सदा कुकर्मों की योजना बनाते रहते हैं।
    ऐसे ही लोग गुप्त षड़यन्त्र रचते हैं,
    और मिथ्या बोलते हैं।
15 वे दूसरे लोगों को जाल में फँसाने और हानि पहुँचाने का यत्न करते हैं।
    किन्तु अपने ही जाल में फँस कर वे हानि उठायेंगे।
16 वे अपने कर्मों का उचित दण्ड पायेंगे।
    वे अन्य लोगों के साथ क्रूर रहे।
    किन्तु जैसा उन्हें चाहिए वैसा ही फल पायेंगे।

17 मैं यहोवा का यश गाता हूँ, क्योंकि वह उत्तम है।
    मैं यहोवा के सर्वोच्च नाम की स्तुति करता हूँ।

एस्तेर 8:3-17

तब एस्तेर ने राजा से फिर कहा और वह राजा के पैरों में गिर कर रोने लगी। उसने राजा से प्रार्थना की कि वह अगागी हामान की उस बुरी योजना को समाप्त कर दे जिसे हामान ने यहूदियों के नाश के लिए सोचा था।

इस पर राजा ने अपने सोने के राजदण्ड को एस्तेर की ओर आगे बढ़ाया। एस्तेर उठी और राजा के आगे खड़ी हो गयी। फिर एस्तेर ने कहा, “महाराज, यदि तुम मुझे पसंद करते हो और यह तुम्हें अच्छा लगता है तो कृपा करके मेरे लिए यह कर दीजिये। यदि आपको यह किया जाना ठीक लगे तो इसे पूरा कर दीजिये। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके एक आदेश पत्र लिखिये, जो उस आदेश पत्र को रद्द कर दे जिसे हामान ने भेजा था। अगागी हामान ने राजा के सभी प्रांतों में बसे यहूदियों को नष्ट करने की एक योजना सोची थी और उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने आज्ञा पत्र भिजवा दिये थे। मैं महाराज से यह प्रार्थना इसलिए कर रही हूँ कि मैं अपने लोगों के साथ उस भयानक काण्ड को घटते देखना सहन नहीं कर पाऊँगी। मैं अपने परिवार की हत्या को देखना सहन नहीं कर पाऊँगी।”

महाराजा क्षयर्ष ने महारानी एस्तेर और यहूदी मोर्दकै को उत्तर देते हुए जो कहा था, वह यह है, “हामान, क्योंकि यहूदियों के विरोध में था, इसलिए उसकी सम्पत्ति मैंने एस्तेर को दे दी तथा मेरे सिपाहियों ने उसे फाँसी देने के खम्भे पर लटका दिया। अब राजा की ओर से एक और दूसरा आज्ञा पत्र लिखा जाये। इसे तुम्हें यहूदियों की सहायता के लिए जो सबसे अच्छा लगे वैसा ही लिखो। फिर राजा की विशेष अँगूठी से उस आज्ञा पर मुहर लगा दो। राजा की ओर से लिखा गया और राजा की अँगूठी से जिस पर मुहर दी गयी हो, ऐसा कोई भी राजकीय पत्र रद्द नहीं किया जा सकता।”

राजा के सचिवों को तत्काल बुलाया गया। सीवान नाम के तीसरे महीने की तेईसवीं तारीख को वह आदेश पत्र लिखा गया। यहूदियों के लिये मोर्दकै के सभी आदेशों को सचिवों ने लिखकर यहूदियों, मुखियाओं, राज्यपालों और एक सौ सत्ताईस प्रांतो के अधिकारियों के पास पहुँचा दिया। ये प्रांत भारत से लेकर कूश तक फैले हुए थे। ये आदेश पत्र हर प्रांत की लिपि और भाषा में लिखे गये थे और हर देश के लोगों की भाषा में उसका अनुवाद किया गया था। यहूदियों के लिये ये आदेश उन की अपनी भाषा और उनकी अपनी लिपि में लिखे गये थे। 10 मोर्दकै ने ये आदेश महाराजा क्षयर्ष की ओर से लिखे थे और फिर उन पत्रों पर उसने राजा की अँगूठी से मुहर लगा दी थी। फिर उन पत्रों को उसने तीव्र घुड़सवार सन्देश वाहकों के द्वारा भिजवा दिया। ये सन्देश वाहक उन घोड़ों पर सवार थे जिन्हें विशेष राजा के लिए पाला—पोसा गया था।

11 उन पत्रों पर राजा के ये आदेश लिखे थे: यहूदियों को हर नगर में आपस में एक जुट होकर अपनी रक्षा करने का अधिकार है। उन्हें अधिकार है कि वे किसी भी प्रांत और समूह के लोगों की ऐसी किसी भी सेना को छिन्न—भिन्न कर दें, मार डालें अथवा पूरी तरह नष्ट कर दें जो उन पर, उनकी स्त्रियों पर, और उनके बच्चों पर आक्रमण कर रही हो। यहूदियों को अधिकार है कि वे अपने शत्रुओं की सम्पत्ति को ले लें और उसे नष्ट कर डालें।

