Revised Common Lectionary (Complementary)
दाऊद को समर्पित।
1 हे यहोवा, तू मेरी चट्टान है,
मैं तुझको सहायता पाने को पुकार रहा हूँ।
मेरी प्रार्थनाओं से अपने कान मत मूँद,
यदि तू मेरी सहायता की पुकार का उत्तर नहीं देगा,
तो लोग मुझे कब्र में मरा हुआ जैसा समझेंगे।
2 हे यहोवा, तेरे पवित्र तम्बू की ओर मैं अपने हाथ उठाकर प्रार्थना करता हूँ।
जब मैं तुझे पुकारुँ, तू मेरी सुन
और तू मुझ पर अपनी करुणा दिखा।
3 हे यहोवा, मुझे उन बुरे व्याक्तियों की तरह मत सोच जो बुरे काम करते हैं।
जो अपने पड़ोसियों से “सलाम” (शांति) करते हैं, किन्तु अपने हृदय में अपने पड़ोसियों के बारे में कुचक्र सोचते हैं।
4 हे यहोवा, वे व्यक्ति अन्य लोगों का बुरा करते हैं।
सो तू उनके साथ बुरी घटनाएँ घटा।
उन दुर्जनों को तू वैसे दण्ड दे जैसे उन्हें देना चाहिए।
5 दुर्जन उन उत्तम बातों को जो यहोवा करता नहीं समझते।
वे परमेश्वर के उत्तम कर्मो को नहीं देखते। वे उसकी भलाई को नहीं समझते।
वे तो केवल किसी का नाश करने का यत्न करते हैं।
6 यहोवा की स्तुति करो!
उसने मुझ पर करुणा करने की विनती सुनी।
7 यहोवा मेरी शक्ति है, वह मेरी ढाल है।
मुझे उसका भरोसा था।
उसने मेरी सहायता की।
मैं अति प्रसन्न हूँ, और उसके प्रशंसा के गीत गाता हूँ।
8 यहोवा अपने चुने राजा की रक्षा करता है।
वह उसे हर पल बचाता है। यहोवा ही उसका बल है।
9 हे परमेश्वर, अपने लोगों की रक्षा कर।
जो तेरे हैं उनको आशीष दे।
उनको मार्ग दिखा और सदा सर्वदा उनका उत्थान कर।
23 पलिश्ती लोगों के शासक उत्सव मनाने के लिए एक स्थान पर इकट्ठे हुए। वे अपने देवता दागोन को एक बड़ी भेंट चढ़ाने जा रहे थे। उन्होंने कहा, “हम लोगों के देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हराने में सहायता की है।” 24 जब पलिश्ती लोगों ने शिमशोन को देखा तब उन्होंने अपने देवता की प्रशंशा की। उन्होंने कहा,
“इस व्यक्ति ने हमारे लोगों को नष्ट किया!
इस व्यक्ति ने हमारे अनेक लोगों को मारा!
किन्तु हमारे देवता ने हमारे शत्रु को पकड़वाने में
हमारी मदद की!”
25 लोग उत्सव में खुशी मना रहे थे। इसलिए उन्होंने कहा, “शिमशोन को बाहर लाओ। हम उसका मजाक उड़ाना चाहते हैं।” इसलिए वे शिमशोन को बन्दीगृह से बाहर ले आए और उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने शिमशोन को दागोन देवता के मन्दिर के स्तम्भों के बीच खड़ा किया। 26 एक नौकर शिमशोन का हाथ पकड़ा हुआ था। शिमशोन ने उससे कहा, “मुझे वहाँ रखो जहाँ मैं उन स्तम्भों को छू सकूँ, जो इस मन्दिर को ऊपर रोके हुए हैं। मैं उनका सहारा लेना चाहता हूँ।”
27 मन्दिर में स्त्री—पुरूषों की अपार भीड़ थी। पलिश्ती लोगों के सभी शासक वहाँ थे। वहाँ लगभग तीन हज़ार स्त्री—पुरूष मन्दिर की छत पर थे। वे हँस रहे थे और शिमशोन का मज़ाक उड़ा रहे थे। 28 तब शिमशोन ने यहोवा से प्रार्थना की। उसने कहा, “सर्वशक्तिमान यहोवा, मुझे याद कर। परमेश्वर मुझे कृपा कर केवल एक बार और शक्ति दे। मुझे केवल एक यह काम करने दे कि पलिश्तियों को अपनी आँखों के निकालने का बदला चुका दूँ।” 29 तब शिमशोन ने मन्दिर के केन्द्र के दोनों स्तम्भों को पकड़ा। ये दोनों स्तम्भ पूरे मन्दिर को टिकाए हुए थे। उसने दोनों स्तम्भों के बीच में अपने को जमाया। एक स्तम्भ उसकी दांयी ओर तथा दूसरा उसकी बाँयीं ओर था। 30 शिमशोन ने कहा, “इन पलिश्सतों के साथ मुझें मरने दे।” तब उसने अपनी पूरी शक्ति से स्तम्भों को ठेला और मन्दिर शासकों तथा इनमें आए लोगों पर गिर पड़ा। इस प्रकार शिमशोन ने अपने जीवन काल में जितने पलिश्ती लोगों को मारा, उससे कहीं अधिक लोगों को उसने तब मारा, जब वह मरा।
31 शिमशोन के भाईयों और उसके पिता का पूरा परिवार उसके शरीर को लेने गए। वे उसे वापस लाए और उसे उसके पिता मानोह के कब्र में दफनाया। यह कब्र सोरा और एश्ताओल नगरों के बीच है। शिमशोन इस्राएल के लोगों का न्यायाधीश बीस वर्ष तक रहा।
2 लोग लकवे के एक रोगी को खाट पर लिटा कर उसके पास लाये। यीशु ने जब उनके विश्वास को देखा तो उसने लकवे के रोगी से कहा, “हिम्मत रख हे बालक, तेरे पाप को क्षमा किया गया!”
3 तभी कुछ यहूदी धर्मशास्त्री आपस में कहने लगे, “यह व्यक्ति (यीशु) अपने शब्दों से परमेश्वर का अपमान करता है।”
4 यीशु, क्योंकि जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं, उनसे बोला, “तुम अपने मन में बुरे विचार क्यों आने देते हो? 5-6 अधिक सहज क्या है? यह कहना कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए’ या यह कहना ‘खड़ा हो और चल पड़?’ ताकि तुम यह जान सको कि पृथ्वी पर पापों को क्षमा करने की शक्ति मनुष्य के पुत्र में हैं।” यीशु ने लकवे के मारे से कहा, “खड़ा हो, अपना बिस्तर उठा और घर चला जा।”
7 वह लकवे का रोगी खड़ा हो कर अपने घर चला गया। 8 जब भीड़ में लोगों ने यह देखा तो वे श्रद्धामय विस्मय से भर उठे और परमेश्वर की स्तुति करने लगे जिसने मनुष्य को ऐसी शक्ति दी।
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