Revised Common Lectionary (Complementary)
यहोवा के दास दाऊद का एक पद: संगीत निर्देशक के लिये। दाऊद ने यह पद उस अवसर पर गाया था जब यहोवा ने शाऊल तथा अन्य शत्रुओं से उसकी रक्षा की थी।
1 उसने कहा, “यहोवा मेरी शक्ति है,
मैं तुझ पर अपनी करुणा दिखाऊँगा!
2 यहोवा मेरी चट्टान, मेरा गढ़, मेरा शरणस्थल है।”
मेरा परमेश्वर मेरी चट्टान है। मैं तेरी शरण मे आया हूँ।
उसकी शक्ति मुझको बचाती है।
यहोवा ऊँचे पहाड़ों पर मेरा शरणस्थल है।
3 यहोवा को जो स्तुति के योग्य है,
मैं पुकारुँगा और मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊँगा।
20 मैं अबोध हूँ, सो यहोवा मुझे बचायेगा।
मैंने कुछ बुरा नहीं किया। वह मेरे लिये उत्तम चीजें करेगा।
21 क्योंकि मैंने यहोवा की आज्ञा पालन किया!
अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया।
22 मैं तो यहोवा के व्यवस्था विधानों को
और आदेशों को हमेशा ध्यान में रखता हूँ!
23 स्वयं को मैं उसके सामने पवित्र रखता हूँ
और अबोध बना रहता हूँ।
24 क्योंकि मैं अबोध हूँ! इसलिये मुझे मेरा पुरस्कार देगा!
जैसा परमेश्वर देखता है कि मैंने कोई बुरा नहीं किया, अतःवह मेरे लिये उत्तम चीज़ें करेगा।
25 हे यहोवा, तू विश्वसनीय लोगों के साथ विश्वसनीय
और खरे लोगों के साथ तू खरा है।
26 हे यहोवा शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता है, और टेढ़ों के साथ तू तिछर बनता है।
किन्तु, तू नीच और कुटिल जनों से भी चतुर है।
27 हे यहोवा, तू नम्र जनों के लिये सहाय है,
किन्तु जिनमें अहंकार भरा है उन मनुष्यों को तू बड़ा नहीं बनने देता।
28 हे यहोवा, तू मेरा जलता दीप है।
हे मेरे परमेश्वर तू मेरे अधंकार को ज्योति में बदलता है!
29 हे यहोवा, तेरी सहायता से, मैं सैनिकों के साथ दौड़ सकता हूँ।
तेरी ही सहायता से, मैं शत्रुओं के प्राचीर लाँघ सकता हूँ।
30 परमेश्वर के विधान पवित्र और उत्तम हैं और यहोवा के शब्द सत्यपूर्ण होते हैं।
वह उसको बचाता है जो उसके भरोसे हैं।
31 यहोवा को छोड़ बस और कौन परमेश्वर है?
मात्र हमारे परमेश्वर के और कौन चट्टान है?
32 मुझको परमेश्वर शक्ति देता है।
मेरे जीवन को वह पवित्र बनाता है।
18 तुमने छोड़ा अपने शैल यहोवा को भुलाया
तुमने अपने परमेश्वर को, दी जिसने जिन्दगी।
19 “यहोवा ने देखा यह, इन्कार किया जन को अपना कहने से,
क्रोधित किया उसे उसके पुत्रों और पुत्रियों ने!
20 तब यहोवा ने कहा,
‘मैं इनसे मुँह मोडूँगा!
मैं देख सकूँगा—अन्त होगा क्या उनका।
क्यों? क्योंकि भ्रष्ट सभी उनकी पीढ़ियाँ हैं।
वे हैं ऐसी सन्तान जिन्हें विश्वास नहीं है!
28 “इस्राएल के शत्रु मूर्ख राष्ट्र हैं
वे समझ न पाते कुछ भी।
29 यदि शत्रु समझदार होत
तो इसे समझ पाते,
और देखते अपना अन्त भविष्य में
30 एक कैसे पीछा करता सहस्र को?
कैसे दो भगा देते दस सहस्र को?
यह तब होता जब शैल
यहोवा देता उनको,
उनके शत्रुओं को, और परमेश्वर उन्हें
बेचता गुलामों सा।
31 शैल शत्रुओं को नहीं हमारे शैल यहोवा सदृश
हमारे शत्रु स्वयं देख सकते इस सत्य को।
32 सदोम और अमोरा की दाखलताओं के समान कड़वे हैं उनके गुच्छे अंगूर के।
उनके अंगूर विषैले होते हैं उनके अंगूरों के गुच्छे कडवे होते।
33 उनकी दाखमधु साँपों के विष जैसी है और क्रूर कालकूट अस्प नाम का।”
34 यहोवा ने कहा, “मैं उस दण्ड से रक्षा करता हूँ।
मैं अपने वस्तु भण्डार में बन्द किया!
35 केवल मैं हूँ देने वाला दण्ड मैं ही देता लोगों को अपराधों का बदला,
जब उनका पग फिसल पड़ेगा अपराधों में,
क्यों? क्योंकि विपत्ति समय उनका समीप है
और दण्ड समय उनका दौड़ा आएगा।”
36 “यहोवा न्याय करेगा अपने जन का।
वे उसके सेवक हैं, वह दयालु होगा।
वह उसके बल को मिटा देगा
वह उन सभी स्वतन्त्र
और दासों को होता देखेगा असहाय।
37 पूछेगा वह तब,
‘लोगों के देवता कहाँ हैं?
वह है चट्टान कहाँ, जिसकी शरण गए वे?
38 लोगों के ये देव, बलि की चर्बी खाते थे,
और पीते थे मदिरा, मदिरा की भेंट की।
अतः उठें ये देव, मदद करें तेरी करें
तुम्हारी ये रक्षा!
39 देखो, अब केवल मैं ही परमेश्वर हूँ।
नहीं अन्य कोई भी परमेश्वर
मैं ही निश्चय करता लोगों को
जीवित रखूँ या मारूँ।
मैं लोगों को दे सकता हूँ चोट
और ठीक भी रख सकत हूँ।
और न बचा सकता कोई किसी को मेरी शक्ति के बाहर।
परमेश्वर धन्य है
33 परमेश्वर की करुणा, बुद्धि और ज्ञान कितने अपरम्पार हैं। उसके न्याय कितने गहन हैं; उसके रास्ते कितने गूढ़ है। 34 शास्त्र कहता है:
“प्रभु के मन को कौन जानता है?
और उसे सलाह देने वाला कौन हो सकता हैं?”(A)
35 “परमेश्वर को किसी ने क्या दिया है?
कि वह किसी को उसके बदले कुछ दे।”(B)
36 क्योंकि सब का रचने वाला वही है। उसी से सब स्थिर है और वह उसी के लिए है। उसकी सदा महिमा हो! आमीन।
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