12 जब यहूदियों के लिये ऐसा किया जायेगा, उसके लिये उदार नाम के बारहवें महीने की तेरहवीं तारीख का दिन निश्चित किया गया। महाराजा क्षयर्ष के अपने सभी प्रांतों में यहूदियों को ऐसा करने की अनुमति दे दी गयी। 13 इस पत्र की एक प्रति राजा के आदेश के साथ हर प्रांत को बाहर भेजी जानी थी। यह एक नियम बन गया। हर प्रांत में इसने नियम का रुप ले लिया। राज्य में रहने वाली प्रत्येक जाति के लोगों के बीच इसका प्रचार किया गया। उन्होंने ऐसा इसलिये किया जिससे उस विशेष दिन के लिये यहूदी तैयार हो जायें जब यहूदियों को अपने शत्रुओं से बदला लेने की अनुमति दे दी जाएगी। 14 राजा के घोड़ों पर सवार सन्देश वाहक जल्दी से बाहर निकल गये। उन्हें राजा ने आज्ञा दी थी कि जल्दी करें। वह आज्ञा शूशन की राजधानी नगरी में भी लगा दी गयी।

15 फिर मोर्दकै राजा के पास से चला गया। मोर्दकै ने राजा से प्राप्त वस्त्र धारण किये हुए थे। उसके कपड़े नीले और सफेद रंग के थे। उसने एक लम्बा सोने का मुकुट पहन रखा था। बढ़िया सूत का बना हुआ बैगनी रंग का चोगा भी उसके पास था। शूशन की राजधानी नगरी में विशेष समारोह हो रहा था। लोग बहुत खुश थे। 16 यहूदियों के लिये तो यह विशेष प्रसन्नता का दिन था। यह आनन्द प्रसन्नता और बड़े सम्मान का दिन था।

17 जहाँ कहीं भी किसी प्रांत या किसी भी नगर में राजा का वह आदेश पत्र पहुँचा, यहूदियों में आनन्द और प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। यहूदी भोज दे रहे थे और उत्सव मना रहे थे और दूसरे बहुत से सामान्य लोग यहूदी बन गये। क्योंकि वे यहूदियों से बहुत डरा करते थे, इसीलिए उन्होंने ऐसा किया।

प्रकाशित वाक्य 19:1-9

स्वर्ग में परमेश्वर की स्तुति

19 इसके पश्चात् मैंने भीड़ का सा एक ऊँचा स्वर सुना। लोग कह रहे थे:

“हल्लिलूय्याह!
परमेश्वर की जय हो, जय हो! महिमा और सामर्थ्य सदा हो!
उसके न्याय सदा सच्चे हैं, धर्म युक्त हैं,
उस महती वेश्या का उसने न्याय किया है,
    जिसने अपने व्यभिचार से इस धरती को भ्रष्ट किया था जिनको उसने मार दिया
उन दास जनों की हत्या का प्रतिशोध हो चुका।”

उन्होंने यह फिर गाया:

“हल्लिलूय्याह!
जय हो उसकी उससे धुआँ युग युग उठेगा।”

फिर चौबीसों प्राचीनों और चारों प्राणियों ने सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर को झुक कर प्रणाम किया और उसकी उपासना करते हुए गाने लगे:

“आमीन! हल्लिलूय्याह!” जय हो उसकी।

स्वर्ग से फिर एक आवाज़ आयी जो कह रही थी:

“हे उसके सेवकों, तुम सभी हमारे परमेश्वर का स्तुति गान करो तुम चाहे छोटे हो,
चाहे बड़े बने हो, जो उससे डरते रहते हो।”

फिर मैंने एक बड़े जनसमुद्र का सा शब्द सुना जो एक विशाल जलप्रवाह और मेघों के शक्तिशाली गर्जन-तर्जन जैसा था। लोग गा रहे थे:

“हल्लिलूय्याह!
    उसकी जय हो, क्योंकि हमारा प्रभु परमेश्वर!
    सर्वशक्ति सम्पन्न राज्य कर रहा है।
सो आओ, खुश हो-हो कर आनन्द मनाएँ आओ, उसको महिमा देवें!
क्योंकि अब मेमने के ब्याह का समय आ गया उसकी दुल्हन सजी-धजी तैयार हो गयी।
उसको अनुमति मिली स्वच्छ धवल
    पहन ले वह निर्मल मलमल!”

(यह मलमल संत जनों के धर्ममय कार्यों का प्रतीक है।)

फिर वह मुझसे कहने लगा, “लिखो वे धन्य हैं जिन्हें इस विवाह भोज में बुलाया गया है।” उसने फिर कहा, “ये परमेश्वर के सत्य वचन हैं।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

© 1995, 2010 Bible League International